पृष्ठम्:नारदसंहिता.pdf/१७

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( १० ) नारदसंहिता। राजानमन्यं कुरुतो लोहितावुदयास्तगौ । उदयास्तमये भानुराच्छिन्नः शस्त्रसन्निभैः ॥ २८ ॥ घनैर्युद्धं खरोष्ट्राधैः पापरूपैर्भयप्रदः । ऋतुकालानुरूपोऽर्कः सौम्यमूर्तिः शुभावहः ॥ २६ रविचारामिदं सम्यग् ज्ञातव्यं तत्ववेदिभिः ॥ २७ ॥ इति श्रीनारदीयसंहितायां सूर्यचारः ॥ दूसरा राजाका राज्य हो और उदय अथवा अस्त होते समय सूर्य वा चंद्रमा रुधिरसमान लालवर्ण होवें तो भी राज्य नष्ट हो उदयसमय वा अस्तसमय सूर्य तथा चंद्रमाको शस्त्र सरीखे आकार वाले बादल आच्छदित कर लेवें तो युद्धहो और गधा ऊंट आदिके आकारवाले बादलोंसे आच्छादित होय तो प्रजामें भयहो तथा ऋतु और कालके अनुरूप सुंदर स्वच्छ आकार सूर्य होय तो शुभ फल होवे इस प्रकार यह सूर्यचर पंडित जनोंसे अच्छे प्रकारसे समझना चाहिये ॥ २५ ॥ २६ ॥ २७ ॥ इति श्रीनारदसंहिताभाषाटीकायां सूर्यचारः । याम्यश्रृंगोन्नतश्चंद्रोऽशुभदो मीनमेषयोः। सौम्यश्रृंगोन्नतश्रेष्ठो नृयुग्मकरयोस्तथा ।। १ ॥ उदयकालमें मीन और मेषके चंद्रमाका श्रृंग दक्षिणकी तर्फ ऊंचा हो तो अशुभदायक है और मिथुन मकरके चंद्रमाक उत्तरी तर्फका कोना ऊंचा हो तो शुभ है ॥ १ ॥