(२९४ ) नारदसंहिता। तिन चारद्वारोंमें स्थापित कर तिसी २ वेदके मंत्रोंकरके तहां चार ब्राह्मणोंका पृथक् २ पूजन करे आचार्य इसप्रकार कुलकी मर्यादाके अनुसार पूजा कर ॥ ११ ॥ स्थापयेत्तु व्याहृतिभिस्तस्मिन्कुंडे हुताशनम् ॥ ततस्तदाज्यभागांते मुख्याहुतिमतंद्रितः ॥ १२ ॥ फिर व्याहृतियोंकरके तिसकुंडमें अग्नि स्थापन करे । फिर साव धान होकर आज्य भाग आहुति देकर मुख्य आहुति देना ।।१२। अग्नये स्वाहेति हुत्वा घृतेनादौ प्रयत्नतः । एवं तु पूजामंत्रेण ह्याद्यं तु प्रणवेन च ॥ १३ ॥ पलाशसमिदाज्यन्नैः शतमष्टोत्तरं हुनेत् ॥ प्रत्येकं जुहुयाद्भक्त्या तिलान्व्याहृतिभिस्ततः ॥ १४॥ अग्नये स्वाहा' इसमंत्रसे पहले यत्नसे घृतकरके होम करे ऐसे पूजाके मंत्रसे आद्यंतमें ऊँकार कहके पलाशकी समिध, घृत, तिला अन्न इन्हों करके अष्टोत्तरशतं १०८ आहुति होमना फिर प्रत्येक मंत्रमें भूर्भुवः इत्यादि व्याहृति लगाकर तिलोंसे होम करना ।। १ ३ । १४ ।। एकरात्रं त्रिरात्रं वा नवरात्रमथापि वा । अनेन विधिना कुर्याद्यथाशक्त्या जितेंद्रियः ॥ १६॥ एक रात्रितक वा तीन रात्रितक वा नव रात्रितक इसविधिसे । शक्तिके अनुसार जितेंद्रिय होकर हवन करे ।। १५॥