पृष्ठम्:बृहत्सामुद्रिकाशास्त्र.pdf/३६

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अपलोमाविलासरछा करनेवाली सामुद्रिकशास्त्रम् । कानी स्त्री पुंश्चली ( व्यभिचारिणी) होती है अर्थात् जिस स्वीक। वायां नेत्र नहीं होता है वह दूसरे पुरुपके साथ रमण करनेवाली होती है ॥ २० ॥ सदा धनवती नारी मधुपंगललोचना ॥ पुत्रपौत्रसुखोपेता गदिता पतिसम्मता॥ २१ ॥ अर्थ-शहद समान पीले नेत्रवाली स्त्री सदा धनवती होवे अ- थत जिस स्त्रकि नेत्र शहदके रंगके समान पाले हों वह स्त्री सदैव धनसे पूर्ण रहती है और पुत्र पत्रके सुखसे युक्त पतिकी इच्छासे । वर्ताव करनेवाली अर्थात् पतिव्रता होती है यह आचायाँने कहा है ॥ २१ ॥ | नेत्रपक्ष्म ( पलक ) लक्षण।। कोमलैरसिताभासैः पक्ष्माभिः सुघनैरपि ॥ लघुरूपधरैरेव धन्या मान्या पतिप्रिया ॥२२॥ अर्थ-कोमल, काले, चमकीले और सुन्दर, घने, छोटे रुप धा- रण करनेवाले पलक जिस स्त्रीके हों वह धन्या, मान्या और पतिप्रि- या होती है अर्थात् जिस स्त्रकि नेत्रों के पलक कोमल, काले रंगके, चमकदार हों,और दर्शनीय घने हों और छोटे छोटे हों वह स्त्री पुरु- पोंमें सन्मान पाने योग्य और अपने पतिकी प्यारी होती है ॥२२॥ रोमहनैश्च विरलैलम्बितैः कपिलैरपि ॥ पक्ष्माभिःस्थलकेशैश्च कामिनी परगामिनी ॥२३॥ अर्थ-रोमीन, विरले, लम्बे, कपिलवर्ण (पले) और मोटे केशवाले पलकोंवाली स्त्री प्रगामिनी होती है अर्थात् जिस स्त्रक नत्राके पलक रोमरहित हों, विरले हों, लम्बे हों और पीले रंगके हो और उनके केश ( बाल ) मोटे हों तो ऐसे पलकोंवाली स्त्री पराय पुरुषसे रमण करनेवाली होती है ॥ २३॥ भापाटीकासहितम् । धुकुटीलक्षण । वर्तुला कोमला श्यामा भृर्यदा धनुराकृतिः ॥ अनंगरंगजननी विज्ञेया मृदुलोमशा ॥ २४॥ अर्थ-जिस स्त्रीकी चू ( भौंह) वर्तुल ( गाल), कोमल, श्याम वर्ण ( सांवले रंगकी) और धनुष के आकार तथा कोमल रोमों से यक्त हों तो वह स्त्री कामदेवके आनन्दुको उत्पन्न करनेवाली अर्थात अपने पतिको कामकलोल करके प्रसन्न करनेवाली होती है ॥२४॥ पिंगला विरला स्थूला सरला मिलिता यदि ॥ दीर्घलोमा विलीमा च न प्रशस्ता नतभुवा ॥२८॥ अर्थ-जिस स्वकी भौंहपर रोम भूरे हों, विरले सीधे अथवा मिले हुए व बडे हों अथवा रोम नहीं हों, यद्वा झुकी भौहें हों तो शुभ नहीं जानना ॥ २५॥ कर्णलक्षण ।। प्रलम्बौ वर्तुलाकारौ कण भद्रफलप्रदौ ॥ शिरालौ च कृशौ निन्द्यौ शप्कुलीपरिवर्जितौ ॥२६॥ अर्थ-जिस स्त्रीके कान लम्बे और गोल आकार के हों वे शुभ फल देनेवाले होते हैं, एवं जिस स्त्रीके कान नसोंदार और कृश (सूखे ) तथा शष्कुली ( फेणिका) रहित हों तो ऐसे कान अच्छे नहीं होते हैं ॥ २६॥ दुन्तलक्षण ।। उपर्यधः समा दन्ताः स्तीकरूपा पयोरुचः ॥ द्वात्रिशदायगा यम्याः सा सदा सुभगा भवेत्॥२७॥ अर्थ-जिस स्त्रीके ऊपर और नीचके दांत घरावर हों और मिले हुए हों, परंतु एक दूसरेपर दाँत चढा न हो तथा दूधके तुल्य सपेद्