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पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः (भागः ४).djvu/२००

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१२९१ अब प्रश्न प्रशंसा करते हैं । हि- भा.-कुट्टाकार प्रश्नों के पठनमात्र से ही गणक ज्यौतिषिकीसभा में ज्यौतिषिकों के तेज को नाशकरते हैं जैसे सूर्य भगवान् नक्षत्रों के तेज (प्रकाश) को नाश करते हैं । अर्थात् प्रश्नों के पठन मात्र ही से गणक ज्यौतिषिकों के मध्य में नक्षत्रों के मध्य में सूर्य की तरह होते हैं तब फिर उन सूत्रों के ज्ञान से क्या होगा अर्थात् उसका वर्णन नहीं हो सकता है इति ॥ १०१ ॥ इदानमध्यायोपसंहारमाह । प्रतिस्त्रसम प्रश्नाः पठितः सोडू शकेषु सूत्रेषु । आर्यायधिकशतेन च कृ दृश्चाष्टादशोऽध्यायः ॥१०२॥ सु. भा–प्रतिसूत्रं मयाऽमी प्रश्नाः पठिताः । एवं सोदाहरणेषु सूत्रेषु आयत्र्यधिकशतेनायं कुट्टक नामाऽध्यायोऽष्टादशः। मधुसूदनसूनुनोदितो यस्तिलकः श्रीपृथुनेह जिष्णुजोक्त । हृदितं विनिघाय नूतनोऽयं रचितः कुट्टविधौ सुधाकरेण । इति श्री कृपालुदत्तसूसँसुधाकरद्विवेदि विरचिते ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त नूतन तिल के कुट्टकाध्यायोऽष्टादशः ॥१८॥ वि. भा--मया प्रतिसूत्रममी पूर्वोक्ताः प्रश्नाः पठिताः । एवमुदाहरण सहितसूत्रेषु आर्यायधिकशतेना (त्र्यधिकशतप्रमिताऽऽय्या) ऽयं कुट्टकनामाऽध्या- थोऽष्टादशोस्तीति । इति श्री ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते कुट्टकाध्यायोऽष्टादशः समाप्तः॥१८॥ अब अध्याय के उपसंहार को कहते हैं। हि. भा-हम ने पूर्वोक्त इन प्रदानों को प्रति सूत्र में पठित किया है । एक स्रौ तीन आर्याओं से जुड़क नाम का यह अठारहवां अध्याय है इति ॥१०२॥ इति ब्राह्म स्फुट सिद्धान्त में अठारहवां (कुट्टक) अध्याय समाप्त हुआ ।१८।।