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पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/५४०

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गैहयंत्यधिकारः ५२३ मझना चाहिये। यदि अपगतप्रह अधिक गतिग्रह से अधिक हो तब पूवं विधि से समागत दिनों में ग्रझयुन एड्थ समझ ही चहिये । दोनों ग्रह वक्री हें तब विपरीत होता है अर्थात् शूद्रक गत लक्षेश को एष्य तया एष लक्षण को गत समझना चाहिये, यदि दोनों अहों में एक ग्रह वक्री हो तब ग्रहान्तर को गतियोग से भाग देने से लघ दिन होते हैं । यदि मार्ग गति ग्रह के वक्री ग्रह अल्प हो तब पूर्वं लब्घ दिनों में युति गत कहनी चहिये, यदि अधिक हो तो एध्य समभ इिए प्रहान्तर क आ को पूर्वकथित स्थिति के अनुसार ग्रहाति ने अन्तर व योग से भाग देना फ़त को अपनी गति से गुणने से चालन च कला होती है इति ॥५-६ ॥ उपयति एक दिशा में चलने वाले दो ग्रहों का गयन्तर ही प्रत्येक दिन में अन्तर होता है, यदि दोनों अहों में एक ग्रह पूर्व दिशा में चले और दूसरा ग्रह पश्चिम दिशा में तब दोनों की गति का योग करने से अन्तरज्ञानहोता हैं ।तब अनुपात करते हैं। यदि गत्यन्तर कला में एक दिन पाते हैं ता ग्रहन्तर कला में क्या इससे जो लब्म दिन हो उतने दिन पहले युति कहनी चाहिये । यकि अल्पगति ग्रह के अधिक गतिग्रह ने न्यून रहने से वा वक्र ग्रह के न्यून रहने से दूसरे अह उसको अतिक्रमण कर आगे चले जाते हैं । दोनों प्रहों के वक़ी रहने से इसके विपरीत होता है, अब चालन फल के लिये अनुपात करते हैं यदि गत्यन्तर कला व गतियोग कला में एक दिन पाते हैं तो ग्रहान्तर कला में क्या इससे ग्रहान्तर कल । सम्वन्धी । दिन अते हैं तब पुन: अनुपात करते हैंएक दिन में यदि अहमतिकला पाते हैं तो प्रहान्तर कला सम्बन्धी दिनों में क्या इससे ग्रहान्तर कला सम्बधी दिन जनित ग्रहगति आती है। इसके संस्कार के लिये आगे के श्लोक में आचार्य व्यवस्था करते हैं ।“सिद्धान्त शिरोमणि’’ में भास्कराचार्य ‘दिवौकसौरन्तर लिप्तिकौघात् इत्यादि से आचायवतानुरूप ही फ़वे हैं । सिद्धान्त शेखर में ‘भुक्त्यन्तरेण विवरे प्रइयो विभक्ते इत्यादि से' श्रीपति भी उसी तरह कहते हैं इति ॥ ५-६ ।। इदानीं चालनफलसंस्कार द्वार प्रहयोः समलितोत्रणार्थमाह स्वफलमूणं प्राक् पश्चाद्युत घनं वक्रिणि व्यस्तम् । समलिप्तौ बुधसित शीघ्रचन्द्रपातेषु च स्वफलम् ॥ ७ ॥ सु-भा-- प्रायुतौ (गतेयोगे) स्वफलं पूर्वागतमृण पश्चाद्यतावेष्ययोगे धनं भवति । विक्रिणि ग्रहे च चालनं व्यस्तं देयं गतयोगे वनमेष्ययोगे ऋणमि त्यर्थः । एवं ग्रहौ युतौ समलिप्त तुल्यौ भवतः । एवं यदि केनापि ग्रहेण सह युध शुक्रचन्द्रा युतिं कुर्वन्ति तदा बुधशुक शोघ्रोच्चयोश्चन्द्रपाते पूर्वागतं स्वचालन फलं देयं ।