पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/६४

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करणपडिम् | है वही करणियों का योग होता है इस कारण इसमें दो करणियों का दूना मूलघात युतिवर्ग के लिये जोड़ते हैं और अन्तरवर्ग के अर्थ घटाते हैं । करणियों के मूलों का घात और करणियों के घात का मूल ये एक ही होते हैं, कारण यह है कि जोवर्गों का मूलघात होता है वही घातमूल भी होता है । वर्गक्रिया में उद्दिष्ट राशि का समान दो घात होने से वर्गघात चतुर्घात है, इसी प्रकार उद्दिष्ट दो राशि को दो स्थान में रक्खो और उनका घात करो वह वर्गात होता है । जैसा - ३ | ५ ये दो राशि हैं। इनके वर्गधात अथवा घातवर्ग के लिये चार राशि होंगे ३ । ३ । ५ । ५ । इनका वर्ग १ | २५ और घात १५ । १५ हुआ अब उन वर्गों का घात २२५ और घातों का घात २२५ पहिले चार राशियों का घात है इससे स्पष्ट ज्ञात होता है कि वर्गवात और वातवर्ग इनका भेद न होने से जो घातवर्गका मूल होता है वही वर्गधात का मूल है और घातवर्ग वर्गघात इनका मूलघात ही होता है इससे 'योगं करण्योमहतीं प्रकल्प्य घातस्य मूलं द्विगुणं लघुं च | योगान्तरे रूपवदेतयोः स्तः -' इतना सुत्र उत्पन्न हुआ । करणीषद्धिध में करणियों के मूलों का षड्विध साधते हैं जैसा-क २ । क ८ इनका योग १० सिद्ध होनेपर भी मूलों के योग के लिये क १८ सिद्ध की वैसाही करणियों का गुणन ऐसा करना चाहिये जिसमें उनके मूल गुणे जावें, केवल करणियों को दो आदि संख्याओं से गुण देने से उनके मूल दो आदि संख्याओं से नहीं गुणे जाते इसलिये उनको दो आदि संख्याओं के वर्ग से गुणना योग्य है जैसा - ४ राशिको दूना करना है तो इसके वर्ग १६ को दूना किया तो ३२ हुआ परंतु इसका मूल दूना नहीं हुआ इस कारण राशि के वर्ग को दों के वर्ग से गुण देने से मूल दूना होजायगा इसी प्रकार भजन में भी युक्ति जानो इस लिये 'वर्गेण वर्ग गुणयेद्रजेच्च' यह सूत्र भी उपपन्न हुआ ||