( २५६) ताजिकनीलकण्ठी । • राज्यंचरंस्थिरंवालग्नपगगनेशयोः सहयोः ॥ यद्येकोमंदःस्यात्केंद्रेतत्स्थितमथोन्यथावाच्यम् ॥ १२ ॥ यह राज्य चर वा स्थिर कैसा होगा ऐसे प्रश्नमें लग्नेश दशमेश साथही केन्द्रमें हों उनमेंसे एक मन्दगति उपलक्षणसे अल्पांश हो तो राज्य स्थिर होगा अन्यथा अस्थिर कहना ।। १२ ।। यदिवासवाममार्गेभूमे प्रच्युतिर्भवेत्पूर्वम् ॥ कंबूलेसतिलभतेशीघ्रंमूसरिफेतुनपुनः ॥ १३ ॥ जो उक्तग्रह वक्री हो तो प्रथम राज्यकी हानि पीछे उन्नति होगी, कंब- ली हो तो शीघ्र राज्यलाभ और मूसरिफी हो तो लाभ नहीं होवे ॥१३॥ ग्रन्थांतरेस्वामिभृत्यप्रश्नः | शीषदयेसौम्ययुतेक्षितेवासौम्यैर्द्वितीया मसप्तमस्थैः || तृतीयलाभारिंगतैश्चपापैःसौख्यार्थलाभोनृपसेवकस्य ॥ १४ ॥ स्वामी भृत्य प्रश्नमें शुभग्रह शीर्षोदय राशिमें शुभग्रहों से युक्त दृष्ट २।८।७ में और३।१ १।६स्थानोंमें पाप हों तो राजसेवीको सुख तथा धनलाभ होवे १४ लग्नाद्दितीयेमदनेष्टमक्षैवित्तक्षयंसंभ्रममार्तिमृत्युम् ॥ कुर्वीतपापाः क्रमशोनरेंद्राद्धृत्यस्यतस्मात्परिवर्जयेत्तम् ॥ १५ ॥ लझसे दूसरे हों तो भृत्यका राजासे धनक्षय होवे जो सप्तम हों तो संभ्रम और अष्टम हों तो मृत्यु होवे तस्मात् इन स्थानों में पाप हों तो स्वाभीसेवा न करनी ॥ १५ ॥ लग्नाद्वितीयाष्टमसप्तमस्थाः पापाःप्रणाशंनृपभृत्ययोईयोः ॥ कुवैतितेष्वेवगताश्चसौम्याः कुर्युर्धनारोग्यसुखानिचोभयोः ॥ १६ ॥ लग्नसे २१८/७ स्थानोंमें पापग्रह स्वामी सेवक दोनहूंका नाश और शु- भग्रह दोनहूंको धन आरोग्य और सुख करतेहैं ॥ १६ ॥ शशांकसौम्यैरुदयास्तभावौदृष्टौयुतौवासबलैर्नपापैः ॥ प्रष्टुस्तदास्तोहृ दिपार्थिवस्यस्नेहप्रसादावकृपाप्रतीपात् ॥ १ ॥