|
|
विषयाः |
पृ. |
प.
|
केतव प्रजापतिजाः |
१६१ |
७
|
केतवः प्रजापतिहासजाः |
१६८ |
२१
|
केतवः शनैश्चरजाः |
१५७ |
२२
|
केतवः सूर्यजाः |
१५५ |
६
|
केतुचक्रपरिवृत्तिः |
१९० |
१८
|
केतुदर्शनतः फलपाकः |
१९९ |
१९
|
केतुरनियतगतिः |
१९३ |
८
|
केतुवर्णफलम् |
१५० |
३
|
केतुशिरोदेशफलम् |
१९८ |
२१
|
केतुसहस्रम् |
१५५ |
२
|
केतुस्त्रिविधः |
१९३ |
९
|
केतुस्वामिकानि |
१४९ |
१६
|
केतूत्पातशान्तिः |
२०० |
७
|
" |
७२३ |
१५
|
केतूत्पातविशेषशान्तिः |
२०० |
१२
|
केतूत्पाता विहितविशेषशान्तयः |
२०० |
१२
|
केतूदये पूर्वनिमित्तानि |
१५० |
१९
|
केतूनामदृश्यानां फलानि |
१७४ |
२
|
केतूनामन्येषामुदयनिमित्तानि |
१७० |
९
|
केतूनामन्येषां फलानि |
१७० |
२०
|
केतूनां फलनिर्णयः |
१६६ |
५
|
केतूनां फलानि |
१६६ |
५
|
केतोराकृतिफलम् |
१५० |
१६
|
केत्वद्भुतावर्त्तः |
१४८ |
१५
|
केत्वभिहतग्रहफलम् |
१९६ |
१७
|
केत्वभिहतनक्षत्रफलम् |
१९४ |
२२
|
केशदाहशान्तिः |
४२० |
२५
|
कोकिलरुतविकृतिः |
५८३ |
२
|
क्रोष्टुकनादविकारः |
४७२ |
१
|
|
|
|
विषयाः |
पृ. |
प.
|
क्षतादौ शान्तिः |
७३३ |
१९
|
क्षयवृद्धिविकारपाकः |
७४५ |
१९
|
क्षुद्रजन्तुलक्षणम् |
१७५ |
६
|
|
[ख] |
|
खञ्जनदर्शनकालः |
६७२ |
८
|
खञ्जनदर्शनमन्त्रः |
६७५ |
२४
|
खञ्जनदर्शनविकृतिशान्तिः |
६७७ |
२१
|
खञ्जनदर्शनशुभस्थानानि |
६७३ |
९
|
खञ्जनदर्शनेऽशुभस्थानानि |
६७६ |
२
|
खञ्जनदर्शने सूर्योदयादिकालः |
६७५ |
१८
|
खञ्जनभेदलक्षणानि |
६७२ |
१
|
खञ्जनस्य कृष्णसर्पशिरसि
|
दर्शने फलम् |
६७५ |
७
|
खञ्जनस्य वृषककुदि दर्शने
|
फलम् |
६७५ |
२
|
खञ्जनस्य सर्पशिरसि दर्शने
|
फलम् |
६७५ |
४
|
खञ्जनस्याश्चर्यकरदर्शनम् |
६७८ |
१४
|
खञ्जनेऽन्यदर्शिते फलम् |
६३४ |
१२
|
खञ्जरीटदर्शनाद्भुतावर्त्तः |
६७१ |
१७
|
खञ्जरीटभेदाः |
६७१ |
१८
|
खङ्गे गन्धविकारः |
४८० |
६
|
खङ्गे व्रणविचारः |
४८० |
२१
|
खनितृविकारः |
४७२ |
३
|
|
[ग] |
|
गजकरबीजनविकृतिः |
५९० |
८
|
गजजलप्रवेशादिविकारः |
५९० |
२
|
गजज्वलनम् |
४९८ |
५
|
|