१३४ ] शुद्ध राजा को जान लेता है । (येन) क्योंकि कालान्तर में ( अपरविधं अमुं पश्यन्) उक्त सर्व लक्षणों से सहित इसको देखकर (सः एष:) सोई यह (राजा इति वेत्ति ) राजा है, इस प्रकार जानता है ॥१५॥ अब उक्त दृष्टांत को दाष्टन्त में जोड़ा जाता है रथोद्धता छंद । वर्णिता विविदिषादि यन्त्रणात् पु'विशेष मिव लक्षणोक्तयः । विश्वसर्ग विषयागमाः परं लक्ष यन्ति निरवद्यचिद्धनम् ॥१६॥ श्रोता की जिज्ञासाके अनुसार पूर्व जो लक्षण वर्णन किये हैं, वे पुरुष विशेष के लक्ष कराने के लिये हैं। तैसे ही जगत् की उत्पत्ति विषय के वेदवाक्य भी माया और उसके कार्य से रहित चैतन्यमूर्ति परब्रह्म के लवक हैं।॥१६॥ (विविदिषादि यंत्रणात्) श्रोता की जिज्ञासा के और वक्ता के तात्पर्य के अनुसार (वर्णिताः लक्षणोक्तयः ) पूर्व श्लोक में वर्णन किये हुए जो राजा के लक्षण वाक्य हैं वे लक्षण वाक्य (पु'विशेषमिव ) जैसे पुरुष विशेष के ही लक्षक हैं श्रोता की जिज्ञासा और वक्ता के तात्पर्य के निर्देशक नहीं हैं, परंतु वे लक्षण वाक्य केवल पुरुष व्यक्ति विशेष के ही लक्षक हैं । इसी प्रकार (विश्व सर्ग विषयागमाः) जगत् की उत्पत्ति विषयक वेद वाक्य भी ( निरवद्यचिद्धनम् परं लक्षयन्ति) माया तथा उसके कार्य दोष से रहित चिम्मूर्ति परब्रह्म के ही लक्षक हैं।॥१६॥
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