काशीपञ्चकम् (मूलसहितम्)
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काशीपञ्चकम् शङ्कराचार्यः १९१० |
॥ श्री ॥
॥ काशीपञ्चकम् ॥
मनो निवृत्ति परमोपशान्ति
सा तीर्थवर्या मणिकर्णिका च।
ज्ञानप्रवाहा विमलादिगङ्गा
सा काक्षिकाह निजबोधरूपा ॥१॥
यस्यामिद कल्पितमिन्द्रजाल
चराचर भाति मनोविलासम् ।
सञ्चित्सुखैका परमात्मरूपा
सा काशिकाह निजबोधरूपा ॥२॥
कोशेषु पञ्चस्वधिराजमाना
बुद्धिर्भवानी प्रतिदेहगेहम् ।
साक्षी शिव सर्वगतोऽन्तरात्मा
मा काशिकाह निजबोधरूपा ॥३॥
काश्या हि काशत काशी
काशी सर्वप्रकाशिका।
सा काशी विदिता येन
तेन प्राप्ता हि काशिका ॥४॥
काशीक्षेत्र शरीर त्रिभुवनजननी व्यापिनी ज्ञानगङ्गा
भक्ति श्रद्धा गयेय निजगुरुचरणध्यानयोग प्रयाग ।
विश्वेशोऽय तुरीय सकलजनमन साक्षिभूतोऽन्तरात्मा
देहे सर्वं मदीये यदि वसति पुनस्तीर्थमन्यत्किमस्ति ॥
इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यस्य श्रीगोविन्दभगवत्पूज्यपादशिष्यस्य श्रीमच्छंकरभगवत कृतौ काशीपञ्चक संपूर्णम् ॥