4 सभ्यस्त ( ८११ संन्यस्त ( च० ० ) १ बैठाया हुआ | जमाया हुआ। २ जमा कराया हुआ। ३ सौपा हुआ । ४ फेंका हुआ छोड़ा हुआ। अलग किया हुआ। संन्यासः ( पु० ) १ वैराग्य | स्याग २ सांसारिक प्रपन्चों के स्याग की वृत्ति । ३ धरोहर भावी जुथा का दाव । होड़ | २ शरीरया मृत्यु | ६ ! जयमंत्री । सपक्ष (वि० खां यात्रा २ लवंद्री वा ३ अपने पक्ष था दलका ४ सजातीय अध्य समान । वाला। सतक (वि० ) [ सी०-सतका सप्तश्री ] हिसाव | ३ सामवौं । सतकं (२०) सात का समुदाय | जिससंन्यासारखी स संन्यासिन ( पु० ) १ धरोहर रखने वाला जनानी (०] ) श्री को करधनी या कमरवंद्र | कराने वाला । २ वह पुरुष किया हो। चतुर्थ आश्रमी ३ साकाहार सप् ( धा०प० ) [ सपति ] मम्मान करना । गूजन करना २ मिलाना। जोड़ना। सपत्तः (१० ) १ सरफदार पक्षपाती । २ सजातीय ३ न्याय में वह वात या रटान्त जिसमें साध्य अवश्य हो । सपत्नः ( 50 ) शत्रु | बैरी प्रतिद्वन्दी सपली (श्री० ) सौत। सपत्नीक (वि० ) पत्नी सहित । सपत्राकरणं (ज० ) १ शरीर में वास इतनी ज़ोर से मारना कि बाय का वह भाग जिसमें पर लगे होते हैं, शरीर के भीतर घुस जाय २ अत्यन्त पीड़ा उत्पन्न करना | सपत्राकृतिः ( स्त्री० ) बड़ी पीड़ा या दर्द | सपदि (अव्यया० ) तुरन्त । फ़ौरन । सपर्या ( स्त्री० ) १ पूजन अर्चन | २ सेवा परिचय | सपाद (वि० ) १ पैरों वाला | २ सवाया । सपिंड: ) ( पु० ) एक ही कुल का पुरुष जो एक सपिण्ड: 5 ही पितरों का पिण्ड दान करता हो। एक ही खानदान का। सपिंडीकरणं ) (न०) किसी मृत नातेदार के उद्देश्य सपिण्डीकरणं ) से किया जाने वाला धासु कर्म विशेष [ असल में यह कृत्य एक वर्ष बाद करना )
समन् चाहिये; किन्तु पान कल लोग बारवें दिन ही इसे का डर करने है । सुतिः (०) पान करने वाला हम • सुमधा (अ) सानगुना | सप्तन् (विशेष) ( वि० ) वाला खान जिहा या लौ वाचा : २ अशुभ ( पु० ) १ अग्नि २ शनि ! - धमोतिः ० ) सतासी-अनं, (न० ) - F (१०) सूर्य-प्रश्ववाहनः, ( पु० ) सूर्य
- (१०) सप्तदिवस
अर्थात् सप्ताह सा-यालन, (पु० ) महा की उपाधि (पु बहुवचन ) ३ मरीचि, अत्रि, आंगिरस्, पुलस्य, पुजह, ऋतु और प्रसिद्ध नामक सात ऋषियों का समुदाय | २ आकाश में उत्तर दिशा में स्थित सात तारों का समूह जो ध्रुव के चारों ओर घूमता दिखलाई पड़ता है 1-वत्वारिणत ( सी० ) ४७ | सैंतालीस -जिह ज्वाल, ( पु० ) अग्नि -मन्तुः ( पु० ) यज्ञ विशेष 1-दशन्, (वि०) सग्रह १७ - दीधितिः ( श्री० ) अग्नि । -द्वीपा. ( ० ) पृधिवी की उपाधि - धातु ( पु० बहुव० ) शरीरस्थ सात धानुएं या शरीर के संयोजक द्रव्य अर्थात् रक्त, पित्त, माँस, बसा, मजा, धस्थि और शुक्र नवतिः ( स्त्री० ) १७ सन्तानवे ।-नाडीचक्रं, ( न० ) फत्रित ज्योतिष में सात टेवी रेखाओं का एक चक्र जिसमें सब नक्षत्रों के नाम भरे रहते हैं और जिसके द्वारा वर्षा का आगम बहलाया जाता है। ( पु० ) इतिवन का वेद पद ( स्त्री० ) विवाह की एक रीति जिसमें वर और व गाँठ जोड़ कर अग्नि के चारों ओर सात परि-