पृष्ठम्:चतुर्वेदी संस्कृत-हिन्दी शब्दकोष.djvu/३४१

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व्यपं चतुर्वेदकोष व्यपरोपण, ( न. ) बेदना | काटना । व्यपरोपित, (त्रि.) छिन्न । कटा हुआ | व्यपाकृति, ( स्त्री. ) निराकरण । अस्वीकृत करना | छिपाना । न मानना । व्यपाश्रय, (पुं.) आसरा | व्यपेक्षा, ( स्त्री. ) अपेक्षा । विशेष चाह | बड़ी गरज | व्यभिचार, (पुं. ) निन्दिता चार | दुराचार | न्याय में हेतु-दोष | व्यभिचारिन, (पुं. ) जार पुरुष स्थानभ्रष्ट । दुराचारी । अलङ्कार में " निर्वेद " आदि रस का अङ्ग विशेष | व्यभिचारिणी, ( स्त्री. ) कुलटा स्त्री | व्यय, (पुं.) विगम | जाना। खर्च | जन्म- कुण्डली में लग्न से १२ वां स्थान | व्यर्थ, ( त्रि.) निष्प्रयोजन | विफल | निरर्थक | व्यलीक, (न. ) अप्रिय । अनृत। झूठ । व्यवकलन, (न. ) वियोजन । विगमन । निकालना । घटाना। व्यवकलित, ( त्रि. ) घटाया गया | वियोजित | व्यवच्छिन्न (त्रि.) छिन्न | कटा हुआ विशेषण युक्त । व्यवच्छेद, (पं.) अलगाव । विशेषत्व | मोचन | व्यवधा, ( स्त्री. ) व्यवधान । अन्तर | बीच | व्यवधायक, (त्रि. ) कर्त्ता | अन्तर डालने वाला। ढांकने वाला । व्यवसाय, (पुं. ) उद्यम अनुष्ठान | श्रव " धारण । व्यवस्था, ( स्त्री. ) शास्त्र मर्य्यादा | तजवीज | युक्ति । व्यवस्थित, (त्रि. ) शास्त्र द्वारा विधान किया हुआ पदार्थ | ठीक सही । व्यवस्थितविभाषा, स्त्री. ) विकल्प ( व्याकरण में ) । व्यवहर्तृ, (त्रि.) व्यवहार करने बाला । व्यवहार, ( पुं. ) पैसे का देना और लेना आदि निस्सन्देह बर्ताव । आचार, निय । ३४५ व्याकृ मादि अठारह सम्बन्धों के अनुकूल चलना । अनेक संशय रहित मैत्री युक्त बर्ताव । ( वि-श्रव· हार ) जैसे-- 99 " विनानार्थेऽव सन्देहे हरणं हार उच्यते । नानासन्देहहरणाद्भवहार इति स्मृतः ॥ व्यवहारपद, ( न. ) झगड़े का स्थान | अभियोग के योग्य | साहूकार की दूकान । व्यवहारमातृका, ( स्त्री. ) व्यवहार की माता । न्यायालय | कन्चहरी । पञ्चायत । सभा श्रादि जहाँ विद्वांन्, वकील आदि मुखिया बैठकर न्याय दें। व्यवहारिक, (त्रि. ) व्यवहार सम्बन्धी | लेन-देन आदि परस्पर सम्बन्ध सूचक चलन या वस्तु । जैसे-घड़ा, कपड़ा इत्यादि । ( पुं. ) इद वृक्ष । व्यवहार्य, (त्रि. ) व्यवहार के योग्य अपने ढंग का मिलता-जुलता । काम में लाने के योग्य | 2 व्यवहित, (त्रि.) दूर अन्तर वौला । आड़ में रखी चीज । ढकी हुई । व्यवाय, ( पुं. ) ग्राम्य धर्म | मैथुन | छिपा | सफाई । ( न. ) तेज | व्यसन, (न ) विपत्ति । गिरना । काम और क्रोध से उपजा दोष । मैथुन और मद्यपान दोष । दैवोपद्रवादि ।" वह दोष जिसके विना रहा न जाय जैसे-व्यभिचार, भाँग, गांजा आदि, जूआँ श्रादि । श्राश्रय, भगवद्भक्ति श्रादि । व्यसु, (त्रि.) मृत | मरा हुआ। व्यस्त, (त्रि.) व्याकुल । विभक्त । विपरीत उल्टा । व्याकरण, (म.) वह शास्त्र जिससे शब्दों का विवरण भली भाँति ज्ञात होजाय । शब्द शास्त्र । व्याकुल, (त्रि.) घबड़ाया हुआ | विकल | व्याकृति ( स्त्री. ) भद्दा रूप । प्रकाशन | व्याकरण | अधिक वर्णन करना |