पृष्ठम्:ज्योतिष सर्व संग्रह.pdf/११४

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(, १८ ) अथ चन्द्र ग्रहण देखना भानोः पंचदशे ऋक्षे चन्द्रमा दिं तिष्ठति। पौर्णमास्यां निशाशेषे चन्द्रग्रहणमादिशेत् ॥ टीका-सूर्य के नक्षत्र से-चन्द्रमा १५ वें नक्षत्र पर हो तो पूर्णमासी को चन्द्रमा ग्रहण होता है और केतु-चन्द्र-सूर्य एक राशि पर हो तो चन्द्र ग्रहण होता है । है । ( । सूर्य ग्रहण देखना। माघो न ग्रस्तनक्षत्रात् षोडशं यदि सूर्यभम् । अमावस्यादिवशेषे । सूर्यग्रहणमदिशेत् । टीका-मावस के दिन सूर्य चन्द्रमा एक राशि पर हों और मोघस के दिन वयं नक्षत्र और दिन नक्षत्र एक हो तो पंड़बाकी संधि में सूर्य ग्रहण होता है । सूर्यं नक्षत्र से चन्द्र नक्षत्र तक शिनिये उसमें से ११ निकाल दे शेष १६ नक्षत्र बचे' तो निश्चय वो ही इयें ग्रहण है । दोह-चन्दा से रवि सातवे, रवि राहुं एकन्त । पूनों में पड़ा मिले, निश्चय ग्रहण पड़न्त । 'रवि से राहु सातये, शशि' रवि हो एकन्त । सावसमें पड़व मिले, निश्चय ग्रहण पड़न्त ॥ ग्रहण का सूतक देखन। सूर्यग्रहतु नाश्नीयात् पूर्व या ‘चतुष्टयं । चन्द्रग्रह तूं यामस्त्रीन् बालवृद्धाऽतुरैर्बिन ॥१॥ ५