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पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः (भागः ४).djvu/१९१

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ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते

 =३२०० * १०८४५५ प्रवमशे- ३२०० * ३५०६४८१ ई  = ३४७०५६००० प्रवमशे
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                  ११६८८२७                       ११६८८२

- ३२०० *३ इ = १०८३२०८ भवमशे + ६ भवमशे - ६०० इ, प्रतः हढभगराशेष

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             ११६८८२७
= १०८३२०८ भवमशे - ११६८८२७ इ, यहां प्राचार्य ने गुणकं प्रोर हर को तीन से गुणा 
कर हढप्रवमशेष सम्बन्धी हढकुदिन हर में रवि का भगणशेष =३२४६६२४ प्रवमशे-

३५०६४८१ इ, यह साधन किया हैं इसलिये सर्वदा इसको तीन से प्रपवर्त्तनीय होना चाहिये तब ही रवि के भगण्णशेष को वास्तव स्रमभना चाहिये अन्यया प्रश्न खिल (प्रशुद्ध) समभना चाहिये ||६४||

                  इदानीमवशेषात्तिथ्यानयनमाह |
   
      गोऽगेन्दुखेश ११०१७६ गुणिताद् भक्तान्नख पक्ष यमरसेषु गुणैः |
      शेषमवमावशेषात्तिथयो ऽवमशेषकाद्विकलम् ||६५||
   सु ़ भा ़़ -प्रवमशेषकाद्विकलं वर्त्तमानतिथेर्भुक्तं मानं साध्यम् | शेषं स्पष्टम् |
      
                         अत्रोपपत्तिः |
   चान्द्रेभ्यो यान्यवमानि यच्च तच्छेषं तान्यवमानि तदेव शेषं च सावनेभ्य इति 'सावनान्यवमानि स्युश्चान्द्रेभ्यः साधितानि चेत्' - इत्यादि मिताक्षरायां स्वगोलाघ्याये भास्करेण स्फुटीकृतम् | अतो गतचन्द्रदिनः कल्पावमानि कल्पचन्द्रदिनर्भक्तानि फलं गतावमानि शेष्ं क्षयशेषम् |
 प्रतः  इखादि*कक्षदि | प्रयमभिन्नः |प्रतः क्षयदिनादि भाज्यं क्षयशेषमृणक्षेपं चान्द्रदिनानि हारं प्रकल्प्य
     -----------
        कचादि
यः कुहकः साध्यते तान्येव चान्द्रदिनानि गततिथयो भवन्ति | तत्राचार्येण लाघवार्थं रूपविशुद्धो स्थिरकुहकः साघितः स एवावमशेषगुणकः पठितः |प्रथ हढावमचन्द्रदिनञानार्थं न्यासः |
 कक्षदि = २५०८२५५००००    =५०००० * ५०१६५१
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 कचादि   १६०२६६६००००००   ५०००० * ३२०५६६८०
= ५०००० *६ * ५५७३६ = ५५७३६  =हक्षदि  प्रतो हढचान्द्रदिनान्येव हर इति सर्वं स्फुटम् |
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  ५०००० *६ * ३५६२२०   ३५६२२०  हचादि

गणितागतमवमशेषम् ५००००*१ अनेन विभज्य लब्धमात्र हढावशेषं सुधीभिर्ञेयमिति |९१़ आर्यायामन्ये येऽवशिष्टा प्रश्नास्तेषामुत्तराणि क्षयशेषादहर्गणमानीय ततोऽहर्गणात् कार्याणि |६२ प्रार्यायां च ये प्रश्नस्ते-