पुटमेतत् सुपुष्टितम्
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विषयः | पृष्ठम् | |
३०. | कण्ठकूपसंयमफलम् | २८८ |
३१. | कूर्मनाडीसंयमफलम् | " |
३२. | मूर्धज्योतिःसंयमफलम् | २८९ |
३३. | प्रातिभसंयमफलम् | " |
३४. | हृदयसंयमफलम् | " |
३५. | पुरुषज्ञानसाधनसंयमकथनम् | २९० |
३६. | प्रातिभादीनां स्वार्थसंयमफलत्वम् | २९२ |
३७. | पूर्वोक्तसिद्धीनां समाधिप्रतिपक्षत्वम् | " |
३८. | चित्तस्य परदेहावेशोपायः | " |
३९. | उदानसंयमफलम् | २९३ |
४०. | समानसंयमफलम् | २९४ |
४१. | श्रोत्राकाशसंबन्धसंयमफलम् | " |
४२. | कायाकाशसंबन्धसंयमफलम् | २९५ |
४३. | प्रकाशावरणक्षयभूतजयोपायौ | २९६,२९७ |
४४. | अणिमादिसिद्धयाद्युपायः | ३०१ |
४५. | कायसंपत्स्वरूपम् | ३०३ |
४६. | इन्द्रियजयोपायः | " |
४७. | इन्द्रियजयफलम् | ३०५ |
४८. | सर्वज्ञातृत्वाद्युपायः | " |
४९. | कैवल्योपायः | ३०६ |
५०. | कैवल्यप्रत्यूहप्रशमोपायः | ३०७ |
५१. | क्षणतत्क्रमसंयमफलम् | ३०९ |
५२. | विवेकजज्ञानविषयोक्तिः | ३१२ |
५३. | विवेकजज्ञानलक्षणम् | ३१४ |
५४. | सत्वपुरुषान्यताख्यातिफलम् | ३१५ |
॥ चतुर्थः कैवल्यपादः ॥
१. | सिद्धिकारणवैविध्यम् | ३१७ |
२. | जात्यन्तरपरिणामप्रयोजकोक्तिः | ३१८ |
३. | धर्मादेः प्रकृतिप्रयोजकत्वाभावः | " |
४. | निर्माणचित्तकथनम् | ३२० |
५. | तत्प्रयोजकचित्तकथनम् | ३२१ |
६. | निर्मितचित्तस्य वासनाशून्यत्वम् | " |
७. | कर्मभेदः | ३२२ |