पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/१८३

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बीजगरिएते । प्र. अ.क. द्विक रं आज्ये. द्विज्ये १ और प्रकृति गुणित कनिष्ठवर्ग यह है प्र. आज्येव द्विकव १ प्र. द्विज्येव आकव १ क. कि. ग्रा. द्विज्ये, प्ररं इस में प्रकृति का भाग देने से कनिष्ठवर्ग हुआ आज्येव द्विकव १ आक. द्विक. आज्ये. द्विज्ये २ द्विज्येव. या १ इसका मूल कनिष्ठ हुआ आज्ये. द्विक १ द्विज्ये आव १

इससे अन्तरभावना का सूत्र उपपन्न हुआ || पदानयन की उपपत्ति | प्रकृति से गुणित और क्षेत्र से युक्त कनिष्ठवर्ग ज्येष्टर्म होता है इस .' नियम के अनुसार दो पक्ष हुए कव. प्र १ क्षे १=ज्येव १ कोई बर्गराशि वर्गराशि से गुणने अथवा भागने से अपने वर्गव को नहीं त्याग करता इस नियम के अनुसार दोनों पक्ष इष्टवर्ग का भाग देने से हुए कर. प्र १ क्षे १ ज्थेत्र १ इव १ इव १ यहां दूसरे पक्ष का मूल इष्ट से भागे हुए अन्य ज्येष्टको कल्पना किया . ज्ये १ किया और पहिले पक्ष में हर से भागे हुए दूसरे खण्डको अन्यक्षपकलना क्षे? इससे ' इष्टवर्गहृतः क्षेपः क्षेप: स्यात् ' यह उपपन्न हुआ । इव १ क १ फिर इष्ट से भागे हुए कनिष्ट को अन्य कनिष्ठ कल्पना किया सो