सामग्री पर जाएँ

पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१८२

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

(१७४) ताजिकनीलकण्ठी | मिथ्या धर्मसंचारसे धनप्राप्ति होवे तथा वृद्धावीका संगम होवे किलाआदि की रक्षा अधिकारकी चिंता होवे रसरहित अन्न भोजनको मिले ॥ ४० ॥ उपजा०–दशाशनेःस्वल्पबलस्यपुंसांतनोतिदुःखरिपुतस्करेभ्यः ॥ दारिद्यमात्मीयजना पवादरोगंचशीतानिलकोपमुग्रम् ।। ४१ ॥ अल्पवली शनिकी दशा पुरुषोंको शत्रु और चौरोंसे दुःख देती है तथा दरिद्रता अपने मनुष्यसे झूठा कलंक और शीत तथा वातके कोपसे उम्र- -रोग उत्पन्न होवे ॥ ४१ ॥ उपजा ० - दशाशनेर्नष्टबलस्यपुंसामनेकधा दुर्व्यसनानिंदत्ते || •- स्त्रीपत्र मित्रस्वजनैविरोधरोगादिवृद्धिंमरणेनतुल्याम् ॥ ४२ ॥ 'नष्टबली शनिकी दशा पुरुषोंको अनेक व्यसन देती है तथा पुत्रमित्रादि अपने मनुष्योंसे विरोध रोगादिकोंकी वृद्धि मरणतुल्य करती है ॥ ४२ ॥ अनुष्ट ० - त्रिष लाभोपगतोमंदोनिंद्योर्द्धसत्फलः ॥ 0- मध्योहीनःशुभोमध्यःशुभोत्यंतशुभावहः ॥ ४३ || शनि ३ । ६।११ स्थानोंमें नष्टबली भी आधा शुभफल देताही है तथा होनबली मध्य मध्यवली शुभ फल देता है उत्तमबली अत्यंतही शुभ फल देता है ॥ ४३ ॥ उपेन्द्रव० - दशातनोः स्वामिबलेनतुल्यंफलंददातीत्यपरोविशेषः ॥ 1 चरेशुभामध्यफलाघमा चद्विसूर्त्तिभेस्याद्विपरीताम् ॥ १४ ॥ लग्नकी दशा अपने स्वामिबल के सदृश फल देती है. जैसे उदित स्वगृहा- दिगत लग्नेश हो तो उसका उत्तमबली दशोक्तफल और अस्त नीच होनेमें होनबलोक्त स्वदशा फल देता है इसमें यह विशेष है कि चरलग्न में प्रथम द्रेष्का- ण हों तो दशा शुभ दूसरे द्रेष्काणमें मध्यबलोक्त और तीशरे द्रेष्काणमें हीनबंलोक्त दशा फलं देतीहै द्विस्वभाव राशि में चरसे विपरीत अर्थात् प्रथम द्रेष्काणमें अधम, द्वितीयमें मध्यम तृतीयमें उत्तम बलीका फल देती है ॥४४॥ उपें०व० - अनिष्टमिष्टंच समंस्थिर क्षैकमाहकाणैः फलमुक्तमाद्यैः ॥ सत्स्वामियोगेक्षणतः सुखंस्यात्पापेक्षणात्कष्टफलंचवाच्यम् ॥४५॥ स्थिरराशिमें प्रथम द्रेष्काण हो तो हीनबलीका दूसरा हो तो उत्तमवली