सामग्री पर जाएँ

पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१६१

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

भाषाटीकासमेता । (१५३ ) वर्षेश मंगल तृतीय वा नवम स्थानमें बलवान हो और पापयुक्त न हो तो मार्गे अर्थात् सफर गुणदायक होवे. चरकार्ग्य भी स्थिर होजावे अर्थात जलकर्म नहर आदिसे शुभत्व होवे ॥ १ ॥ अनुष्टु० - त्रिधर्मस्थोब्दपः सूर्य्यःकंबूलीमार्गसौख्यदः || अन्यप्रेषणयानंस्यात्सचेन्नाधिकृतोभवेत् ॥ २ ॥ वर्षेश सूर्य्य तृतीय वा नवम स्थानमें अधिकारयुक्त हो और चन्द्रमारो कंबूली भी हो तथा स्वगृहोच्चादिमें होवे तो अपनी इच्छासे मार्ग चलना पड़े, मार्गमें सुखभी होवे, जो वह सूर्य्य स्वग्रहादि अधिकारयुक्त न हो तो दूसरेके प्रेषणसे गमन होवे मार्ग में सुख भी न होवे ॥ २॥ अनुष्टु० - शुक्रेन्दपेत्रिनवगे मार्गसौख्यंविलोमगे || अस्तेवाकुगतिः सौम्येदेवयात्रातथाविधे ॥ ३ ॥ वर्षेश शुक्र तीसरे वा नवम स्थान में क्रूररहित हो बलवान् भी हो और वक्रगतिमें हो तो गमन होनेमें मार्गमें सौख्य होवे, जो यह अस्तंगत होकर उक्तस्थानों में हो तो कुगति इच्छासे विरुद्ध गमन होवे, और वर्षेश बुध पापरहित बलवान् तीसरे नवम स्थानमें वक्री हो तो तीर्थ वा देवता- संबंधी यात्रा होवे ॥ ३ ॥ ' 0 अनुष्ट - ॠरार्दिकुयानंस्याद्वरावेवविचिंतयेत् || इत्थशालेलग्न वर्मपत्योर्यात्रास्त्यचिंतिता ॥ ४ ॥ पूर्वोक्त बुधके सदृश वर्षस्वामी बृहस्पति पापग्रहरहित ३ । ९ स्थानों में होनेसे तीर्थ देवसंबंधी यात्रा देता है. जो हीनवली वा क्रूर पीडितादि हों तो कुयान अनिष्टगमन देता है, और लग्नेश नवमेशका परस्पर इत्थशाल हो तो अकस्मात् गमन होवे, जहांका स्मरण नहीं गमन संभावनाभी नहीं ऐसा गमन होता है ॥ ४ ॥ अनुष्टु० - लग्नेशोधर्मपंयच नस्वमहश्चिंतिताध्वदः || एवंलग्नाब्दयोर्योोंगे मुथहांगपयोरपि ॥ ५ ॥ लग्नेश अपना तेज नवमेशको देवे अर्थात् लग्नेश शीघ्रगति अल्पांश और नवमेश अधिकांश मंदगति हो, दोनों दीघांशोंके भीतर हों तो पूर्वनिश्चित