उदहरराानि द्वयोयर्गिनब् भारो +र भारोxकरो=(भारो+कारो)२=(भारो+कारो)२=श्र२+व मुलग्रहराोरन, भारो+ करो= श्र +४व शेषवसना सड क्रमराोन स्पुटा ॥६६॥ चि. भा.--यादि प्र शकलारोषान्तरं घातरचेति द्वयमुहिष्टं भवेत्तदा द्विक्रूतिगुरा।त् (चतुग्रुरा।त्) शेषयोघ्राताछेषान्तरवग॔युतान्मुलं यत्ताच्च्छेषान्तारेरा हिनं युत्तं तदघै प्रुयगभीष्टेंशकला शेषे भदेता मिति ।
श्रत्रोपपत्तिः ।
कल्पयते श्रशशेषभानम्==य, कलाशेषमनम्== र शेषायोरन्तरं=य- र, चतुग्रुरग- घातः == घा श्रन्तर्+४ घात ==(य_र) +४ य.र+ र+४ य.र =य+२ य.र+र==(य+र) मुलग्रहऐन य+र ==योग ।ततःयोग+श्रन्तर।र =य, योग_अन्तर।र=र, बीजगएि।ते चतुगु॔एास्य घातस्य युतिवग॔स्य चान्तरमि त्यादिन भास्कराचाय॔एा रसायोयाैगवघयोञेनाद्रारमन्तरञनायँ विगिः प्रदशितः, श्रत्राचायैएा रास्योरन्तरवघयोञा॔नाद्राशियोगज्जनायँ विघिः प्रदशितः, श्रत्राचायँएा रास्चोरन्तरवघयोजानं क्रुतं वस्तुतोनयोनं कारिचद् भेद् इति ॥९९॥
श्रब पुनः प्ररनान्तर के उत्तर को कहते है । हि. भा.__यदि पुर्वत्त प्रारन में श्रंश शेष श्रौर का श्रान्तर तया उन्ही दोनों
का चतुगुँएिात घात उहिष्टा हो तब शेषान्तर वगे में चतुगुँरिएाित घात को जोड़ कर् जो मुल हो उस में से शेषान्तह्र को हीव श्रौर जोड़ कर श्राधा करने से श्रामीष्ट सा षदय का मान होता है इति ॥६०॥
उपपति ।
कल्पना करते है । श्रशश॓ ष=य, कलश् षा=,दोनों शे षो का श्रन्तर् =श्रं= य__र,चतुगुँ एाघात==४ घा,श्र+४ वा=(य- र )+४य.र=य__र य.र् +र+४ य.र=य+२ य.र=(य+र) मूल लेने से य+ र =वो, तब यो+श्र।र =य, योग-श्रं।र=र, बीजगएिात में चतुग्रएास्य घतस्य युतिवगँस्य चान्तरम् इत्यादि से भास्कराचायँ ने योग श्रौर घात के जान से रासचन्तर जानायँ विधि दिखलाइ॔ यहां श्राचाय॔ ने श्रन्तर श्रन्तर श्रौर् वध के जान से राशियोग सात्र किया है । वस्तुवः इन दोनों में कुछ भेद नहीं इति ॥६६॥॥