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पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/११२

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(१०४ ) ताजिकनीलकण्ठी । रोगादि दुःख तथा स्वजन वियोगादि शोक शत्रुभय और नानाप्रकार चिंता उत्पन्न करता है ॥ १० ॥ • वसं तिल-सूर्येन्दपे बलिनि राज्यसुखात्मजार्थलाभः कुलोचितविभुः परिवारसौख्यम् || पुष्टं यशो गृहसुखं विविधा प्रति शत्रुविनश्यति फले जनिखेटयुक्त्या ॥ ११ ॥ सूर्य उत्तम बली होकर वर्षेश हो तो कुलानुमान राज्य तदीय सुख और पुत्र तथा धनलाभ होबै कुलानुसार प्रभुता और कुटुंबका सौख्य मिले शरीरमें पुष्टता हो यश बढे गृहसंबंधि सौख्य होवै, अनेक प्रकारकी प्रतिष्ठा बढै शत्रुनाश होवे इतने फल जन्मकेभी स्वोच्च गृहादि उत्तम बली होनेमें होता है जन्मका हीन बली हो तो फल पूरे नहीं होते, मिश्रतामें मिश्रही फलभी होते हैं ॥ ११ ॥ A ● वसं ति० - मध्ये खौ फलमिदं निखिलं तु मध्यं स्वल्पं सुखं स्वजनतोपि विवादमाहुः ॥ स्थानच्युतिर्न च सुखं कृशता ऽपि देहे भीतिर्नृपान् थाशिलोनशुभे न चेत्स्यात् ॥ १२ ॥ सूर्य मध्य बली होकर वर्षेश हो तो पूर्वोक्त उत्तम बलका फल मध्यम होता है सुख थोडा होता है और अपने मनुष्पोंसे कलहभी कराता है, तथा स्थान वा पदसे भ्रष्ट हो जाना सुख न मिलना शरीरपीडा होजाना राजासे भय होना, और इतने फल होते हैं परंतु यह सूर्य शुभग्रहसे इत्थशाली हो तो उत्तम बलोक्त फल होते हैं ॥ १२ ॥ ● वसं ति०-~-सूर्ये बलेन रहितेन्दपतौ विदेशयानं धनक्षयशुचो ऽरिभयं च तंद्रा || लोकापवादभयसु रुजोतिदुःखं पित्रादितो पिनसुखसुतमित्रभीतिः ॥ १३ ॥ सूर्ख बलरहित होकर वर्षेश ही तो विदेशगमन तथा धननाश चिंता शत्रुभय तंद्रा (आलस्य सहित अर्द्धनिद्रा) होवे, तथा संसारमें अपवाद (झूठे कलंककी भय ) होवै, उग्ररोग उत्पन्न और अति दुःख होवै पिता माता आ- दिसेभी सुख न मिलै, तथा पुत्र और मित्रोंसेभी भय होवै ॥ १३ ॥