पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/१८१

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१७४ बीजगणिते । इस भांति बज्राभ्यासयोगरूप कनिष्ठ का वर्ग प्रकृति से गुणा हुआ छ खण्डवाला सिद्ध हुआ आकव. द्विकव प्रव १ आकव. द्विक्षे. प्र १ आ.द्विक आये, द्विज्ये. प्र २ आकव. प्र. द्विक्षे १ आज्येव. द्विज्येव १ आ. द्विक्षे १ यहां दूसरे चौथे खण्डको वन और ऋण होने के कारण उड़ादेने से तथा आक्षेप और द्वितीयक्षेप के घातरूपी क्षेप को जोड़देने से ज्येष्ठ- वर्ग हुआ आकव. द्विकव. प्रव आक. द्विक आज्ये. द्विज्ये. प्र २ आज्येव. इसका मूल ज्येष्ठ है आ. द्विक प्र १ आज्ये. द्विज्ये १ इससे उक्त सूत्र की उपपत्ति स्पष्ट हैं। इसीप्रकार वज्राभ्यासों के आक. द्विज्ये १ द्विज्ये. आक १ द्विज्येव १ इस [अन्तर के तुल्य कनिष्ट कल्पना करके उक्त सरणी के अनुसार अन्तर भावना की उपपत्ति जानो || • अथवा लाधव से कमलाकरोक्त उपपत्ति । . ज्येष्ठ के वर्ग में प्रकृतिगुणित कनिष्ठवर्ग को घटांदेने से शेष क्षेप र हता है तो इस प्रकार क्षेपों की दो पङ्क्ति हुई आज्येब १ हे इन का बात क्षेप हुआ द्विज्येव १ ) प्रव. माकव. द्विकव १ प्र. आज्येव. द्विकत्र १ प्र. द्विज्येव. आकाव १ आज्येव. द्विज्येव १ अब इसमें जिसके जोड़ने से भूल मिलै वही प्रकृति गुणित कनिष्ठवर्ग है इसलिये प्रकृति से भागा हुआ उस का गूल क्षेपछ्यबात के समान प्र. आकव १ प्र. द्विकव १