पृष्ठम्:जन्मपत्रदीपकः.pdf/५

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-8ः प्राक्कथन •8} ययादकजयुगलस्मरणत्खलु शङ्करः । सकुटुम्बः समर्थोऽभूच्छङ्कतें किल तं नुमः । भारत के कोने २ तक जग्मपत्रनिर्माण का प्रचुरप्रचार होते हुए भी पेस छोटी कोई पुस्तक नही मिली जिससे थोड़े हि में उसके बारे सार ज्ञात हो जाएँ । मानसागरी, होरारत्न, जातकपद्धति प्रभृति पुस्तके जो आज कल वज़ारों में अधिकता से उपलब्ध होती हैं, विस्तृतरूप में और दुरू होने के कारण प्रत्येक पण्डितों का उपकारक नही हैं। अतः मैंने अपने कई छात्रों और वैयाकरण मित्रों के बार २ अनुरोध करने पर आजकल साधारणतः जिन २ विषयों का सनिवेश जग्मपत्रिकाओं में होता है, उन्हीं के बनाने के प्रकारों को यथासाध्य सरलतम पद्यों द्वारा इसमें लिखा है। जिन विषयों में कोई विशेषता नहीं उनको प्रायोनाचा श्र्युक्त पद्यों में हो रख दिया है। प्रत्येक विषयों का झटिति परिज्ञान हो जाने के लिये स्खोदाहरण लरल हिन्दीटीका और जगह २ पर आवश्यक टिपण भ कर दिया है। पुस्तक का आकार बढ़ जाने के भय से फलितमाग का विशेष स- निवेश इस में नहीं किया गया है । यथासम्भव अवकाश मिलने पर दूसरे भाग के रूप में ( यदि प्रथमभाग पण्डितों के हृदय को कुछ भी आकर्षित कर सका तो) उस्के प्रकाशन का प्रयत्न किया जायगा। इसमें लिखित प्रत्येक विषयों के बारे में किसी प्रकार को खेचा- तान नहीं की गई हैं इसको विक्षजन अपनी साराखारपरिशोलिन बुद्धि से पक्षपातविहीन होकर स्वयं विचार करतें। अनेन चेत्सञ्जनमानसेषु इषद्मः स्यान्नवमात्रमेव । तदापमेघोथमपि स्वकीयं परिश्रमं घन्यतमं हि मन्ये । दुरदोषज। यास्फुट्यो ममेह याश्वैव सम्मुद्रणयन्त्रदोषात् । तास्तास्समस्ताः स्वधिया सुधीभिः संशोधनीयाः स्वकृपालवेन ॥ शमिति । शारदासदन विद्यालयः, अह्मपुर २४-१२-१६३५ इ° } सजनों का सेवक विन्ध्येश्वरप्रसादद्विवेदी