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१२१० ब्राह्नस्फुटसिद्धान्ते
वि-भा,-वर्गेरणव्यक्तवर्गगुरगकेन गुरिगतानां रुपारगां (व्यक्ताङ्कानां) अव्यक्तगुरगकार्धवर्गसंयुतानां युन्मुलं तदव्यक्तगुरगकार्धेन हिनं तदव्यक्तवर्गगुरगकविभक्त तदाऽव्यक्तराशिमानं भवेदिति ॥ श्रत्रोपपत्तिः । पूर्वसूश्रोपपत्तौ ४ गु (गु.य^२+गु.य )+गु^२=गु^२+४ गु.व्य पक्षौ चतुर्भिरपवत्तितौ गु.(गु.य^२+गु.य)+गु/४=गु/४+गु.व्य=गु^१.य^२+गु.गु.य+गु/४=गु/४+गु.व्य पक्षयोमुल ग्रहरगेन गु.य+गु/२=√गु/२+गु.व्य पक्षयो गु/२ हीनौ तदा गु.य=√गु/२+गु.व्य-गु/२ पक्षौ गु भक्तौ तदा य=√गु/२+गु.व्य-गु/२/गु एतेनाचार्योक्तनमुपपन्नभ् ॥४५॥
श्रब प्रकारान्तर से वगं समीकररग में श्रव्यक्त मान लातें हैं ।
हि.भा.-श्रव्यक्त वर्ग गुरगक से गुरिगत रुपमें श्रव्यक्त गुरगकार्ध
वर्ग जोडकर जो मूल हो उसमें से श्रव्यक्त गुरगकार्ध को घटाकर श्रव्यक्त वर्ग गुरगक से भाग देने से राहि मान होता है इति ।
उपपति । पूवं सुत्रोपपति में ४ गु (गु.य^२+मु.य)+गु^२=गु^२+४ गु.व्य दोनों पक्षों को श्र्वार से श्रपवर्त्तन देने से मु (गु.य^२+गु.य)+ गु^२/४=गु^२/४ +गु.व्य=मु^२.य^२ + गु.गु.य + गु/४=गु/४+गु. व्य दोनों पक्षों के मूल ग्रहरग करनेसे गु.य+गु/२=√गु/२+गु.व्य दोनों पक्षों में गृ/२ घटाने से गु.य=√गु/२+गु.व्य-गु/२ दोनों पक्षों ।