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शकुंच्छायादिग्नानध्यायः
सूत्रोक्त भू) | कख+खल=भू+द्वितीयछाया=कल=छायाव्यवहारस्य ५४ सूत्रोक्त भू , लीलावत्यां ' छायाग्रयोरन्तर सङगुणा भा छाया प्रमाणान्तरह्द्भ्- वेद् भूरित्यत्र' भास्कराचार्येणा कज,कल इत्येव भू द्वयं ग्रुहीतम् । ततः अकज, पशज त्रिभुजयोः साजात्यादनुपात:। पश x कज / शज = ( ५४ सूत्रोक्त भू ) x प्रथमशं / प्रथमच्छाया = श्वक=दीपौच्च्यम् । एवमेव श्वकल , नखल त्रिभुजयोः साजात्यात् नख x कल / खल =द्वितीयशं ( ५४ सूत्रोक्त भू ) / द्वितीयच्छाया = दीपौच्ध्यम् एतेनाssचार्योक्त सूत्रमुपपन्नम् ॥१५॥
श्वव 'छाया द्वितीय भाग्रान्तर बिग्नानेन इत्यादि ' प्रश्न के उत्तर को कहते हैं । हि . भा - किसी इष्ट शङ् कु की छाया को शङ् कुद्वय के श्वन्तर (शङ् कुद्वय मूलान्तर ) से गुणा कर छायान्तर से भाग देने से भू होती है , भू में छाया को जोडने से जो हो उसको
शङ् कु से गुणा कर छाया से भाग देने से दीपौच्च्य होता है इति ॥ १६ ॥
उपपत्तिः। यहां संस्कुतोपपत्ति में लिखित (१) चित्र को देखिये । पश = नख=दोनों शङ् कु । शख=शङ् कुमूलान्तर=शङ् क्वन्तर । श्वक=दीपौच्च्य । पश=प्रथमशङ् कु । नख
=द्वितीयशङ् कु । शज=प्रथमच्छाया=प्रछा,खल=द्वितीयच्छाया=द्विछा जल=छायाग्रान्तर, खल-शज=छायान्तर, खल-( शज-शख )=खल-शज+शख=छायान्तर+शङ् क् वन्तर, तब ग ताष्याय के १४ सूत्र से प्रछा ( छायान्तर + शङ् क् वन्तर )/ छायान्तर =कज श्वत्तः कज-शज=कश=प्रछा (छायान्तर +शङ् क् वन्तर) / छायान्तर - प्रछा= =प्रछा.छायान्तर + प्रछा शङ् क् वन्तर-प्रछा छायान्तर / छायान्तर = प्रछा शङ्कवन्तर / छायान्तर =कश=भू । इसीतरह द्विछा शङ्क्वन्तर / छायान्तर = कख = भू । कश+शज = भू +प्रछा =छायाव्यवहार की २४ सूत्रोक्त भू । कख +खल=भू +द्विछा=कल=छायाव्यवहार की २४ सूत्रोक्त भू , लीलावती में 'छायाग्रयोरन्तर सङ् रभा 'इत्यादि श्लोक में भास्कराचार्य कज, कल इन्ही दोनों की प्रथम भू , श्वौर द्वितीय भू कहते हैं । श्वब श्वकज , पशज दोनों त्रिभुजों के सजातीयत्व से श्वनुपात करते है । पश. कज / शज = श्वक = (२४ सूत्रोक्तभू) x प्रथमशं / प्रछा