पृष्ठम्:नारदसंहिता.pdf/२३८

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भाषाटीकास ०-अ० ३४. (२३१ ) उत्तरायण सूर्य होवे तब नवीन घरमें प्रवेश करना चाहिये राजा यात्रासे निवृत्त होकर घरमें प्रवेश हो अथवा वरवधूका प्रवेशक वह भी इसीप्रक़ार मुर्हूतमें होना चाहिये ॥ १ ॥ विधाय पूर्वदिवसे वास्तुपूजां बलिक्रियाम् । माघफाल्गुनवैशाखज्येष्ठमासेषु शोभनः ॥ २॥ पहिलेदिन वास्तुपूजा बलिदान करके माघ,फाल्गुन, वैशाख ज्येष्ठ, इनमहीनोमें प्रवेशकरना शुभहै ।। २ ।। प्रवेशो मध्यमो ज्ञेयः सौम्यकार्तिकमासयोः ॥ वस्वीज्यांत्येंदुवरुणत्वाष्ट्रमित्रास्थिरोडुषु ॥ ३ ॥ और मार्गशिर तथा पौषमासमें प्रवेशकरना मध्यम है । और धनिष्ठा, पुष्य, रेवती, मृगशिर,शतभिषा, चित्रा, अनुराधा इन नक्ष त्रोंमें और स्थिर संज्ञक नक्षत्रोंमें प्रवेश करना ॥ ३ ।। शुभः प्रवेशो देवेज्यशुक्रयोर्दश्यमानयोः ॥ व्यर्क़ारवारतिथिषु रिक्तामावर्जितेषु च ॥ ४ ॥ बृहस्पति तथा शुक्रके उदयमें प्रवेश करना शुभहै मंगल तथा शनिवारके बिना और रिक्त तथा अमावस्या तिथिके बिना अन्य दिनमें प्रवेश करना शुभदायक कहाहै ॥ ४ ॥ दिवा वा यदि वा रात्रौ प्रवेशे मंगलप्रदः । चंद्रताराबलोपेते पूर्वोक्तवर्जितेषु च ॥९॥ दिनमें अथवा रात्रिमें भी प्रवेश करना शुभहै परंतु पूर्वोक्त अशुभ तिथ्यादिकोंको वर्जकर चंद्रताराका बल देखलेना चाहिये ॥ ५॥