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भावितबीजम् १२३७ अब भावित में प्रकारान्तर कहते हैं। । हि. भा.-भावित समीकरण में जिन वर्णों का घात है उसके प्रमाणतुल्य विनष्ट वर्गों से इष्ट कर वर्णाक्य को उससे गुणा करने से रूप होते हैं । एक वर्गों को छोड़ कर अन्यों के मान इष्ट.कल्पना कर वर्णगुणकों का ऐक्य जो हो वे रूप होते हैं । इष्टवर्षे प्रमाण और भावित गुणक का घात इष्टविमुक्त वर्णसंख्या होती है । एवं भावित समी करण विना भी वर्णमान सिद्ध होता है। अतः पूर्व में किया हुआ भावित क्यों किया जाय । बीज गणित में ‘मुक्तू वेष्टवर्ण सुबिया परेषां’ इत्यादि भास्करोक्त आचार्योंक्त के अनुरूप ही है इति ।।६३।। इति भावित बीज समाप्त हुआ ।