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पक्षौ तावदतीन्द्रधाम |
५८ |
४८
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पङ्कजजलेषु वासः |
१२३ |
१२४
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पङ्कमग्नकरिणा न |
३३ |
६६
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पटु रटति पलितदूतो |
१४५ |
३०
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पतितानां संसर्गं त्यजन्ति |
१४६ |
४३
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पत्तावरिओ बहुसहसाहिओ |
१४१ |
२५७
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पत्युर्यत्पतितावशेष |
३६ |
८९
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पत्रपुष्पफलच्छाया |
११२ |
४३
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पत्राणि कण्टकशतैः |
१२६ |
१५३
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पत्रं न चित्रमपि निस्त्र- |
१३५ |
२१८
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पथि निपतितां शून्ये दृष्ट्वा |
६६ |
१२१
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पथि परिहृतं कैश्चिद्दृष्ट्वा |
९० |
४४
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पदं तदिह नास्ति यन्न |
१३३ |
१९८
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पद्मे मूढजने ददाति |
१४ |
११६
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पद्मं पद्मा परित्यज्य |
१५ |
१२४
|
परज्योतिःस्वरूपाय |
१०८ |
१०
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परभृतशिशो मौनं |
६५ |
१०८
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परमो मरुत्सखाग्रेः |
१०७ |
११४
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परवित्तव्ययं दृष्ट्वा |
१३७ |
२२६
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परविपयाक्रमणकला |
८ |
६८
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परार्थे यः पीडामनु |
१३० |
१८२
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परिमलगुणेन केतकि |
१३१ |
१८५
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परिमलसुरभिंतनभसो |
२४ |
२००
|
परिसेसिअ हंसउलं |
५९ |
६२
|
परिहीने सिंहेन |
४१ |
२६
|
पलितानि शशाङ्करोचि- |
१४५ |
३१
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पाटलया वनमध्ये |
१२३ |
१२१
|
पातालं वसति परिच्छद |
९९ |
५३
|
पातः पूष्णो भवति |
६ |
५१
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पादन्यासं क्षितिधरमुरो |
११ |
८८
|
पादाघातविधूर्णिता |
३४ |
७५
|
पादेनापहता येन |
८२ |
६०
|
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विषयाः |
पृ. |
श्लो.
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पान्थाधार इति द्विजाश्रय |
११३ |
५२
|
पायं पायं पिब पिब पयः |
१४२ |
११
|
पिच्छसही तुम्बणिया |
१४१ |
२५५
|
पिता रत्नाकरो यस्य |
७७ |
१८
|
पिब पयः प्रसर |
४६ |
६१
|
पीउण पाणिअं सरवरम्मि |
७० |
१४४
|
पीतः पीतपयोधिना |
९ |
८१
|
पीतं यत्र हिमं पयः |
३२ |
६२
|
पीतं येन पुरा पुरन्दर |
५८ |
५१
|
पीयूषं वपुषोऽस्य |
११ |
८९
|
पीलूनां फलवत्कषाय |
४२ |
४०
|
पूर्वाह्णे प्रतिबोध्य |
७ |
५५
|
पृच्छे कः पुरुषः सभोग |
१४६ |
४१
|
पृथिवीकायिका जीवा |
४ |
२८
|
पौरस्त्यैर्दाक्षिणात्यैः |
९० |
४२
|
प्रकाशाम्भोधरान्योक्ति |
४ |
३४
|
प्रकुर्वता संगति |
८ |
७३
|
प्रतिद्वारक्रमं चञ्चत् |
८६ |
८
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प्रतिवेशी हंसजन: |
८१ |
४६
|
प्रत्यग्रैः पुष्पनिचयैः |
११२ |
४१
|
प्रत्यङ्गणं प्रतितरुं |
६७ |
१२३
|
प्रथममरुणच्छायः |
९ |
७९
|
प्रथमवयसि पीतं |
१२८ |
१६३
|
प्रसारितकरे मित्रे |
१२४ |
१३२
|
प्राचीभागे सरागे |
११ |
९७
|
प्राणास्त्वमेव जगतः |
१०७ |
११५
|
प्रावृषेण्यस्य मालिन्य |
१७ |
१४४
|
प्रियायां स्वैरायां |
३९ |
११
|
फलं दूरतरेऽप्यास्तां |
१३५ |
२१५
|
फुल्लेषु यः कमलिनी |
८० |
३९
|
वक चटु तपसे त्वं |
७५ |
१८५
|
बकेऽपि हंसेऽपि च |
६१ |
७७
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