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दानार्थिनो मधुकरा |
८१ |
४५
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दामोदरमुदराहित |
१४३ |
१६
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दासेरकस्य दासीयं |
१२८ |
१६१
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दासेरको रसत्येष |
४३ |
४२
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दिनिकरतापव्याप |
११ |
९२
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दिनमवसितं विश्रान्ताः |
१०४ |
९४
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दिनान्ते चक्रवाकेन |
७१ |
१५१
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दीनोन्नतचलपक्षतया |
७२ |
१६२
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दीपो वातभयान्नीतः |
१०५ |
१००
|
दग्धेन सिक्तो निम्बो |
१३२ |
१९१
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दुर्गानदीशिथिल |
१४७ |
५४
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दुर्दैवप्रभवप्रभञ्जन |
१०५ |
१०४
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दुश्चरितैरेव निजैः |
४६ |
६३
|
दुष्टं वकोटनिकरोऽपि |
५६ |
३७
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दुष्प्रापमम्बु पवनः |
४३ |
४१
|
दूरं नीरं तदपि विरसं |
२० |
१६७
|
दूरादुज्झति चम्पकं |
८२ |
५५
|
दूरादेत्य तवान्तरे |
१२३ |
१२७
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दूरान्मार्गे ग्लपितवपुषो |
९६ |
३५
|
दूर्वाङ्कुरतृणाहारा |
३७ |
२
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दृढतरगलकनिबन्धः |
१४९ |
६६
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दृष्टे सति प्रविलसत् |
१२१ |
११०
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देव त्वं सपदं धीर |
९३ |
५
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देवाः पूर्वपरिच्छेदे |
३ |
२६
|
देवो हरिर्वहतु वक्षसि |
५ |
४३
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देशत्यागं वह्नितापं |
१३७ |
२३२
|
दैवादस्तं गते सूर्ये |
१०५ |
९९
|
देवादद्यपि तुल्यो |
७ |
६१
|
दैवेन प्रभुणा स्वयं जगति |
७३ |
१७०
|
दोषाकरे समुदिते |
१२३ |
१२३
|
दोषाकरोऽपि कुटिलोऽपि |
८ |
७४
|
दोषैरदुष्टां सगुणैररिष्टां |
३ |
२४
|
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विषयाः |
पृ. |
श्लो.
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दौर्जन्यमात्मनि परं |
१२९ |
१६८
|
द्यामारोहति वाञ्छति |
९८ |
४५
|
द्रुततरमितो गच्छ |
३८ |
१०
|
द्वात्रिंशद्दशनद्वेपि |
१४५ |
३५
|
द्विजपतिदयितां तां |
७९ |
३३
|
द्वितीया द्विजराजोक्ती |
४ |
३२
|
द्वितीयेऽथ परिच्छेदे |
२५ |
४
|
धत्तूरधूर्ततरुणेन्दु |
१३९ |
२४४
|
धनिनि जने चटु पटुतां |
१४४ |
२८
|
धन्यासि केतकिलते |
१२७ |
१५५
|
धन्या सुक्ष्मफला अपि |
१३१ |
१८४
|
धन्यास्त एव देवार्थं |
१०८ |
६
|
धर्मः सनातनो यस्य |
१५ |
१२६
|
धवलयति समग्रं |
११ |
९०
|
धाराधर धरामेनां |
१८ |
१४७
|
धिक्कनकं तव कनकगिरे |
८६ |
१३
|
धिक्कापि प्रलयानलै |
८० |
४१
|
धिक्चेष्टितानि परशो- |
११६ |
७१
|
धिक् तव शुक पठन |
६० |
६६
|
धिग्वारिदं परिहृतान्य |
७४ |
१७९
|
धिष्ण्यानि रे किमनुजो |
६ |
४८
|
धीरध्वनिभिरलं ते |
२६ |
१५
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धूमः पयोधरपदं |
१०६ |
१०८
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धूलीमूलपदार्थसार्थ |
९२ |
५७
|
ध्वान्तं ध्वस्तं समस्तं |
७ |
५४
|
न कोकिलानामिव मञ्जु |
६१ |
७९
|
नक्षत्राणि वहूनि सन्ति |
१० |
८२
|
न गृह्णाति ग्रासं |
३४ |
७४
|
नच गन्धवहेन चुम्बिता |
१२३ |
२०
|
न चन्द्रमाः प्रत्युपकारलिप्सया |
११ |
९१
|
न चरसि गजराजः |
३४ |
७३
|
न तादृक्कर्पूरे नच मलयजे |
११९ |
९६
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