पृष्ठम्:धम्मपद (पाली-संस्कृतम्-हिन्दी).djvu/९१

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४७ [ •B] अनुवाद--ग्रह छक अन्धे जैसा , यहाँ देखनेवाळे थोडे ही हैं, बाकमे मुळ पक्षीकी भाँति विरले ही स्वर्ग जाते हैं। बैतवन तस भिक्षु १७५–हंसादिष्वपये यन्ति आकासे यन्ति इद्धिया। नीयन्ति धीरा लोकम्हा नेत्वा मारं सवाहिणेि ॥६॥ (हंसा आदित्यपथे यन्ति, आकाशे यन्ति ऋद्धिया। नीयन्ते धीरा लोकान् जित्वा मारं सवाहिनीकम् ॥ ९ ॥) अनुवाद---इंस सुद्दीपय (=आकाश)में जाते हैं, (योग) यद्धि-यछ} से आकाशमें जाते हैं, धीर (पुरुष) सेना-सहित सारको पराजित कर कोकमै ( निर्वाणको ) ठे जाये जाते हैं। चिंचा ( माणविका ) १७६-एकं धम्मं अतीतस्स मुसावादिस्स जन्तुन । वितिएपरलोकस्स नयि पापं अकारिणे ॥१०॥ (एकं धर्ममतीतस्य मृषावादिनो जन्तोः। चिंतीर्णपरलोकस्य नास्ति पापमकार्यम् ॥ १० ॥ अनुवाद-यो धर्मको अतिक्रमण कर चुका, जो प्राणी पाषादी , जो परतो (का स्याल ) छौह चुका है, उसके द्वियें कोई पाप अरणीय नहीं। तमन ( अयुक्त दान ) १७७-न [ वे ] हरिणा देवलोकं वनन्ति चाला ह वै न प्पासंसन्ति दानं ।