अन्योक्तिमुक्तावल्याः शुद्धिपत्रम् ।
|
|
पृ. |
प. |
शुद्धः पाठः । |
|
३ |
६ |
जिह्वा पटुः |
|
" |
" |
गुणागुणानाम् ।
|
" |
७ |
पिशुनयाचनया ।
|
४ |
११ |
चन्द्रमउक्तयः ।
|
४ |
१५ |
अकालजलदोक्तयः ।
|
४ |
१३ |
शशी
|
१० |
१७ |
कान्ता कैरविणी
|
१४ |
६ |
भविताभूवन्
|
१४ |
८ |
संयुजिरे=च्युतसंस्कृति ॥
|
१४ |
२० |
विरज्यसि
|
१६ |
९ |
स्वयमियम्
|
१६ |
११ |
संगमवती
|
१६ |
१८ |
विफला
|
१८ |
२ |
पयोराशेर्गर्जन्
|
१८ |
१० |
लभसे
|
२२ |
१ |
रीतिरमला
|
२२ |
२ |
प्रतीक्षसे
|
२४ |
४ |
तिष्ठतिष्ठ
|
२४ |
७ |
उपभोक्ष्यसीति च्युतसंस्कृति ।
|
२६ |
२५ |
स्रवन्तु
|
२७ |
१ |
प्रचलते यदि पापमेकम् च्युतसंस्कृति ।
|
२७ |
३ |
न क्रौर्यमालम्बितम्
|
२७ |
६ |
गण्डूषिताः
|
२९ |
२२ |
लेशानशान
|
३४ |
२३ |
भ्रश्यद्दान-
|
३९ |
६ |
हुतभुजा वलिता
|
|
|
|
पृ. |
प. |
शुद्धः पाठः । |
|
३९ |
२० |
पर्णे, यान्ति
|
४७ |
१५ |
चञ्चलतामिमाम्
|
४८ |
१४ |
शपति–च्युतसंस्कृति ।
|
५८ |
८ |
संप्रहरिष्यते
|
५८ |
१५ |
केलिस्खल-
|
५८ |
१८ |
आकाङ्क्षते
|
६६ |
५ |
कोकिलैरिह
|
७१ |
१५ |
श्वसिति
|
७४ |
१२ |
विश्रम्यताम्
|
७५ |
५ |
मनयोः
|
७५ |
५ |
चकोरावधारयसि ।
|
८१ |
१० |
रमसे
|
९६ |
११ |
संतिष्ठता-च्युतसंस्कृति ।
|
१९७ |
२१ |
व्यधास्यद्विधिः ।
|
१०३ |
१७ |
त्रोटीपुट-
|
०७ |
६ |
परितः परितो
|
११० |
२४ |
भग्नापदोऽन्ये द्रुमाः ।
|
११९ |
१२ |
संभाषसे
|
१२२ |
८ |
गञ्जागृहम्
|
१२४ |
२२ |
नलिन्यन्योक्तयः
|
१२८ |
८ |
नालिकेरान्योक्तयः
|
१३६ |
१२ |
कथ्थर्याः
|
१३७ |
७ |
त्वल्लक्ष्म
|
१४० |
६ |
महौजोत्कट-च्युतसंस्कृति ।
|
१४० |
१० |
आज्यदध्न्यो
|
१४० |
२० |
पत्राणि
|
१४४ |
१६ |
अभिषिञ्चति
|
|