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पृष्ठम्:धम्मपद (पाली-संस्कृतम्-हिन्दी).djvu/१०२

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५५ ॥ [ ९१ अनुवाद--वैरियोंके प्रति (भी ) अवैरी हो, अहो ! हस ( कैसा ) सुखपूर्वक जीवन बिता रहे हैं, बैरी मनुष्य के बीच अवैरी होकर हल विहार करते हैं । भयभीत अनुव्योमें अभय हो, अहो ! हम सुखपूर्वक जीवन बिता रहे हैं; भयभीत मनुष्य के बीच निर्भय होकर हम विहार करते हैं। उत्सुकं (=आसक्कों)में उत्सुकता-रहित ३० । पंचखाया (आक्षणमाम, मगध ) २००-सुमुखं वत ! जीवाम येसं नो नस्थि कितनं । पीतिभा मविस्साम देवा आभस्सरा यथा ॥१॥ ( सुखं चत । जीवामो येषां नो नास्ति किंचन । औतिभया भविष्यामो वैवा आभास्वरा यथा ।। ) अनुवाद-जित इस (कोण के पास कुछ नहीं, अझ ! वह हरू कितना सुषसै जीवन बिता रहे हैं। इस आभास्वर देवताओं की भाँति प्रतिभक्ष्य (=औति ही भजन है जिनका) हैं। २० १-जयं वैरं पसवति दुक्खं सेति पराजितो । उपसन्तो मुखं सेति हित्वा जयपराजयं ॥॥। (जयो वैरं अस्ते दुःखं शेते पराजितः । उपशान्सा सुखं शेने हित्वा जयपराजयौ ॥५ ) अनुवाद-विषय वैरक उत्पन्न करती है. पराजित (पुरुप ) डुपुत्रकी ( नींद ) सोता है ( राग आदि दोष जिलाके) शान्त (हैं,