अनेकवर्गसमीकरणबीजम् १२२४ रविभगणांश xय=xय= ककु . गतभगण+अ शशे = ककु : क + अ शशे समशोधनेन अ शशे=र xय–कछु . क इदं षष्टिगुणितं कल्पदिनभक्त तदा ६० (र. य-कसु. )—न खेदगमेन ६० . य-६० ककु, क= कर्. न एत प्रथमपके विशोध्य जातं कलाशेषस्=६० र.य-६० ककुक-ककु, न, अतः अंशो + कलाशे =६० र. य–६० ककु . कककु . न+र यककु . क=य (६० र+र)-ककु (६१ क+न)=यो समयोजनेन यx६१ र=यो+ककु (६१ क+न) समशोधनेन य. ६१ र यो यx६१ र – योकैककु (६१ क+न) पक्षौ ककुभक्तौ तदा = ६१ क+न अत्र कुट्टक युक्त्या य मानं सुगमतया विदितं भवेत् । एवमन्तरतोऽपि कर्म कर्तव्यमिति ॥५५॥ अब अन्य दो प्रश्नों को कहते हैं । हि. भा.-सूर्य के कलाशेष में अंश शेष जोड़ने से जो होता है उससे वा कलाशेष और अ' शोष के अन्तर से बुधदिन में शो अङ्गंण को कहता है वह कूट्टक का पण्डित है इति । उपपत्ति । कल्पना करते हैं अहर्गण प्रमाण=य। रविभगणांश=चभा+विभ ==र, गतभगण रविभगणांश. थ=रं• य =गतभगण+अशशे==क+अशरा छेदगम से == कं तब र. य=कृ. क+अ शशी समशोधन करने से र. य-कु. क=अ शशे, इसको साठ से गुणा कर कल्पकुदिन देने से र. =-न, वेदगम से ६० (र. य–कृ. क) से भाग यकझ) ६० (. क
६०४र . य–६० ककु . क=ककु . न इसको प्रथम प्रक्ष में से घटाने ' से कलाशे
६०४रय–६० ककु • क–कंकु • न, अतः अ शो+कलाच ==यो== ६०४र य-६० ककु . क-ककु. न+र. य-वङ. क८य (६० र+२)- ककु (६१ क+न)=यो=य. ६१ –कछु (११ क+) दोनों पक्षों में की (६१ क+न) जोड़ने से य. ६१= द्+कंकु (६१ क+न) समशोधन से य. ६१रयोकचु (६१ क+न) दोनों पक्षों को ककु से भाग देने से . ६१ क+-, पहाँ कुट्टक से य मान सुगमता ही से विदित हो य६१ र-थ्यो जायगा इति ॥५५॥ इदानीमन्या प्रश्नानाह । अंशकशेषं त्रियुतं लिप्ताशेषं कवा रवेलैंदिने । षट्सप्ताष्टौ नव वा । कुर्वन्नावत्सराश्च गणकः ।५६।