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पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/२११

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भाषाटीकासमेता । समरासिंहे । (२०३ ) आय-अमुकंवदेतिकायैकदा भविष्यत्यमुत्रपृच्छायाम् ॥ 'ल'लग्नाधिपतिः कार्यकाधिपः पश्येत् ॥ २२ ॥ ल स्थ:कार्येशः पश्यतिचे ग्रपंतदेवभवेत् ॥ तत्कायैयद्यन्यः स्थितःसत्वरंतदानस्यात् ॥ २३ ॥ जब कोई पूछे कि हमारा अमुक कार्य्य कब होगा तो इस प्रश्नके में कार्येश कार्य्यको देखे अथवा लग्नेश लग्नको देखे तो कार्य शीघ्र होगा कहना जो काम्पैश लग्न में हो लग्नेशको देखे तौभी शीघ्र होगा, जो. लग्नेश अन्यत्र हो तो शीघ्र न होगा ॥ २२ ॥ २३ ॥ पश्यतियदाचल द्रक्ष्यतिचंद्रोविलग्नंपंचयदा || लग्नेकार्ये चयदा द्वयोश्चयोगेतदासिद्धिः ॥२४॥ यदि लग्नपोनपश्यंतिकार्य्याधीशोवि- ल थतस्य || कार्य्यस्यहानिरुक्तालग्नमृतेकिमपिनोवाच्यम् ॥ २५॥ जो चन्द्रमा लग्नको तथा लग्नेशको देखे अथवा लग्नेश काय्र्येश एकही स्थानों में हों तो क़ार्म्यसिद्धि होगी ॥ २४ ॥ जो लग्नेश कार्येशको न देखे यद्वा कार्य्यस्थानको भी न देखे तो कार्य्यहानि कही है, लग्नको छोड़कर और भावोंसे भी विचार न कहना ॥ २५ ॥ न्थान्तरे प्रकीर्णकम् । अ ० - लग्नपोमृत्युपश्चादिमृत्यौस्यातामुभौयदि ॥ - स्थितौद्रेष्काणएकस्मिन् लभस्तदा ध्रुवम् ॥ २६ ॥ जो लग्नेश और अष्टमेश दोनों अष्टम स्थानमें एकही द्रेष्काण में हों तो पूछनेवालेको निश्चय लाभ होगा ॥ २६ ॥ एवंद्वादश भावेषु द्वेष्काणैरेवकेवलम् ॥ बुधोविनिश्चयंत्र्या द्योगेष्वन्ये निस्पृहः ॥ २७ ॥ • ऐसेही समस्त भावोंका विचार केवल द्रेष्काणोंसे पंडितने निश्चय करके कहना और योगोंसे यही बली रहताहै ॥ २७ ॥ अनुष्टु० - लकालेसौम्यवर्गो लग्नेयद्यधिकोभवेत् ॥ ग्रहभावानपेक्षेण दाख्येयंशुभंफलम् ॥ २८ ॥