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पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/११०

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(१०२) वाजिकनीलकण्ठी । I करके वर्षेश नियत करना इसके विधिनिमित्त आगे युक्ति कहताहूं ॥ ४ ॥ रथोद्धता - जन्मलग्नपतिरब्दलग्नपो मुंथहाधिप इतित्रिराशिपः ॥' सूर्य्यराशिपतिरह्निचंद्रभाधीश्वरो निशि विमृश्यपंचकम् ॥ ५ ॥ कि जन्मलनका स्वामी १ तथा वर्ष लगका स्वामी २ मुंथाराशिका स्वामी ३ त्रिराशीश, ( त्रिराशिपाः सूर्य सिताकिं शुक्रेत्यादिसे ) ४ और दिनमें वर्ष प्रवेश हो तो सूर्य राशीश रात्रिका वर्ष प्रवेश हो तो चंद्र राशीश ५ ये पांच अधिकारी हैं इनकी विधि पूर्व संज्ञातंत्र में कही है ॥ ५॥ उपजाति - बलीयएपांतनुमीक्षमाणस्सवर्षपो लग्नमनीक्षमाणः ॥ 'नैवान्दपोदृष्टयतिरेकतः स्याद्वलस्यसाम्ये विदुरेवमायाः ॥ ६ ॥ उक्त प्रकार पंचाधिकारियोंको स्थापन करके इनका हम्बल पंचवर्गी बल देखके, जो ग्रह वलसे अधिक हो तथा लग्नकोभी देखे तो वह वर्पेश होता है, बलाधिक हो और लग्नको न देखे तो वर्षेश नहीं होता, बलाधिककी दृष्टिमी पूर्ण हो तो वही होगा इसके अभाव में इससे न्यून चली तथा इससेभी न्यूनबली दृष्टि विशेष वर्षेश होता है, जो वर्षमें सभी वा २ तुल्यवंली हों तो जिसकी दृष्टि अधिक हो वही होगा, लनपर दृष्टि जिसकी नहीं है वह बलाधिक हो तौभी वर्पेश नहीं होताहै ॥ ६ ॥ उ० जा० - हगादिसाम्येप्यथ निर्बलत्वे वर्षाधिपः स्यान्मुथहेश्वरस्तु॥ पंचापिनोचेत्तनुमीक्षमाणावीर्याधिकोन्दस्यविभुर्विचित्यः ॥ ७ ॥ जो पंचाधिकारियोंमें सभीकी दृष्टि लग्नपर बराबरहो तथा बलवानभी सभी तुल्य हों यदा (हीनचलः सरोनः)इत्यादिसे सभी हीनबल हों, तो मुंथाराशिपति वर्पेश होताहै, जो पांचोंमें कोई लग्नको न देखे तो बलाधिक ग्रह वपेश होता है जो लअपर दृष्टि पांचोंकी पूर्णही हो तो उनमेंसे बलाधिक वर्षेश जानना, कोई कहतें हैं कि, पांचोंमें बल तथा दृष्टि पूर्ण कोई न हो तो वर्ष लग्नेश राजा होता है, किसी- का मत है कि ऐसी प्राप्तिमें जिसके स्वोच्च गृह नवांश द्रेष्काण हद्दादि बहुत अधिकार हैं वह राजा होगा, किसीका मत है कि पांच अधिकारियोंमें जिसके