(१४ ) ताजिकनीलकण्ठी | उत्तराभाद्रके सर्वभोग्य ६४ । ५४ का पलात्मक पिंड ३८९४ से भाग देनेके लिये, इस्को ६० से गुनाकर पला पिंड किया तो भाज्य भी ६० से गुणदिया २८८०००० भागहार ३८९४ से भागलेकर ७३९ लब्धि+शेष २३३४ को ६० से गुनाकर भागहारसे भागलिया लब्धि ३५ यह ७३९ । ३५ चंद्रमाकी गति होगई ॥ १९ ॥ ( उ० जा० ) पूर्व नतं स्याद्दिनरात्रिखंडं दिवानिशोरिष्टघटीविहीनम् । दिवानिशोरिष्टघटीषु शुद्धं द्युरात्रिखंडं त्वपरं नतं स्यात् ॥ २० ॥ ग्रहस्पष्टके उपरांत भाव स्पष्टके फलके निमित्त आवश्यकता है, लग्नदशम स्पष्टसे भाव स्पष्ट होते हैं, प्रथम दशम स्पष्टसाधनार्थ नतसाधन कहते हैं कि अर्द्ध रात्रिसे उपरांत दिनार्द्धपर्यंत पूर्वनत और मध्याह्नसे उपरांत सायंकालपर्यन्त दिवापश्चिमनत होता है. सूर्य्यास्तसे अर्द्धरात्र पर्यन्तरात्रिका पूर्व नत होता है- अर्द्ध रात्रि के बाद सूर्य्योदय पर्यन्त रात्रिका पश्चिमनत होता है. मध्याह्नके भीतरका इष्टकाल हो तो दिनार्थ में इष्टकाल घटा देना. शेष दिवा पूर्वनत होगा मध्याह्नके बाद सूर्यास्त तक इष्टकाल होतो इष्टकालमें दिनार्द्ध घटा देना, शेष दिवा पश्चिमनत होगा. सूर्य्यास्त के बाद अर्द्धरात्र तक इष्टकाल हो तो रात्रप में इष्टकाल को घटा देना शेष रात्रिका पूर्वनत होताहै, और अर्द्धरात्र के बाद सूर्योदय तक इष्टकाल हो तो इष्टकाल में राज्यई घटा देना, शेष रात्रिका पश्चिमनत होगा. यहाँ १५ में नत घटाने से उन्नत होताहै परंच उन्नत का कोई प्रयोजन नहीं है इस लिये उन्नत का नाम नहीं लिखाहै. इन नतोंका प्रयोजन दशम स्पष्ट में लगेगा. उदाहरण- यहां इष्टकाल घ.१३ १.५४३, दिनाई घ.१६५.३१ है, दिनार्द्ध में इष्टकाल घटाया तो शेष रहा घ. २ प.३७ यह दिनका पूर्वनत हुवा ॥ २० ॥ ( अनु० ) तत्काले सायनार्कस्य भुक्तभोग्यांशसंगुणात् । स्वोदया त्खाग्निलब्धं यद्भुक्तं भोग्यं वेस्त्यजेत् ॥ २१ ॥ इष्टनाडीपले-