पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/५८१

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५६४ ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते उपपति यदि ऊनदिनमान में ऊनदिनोईदत घटी पाते हैं तो अधिक दिनमान में क्या उस अनुपात से युतिकाल में अधिक दिनोदित घटी प्रती है, यहां आचार्यों ने दोनों ग्रहों की दिनमान गत धटी के मध्य में तुल्य निष्पत्ति स्वीकार की है । यदि लब्धघटी अधिक दिनगतघटी से अधिक हो तो युतिगत अन्यथा एष्य होती है, दोनों के अन्तर को आद्य कल्पना करना, इष्ट घटी से दोनों ग्रहों को चालन देकर फिर अन्तर को अन्य संज्ञक करके अनुपात करते हैं । यदि आद्य और अन्य के प्रन्तरतुल्य अपचय में इष्ट घटी पाते हैं तो आद्यतुल्य अपचय में क्या इससे जो फल नाड़ी आती है उससे आद्यकाल से पहले वा पीछे अद्यतुल्य अपचय से अन्तराभाव होता है इसलिये वहां युति होती है, ग्रहगति और शरगति की विलक्षणता के कारण असकृत्क्र्म करना उचित है परन्तु आचार्यों ने स्वल्पान्तर से उसको छोड़ दिया है । बिजातीय प्राद्य और अन्य का अन्तर करने से दोनों का योग होता है उससे भाग देकर फल ग्रहण करना चाहिये । सिद्धान्तशेखर में अल्पथुखेचरसमुद्गतनाडिकाभिज्येष्ठ दिनं निहतमल्पदिनेन भक्तम् ” से लेकर ‘‘भवनि पूर्वमथोत्तरकालिका गणितदक्समता विधिनाऽमुना तक सस्कृतोपपत्ति में लिखित श्लोकों से श्रीपति ने प्रचायक्त के अनुरूप ही कहा हैं इति ॥२२-२३-२४ ॥ इदानीं कदा युतिर्भवतीत्याह स्वदनघटिका विभक्तस्तदितपरदिवसनाडिकाघातः । तुल्यः परोदिताभिर्घटिकाभियदि युतिग्रहयोः ॥२५। सु- भा.- तदुदितपरदिवसनाडिकाघातः स्वदिनघटिकाविभक्तो यदि पोदिताभिर्घटिकाभिस्तुल्यस्तदा तयोशं हयोर् तिर्भवतीति वेदितव्यम् । अत्रैतदुक्त भवति । एकस्य गता घाटका : परस्य दिनमानघटिकाभिर्गुणा एकस्य दिनमानेने हृता : फलतुल्या यदि परस्य गतघटिका : स्युस्तदा तयोर्गेहयोः कदम्बप्रोतीया युतिर्वाच्येति पूर्वसाधितयुतिकालत : स्फुटम् ।। २५ ।। वि. भा.तदुदित पर दिवसनाड़िकाघातः स्वदनघटिकाविभक्तो यदि परोदिताभिर्घटिकाभिस्तुल्यस्तदा तयोशं हयोयुतिर्भवतीति ज्ञयम् । अत्रं तदुक्त भवति । एकस्य गतघटिकाः परस्य दिनमानघटिकाभिगुणिता एकस्य दिनमानेन भक्ता लब्धतुल्या यदि परस्य गतघटिका भवेयुस्तदा तयोरौद्योः कदम्बश्रोतीया तिर्वाच्येति । अत्रोपपत्तिः यद्येकस्य दिनमनेन तस्य दिनगतघटिका. लभ्यते तदा परस्य दिनप्रमाणेन किमिति परस्य दिनगतघटिकाः प्रागुतचा भवन्तीति तदैवैषा तयोशं हृयोर्युतिर्वक्तु मुचिता नान्यथेति पूर्वेकथितयुतिविवेचनया स्फुटा, सिद्धान्त शेखरे “गुणितभपर