652 आपस्तम्बश्रौतसूत्राणा पृ 458 | वेदेनाग्निं त्रिरुपवाज्य 391 वेदोऽसीतिवेद' होता 441 | वेद्यां तृणमपि 456 वौषाडित्थेके वाक्ष ( इ ) 460 | वैश्वानरस्य रूपं पृथि व्रीहीन् यवान्वा 413 358 | व्यावृत्काम इत्युक्तम् 159 व्याहरेद्वा वाषडित्येके समाम ( इ ) विच्छिनभि विधृतीभ्याम् विज्ञायते च ऋषे (इ) विज्ञायते च ऋच (इ) विज्ञायते चेडो (इ) वि ते मुञ्चामीति विदसि विद्यमे विपरीत परिग्रहा विभक्तिमुक्ता प्रया विशाखयोः प्रजाका विशो यन्त्रे स्थ इति विष्णुं बुभूषन् यजेत विष्णुक्रमान् विष्ण्वतिक्रमान्421 विष्णुस्त्वाक स्तीत विष्णोःक्रमोऽसीति विष्णोश्शंयोरितिशम् विष्णोः स्थानमसीति विष्णोःस्तूपोऽसीत्य सू 617 व्याहृतीभिरन्वाधानमेके 475 | व्याहृतीर्वा जपेत् 184 | व्यहृतीभिरुपसा 229 | व्याहृतीभिरेवोद्गीथम् व्याहृतीभिर्हवींष्यासा व्यातीस्सर्पराक्षी J14 .420 | व्युषण्वा 414 पृ 195 276 214 458 467 116 338 598 17 211 576 537 589 535 204 श 290 202 | शंय्वन्तं वाऽऽहनीये 35 | शतभृष्टिरसि वानस्पत्यो 163 179 565 विष्णोः स्थाने तिष्ठामी (इ) 437 333 92 506 विष्णो हव्यं रक्षस्येति वीणातूणवेनैन वीतिहोत्रं त्वा कव इति 477 506 | शिशिरस्सार्ववर्णिक 183 | शुक्रं त्वा शुक्रायामिति 175 450 173 27 वीतोष्मसु पिण्डेषु नमो वः 72 | शुक्रं प्रच्छिन्नाग्रम् (इ) वृष्टिरसि वृश्च मे वेदमुपस्थ आधाया वेदमुपभृतं कृत्वा वेदिबर्हिस्टत 'हविः वेदेन ब्रह्मयजमानभागौ वेदन भस्मप्रमृज्य 431 | शुक्रमसीतिप्रथमम् 428 | शुद्धा अपस्सुप्रपाणे 268 | शुल्बात्प्रादेशे परिवास्य 410 | शेषेण ध्रुवायाम् 53 176 249 श्व आधास्यमानः पन 504 187 | श्वेतोऽश्वोऽविक्किन्नाक्षो 515 शतमानं हिरण्म् शधवत्यौ संयाज्ये शल्कैरेतां रात्रिम्
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