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पृष्ठम्:वैशेषिकदर्शनम्.djvu/४२

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'वैशेषिक-दर्शन ।

वैशेषिकदर्शन

द्वितीय अध्याय, प्रथम आन्हिक ।

सैगति-अव द्रव्यों के लक्षण करना चाहते हुए पहले पृथ्वी का लक्षण करते है ।

रूपरसगन्धस्पर्शवती पृथिवी ॥१॥

रूपरस गन्ध स्पर्श बाली है पृथिवी ।

व्या०-गुण दो प्रकार के हैं विशापगुण और सामान्य गुण । विशेष गुण वे हैं, जिनसे वस्तु की पहचान हो सकती है। लक्षणों में ये ही गुण वसलाए जाते हैं। वे ये हैं

चुद्धयादि भावनान्ताश्च शब्दो वैशेषिका गुणाः ॥

रूप रस गन्ध पानह साँसिद्धकद्रवत्व, बुद्धि, सुख, दुख,. इच्छा द्वेष प्रयन्न, धर्म, अधर्मभावना और शब्द ये विशेष गुणहैं। इन से भिन्न सारे गुण सामान्य गुण हैं।

सो पृथिवी में रुप रस गन्ध स्पर्षी ये चार विशेष गुण हैं ) गन्ध तो है ही निरा पृथिवी में । रूप रस स्पर्श जल तेज वायु के भी गुण हैं, किन्तु पृथिवी के उनसे विलक्षण हैं। रूप इस में सातों मकार का है, रस छहों प्रकार का है, स्पर्श कठोर है । किञ्च पृथिवी के ये विशेष गुण पाकज (गर्मी से बदलजाने बाळे) हैं दूसरों के पाकज नहीं।

सं०-क्रम के अनुरोध से पृथिवी के अनन्तर जल का लक्षण ६७ रूपरसस्पर्शवत्य आपो द्रवाः स्निग्धाः ॥२॥

(जक रूप रस स्पर्छ वाले हैं तथा द्रव (बहने वाले) और