पृष्ठम्:पातञ्जल-योगदर्शनम् (तत्त्ववैशारदीसंवलित-व्यासभाष्यसमेतम्).djvu/३१३

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पुराणोक योगविद्या का अध्ययन पुराणों में योगविद्यासम्बन्धी विपुलसामग्री मिलती है, जिस पर दार्शनिकदृष्टि से कोई विवेचना आज तक नहीं की गई है। इस साहित्य में पातञ्जलयोग, शैव-शाक्त-वैष्णव संप्रदायगत योग एवं हठयोग-राजयोग आदि योगप्रस्थानों के विवरण है। जिसका अपेक्षित संकलन इस ग्रन्थ में किया गया है। ग्रन्थ में उपपुराणों का भी यथोचित उपयोग किया गया है। पौराणिक विवरण की तुलना दर्शन शास्त्रीय वचनों के साथ की गई है तथा प्राच्य पाश्चात्य झालोचकों की योग संबन्धी भ्रान्तियों का दूरीकरण भी यत्र-तत्र किया गया है। वैदिक वाड्मय में योगविद्या संहिता ब्राह्माण आरण्यक उपनिषदों में योगविद्या के मुख्य और गौण रूप से बहुधा निर्देश मिलते हैं, जिनका स्पष्टीकरण इस ग्रन्थ में किया गया है। जो भारतीय और भारतीय विद्वान यह कहते हैं कि योगविद्या अंशतः या पूर्णतःहै। उनकी धारणा का दूरीकरण भी इस ग्रन्थ में प्रवल युक्तियों एवं उदाहरणों के आधार पर किया गया है। वेदाङ्गगों में योगविद्या का जो विव- रण है, वह भी इस प्रन्थ में संगृहीत हुआ है। प्रत्येक वेद-प्रेमी तथा योगाभ्यासी को यह प्रन्थ अवश्य ही देखना चाहिए । [ शीघ्र ही प्रकाश में आ रहे हैं। ]