पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/४४

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वर्णपडियम् । है - जैसा सात आढक वान्य का १ एक समूह वर्तमान है इसको इसी से गुण देने से १ हुआ, अब इस सात आढक के समूहात्मक होने से एक से गुणा हुआ समूह अथवा समूह से गुणा हुआ समूह इसका भेद दुर्ज्ञेय होता है, पर एक गुण्य में गुणक के भेद होने के कारण गुणनफल में अ- वश्य भेद होता है इसलिये गुणनफल को समूह वर्गरूपी कहना उचित है तो वे उनचास आढक हुए इस कारण सजातीय दो वर्षों का घात वर्ग. होता है यह बात सिद्ध हुई । इसी प्रकार दो तीन चार आदि सजातीय वर्णों के घात करने से उनके घन, और वर्गवर्ग आदि होते हैं इससे

द्वित्र्यादिकानां समजातिकानां वधे तु

(दयः स्युः ' इतना सूत्रखण्ड उपपन्न हुआ || विजातीय वर्गों के घातकरन में उनका भावित होता है ऐसा जो पूर्व कहा है उसकी युक्ति दिखलाते हैं- - सातक धन्यवाला १ एक समूह है और पांच आढक धान्यवाला दूसरा १ एक समूह है, इन दोनों समूहों का चात १ हुआ, अब इसे सात आढक धन्यवाला समूह नहीं कहसक्के क्योंकि एक गुणित और समूहगुणित का अभेद होगा, और समूहवर्ग भी नहीं कहसक्ते क्योंकि समूह को अपने से गुणने से और दूसरे समूह के गुणने से जो गुणनफल उत्पन्न होंगे उनका भेद होना उचित है, इस कारण उन दोनों समूहों का घात एक विलक्षण ही है, ऐसा मानने से ३५. आदक होते हैं और ऐसा होना योग्य भी है इसलिये विजातीय वर्णों कासे होना युक्त है। यहां याचार्यों ने घात की 'भावित ' यह संज्ञा रक्खी यदि ' वध ' यह संज्ञा की जाती तो कदाचित् यांवत्ता- वत्वर्ग के साथ संकर ( मेल ) होता, 'घात' संज्ञा करने से कभी याव- तावत् घन के साथ संकर होना संभव था, गुणनशब्द के आदि अक्षर लिखने से ' गुह्य ' इस अश्लील शब्द की भावना होती और हतिशब्द के प्रथम व्यक्षर लिखने से कदाचित् हरितकवर्ण की भ्रान्ति होती यदि और