वृत्र ( ०१ २ सदाचारी चालचलन का स्थः, ( पु० ) सिरगिट | छपकली। चितुझ्या त्रः ( पु० ) पुराव्यानुसार त्वष्टा के पुत्र एक दान का नाम, जो इन्द्र के हाथ से मारा गया था बादल | ३ अन्धकार | ४ शत्रु | ५ शब्द | ध्वनि | ६ पर्वत विशेष |-अरिः, द्विए, (५०)- शत्रुः --इन् (पु० ) इन्द्र की उपधियों। 1 1 र वृथा ( अन्यथा० ) १ प्यर्थ | वैशायदा | निरर्थक २ अनावश्यकता से ३ से से। मन (वि०) वह जिसकी भरी हो मूर्ख वाहिन अनुचित रीति से बुद्धि में · ( वि० ) मियाभाषी, फूड बोलने वाला। वृद्ध ( वि० ) १ वृद्धि को प्राप्त बड़ा हुआ। २ पूर्ण रूप से वृद्धि को प्रास | ३ बुट्टा बड़ी उम्र का वा लंबा २ एकति ढेर किया हुआ ६ बुद्धिमान | परिडत। -अङ्गुलि (श्री०) पैर की बड़ी उँगली। अवस्था, (स्त्री०) बुढ़ापा - माचार: (पु०) पुरानी रीतिरस्म । उन्नः (पु०) बूढ़ा बैल काकः, (पु०) होयकाक ( पहाड़ी कौचा:- नाभि (वि० ) चोंदन 1 - भावः, ( 30 ) खुढ़ापा (मतं, (२०) प्राचीन ऋषियों की आज्ञा। वाहनः, (९० ) आम की लकड़ी - अवस्, ( 50 ) इन्द्र की उपाधि-संवः, वृद्धा (स्त्री० ) वृद्धि: ( पु० ) १ · बुड़िया बी २ कम्यासन्तान । 1 4 बढ़ती । उन्नति | २ चन्द्रकलाओं की वृद्धि । ३ धन की वृद्धि । ४ सफलता । सौभाग्य २ धनदौलत समृद्धि ६ र समुदाय ७ सूद सूद दर सूद सूदखोरी लाभ मुनाफ्रा १० शराडकोष की वृद्धि । ३१ शक्ति की वृद्धि । राजस्व की वृद्धि | १२ वह शोध या सूतक जो घर में सन्तान उत्पन्न होने पर होता है। जननाशौच । -प्राजोवः, प्राजीविन, (१०) - हारक महायमसूदखोरी का जार करता है जीवनं. -जीविका (श्री० दांगे का धंधा या पेशाद (चि०) समृद्धि कारक -- ० ) चुरा श्राद्धं (न० नाहीवाद | आभ्युदयिक श्राद्ध। 1 } त्रुधू पा० श्रा० ) { वर्धते हुड ] 1 चढ़ना। यहा हो जाना नवृत हो जाना। फलना-कृलना | २ जारी रहना चालू रहना ३ निकलना चठना (जैसे सूर्य इतना चढ़ आया ) 1 बधाई देने क हेतु होना : { निजन्त- वर्धयति-वर्धयते । वदवाना है। गौरव बढ़वाना बधाई देना। (३०- वर्धयत - वर्धयते ] : बोलना | २ मा | - वृधसान: ( पु० ) मनुष्य | मानव वृत्रासातुः ( पु० ) पत्र ३ किया। कमे तं ) ( न० ) फल या पत्र का इंदुलपल्हेदी । वृन्तं ) घड़ा रखने की तिपाई। ३ फूत्र की या कपास । वृद्धं ( न० ) शैलजनामक गन्धङ्ग्य्य । वृद्धः ( पु० ) १ तुझा आदमी | २ सम्माननीय पुरुष वृंदा ( श्री० ) 1 ३ तपस्वी ऋषि | ४ वंशधर पुत्र सन्तान | मानव मनुष्य २ पन्त । अग्रभाग | वृताकः ( पु० ) ) वृत्ताकः ( पू० ) ( - मटा का पौधा बैंगन का पौधा वृंताकी ( श्री० ) वृन्ताकी (स्त्री० ). 1 वृतिका (श्री० ) छोटा बंटुल | वृंई १ ( ज० ) १ समुदाय समूह २ ढेर | दें ) समुचय | पुलसी | २ गोकुल के समीप म्दा एकचन का नाम। अररायं. धनं. (न०) मधुरा में एक तीर्थस्थल विशेष |--वनी, (खी०) तुलसी वृंदार ) (वि० ) १ अधिक । यड़ा | २ मुख्य वृन्दार ) उत्तम | उत्कृष्ट | ३ मनोहर । प्रिय ! सुन्दर । वृंदारक ) (वि०) [ श्री- वृन्दारका, वृन्दारिका ] वृन्दारक अत्यधिक बहुत ज्यादा २ मुख्य । सुन्दर ४ 1 उतम उत्कृष्ट ३ मनोहर मिश्र मान्य । प्रतिष्ठित । माननीय · वृंदारकः ) ( पु ) १ | २ किसी वस्तु का २ । वृन्दारकः । मुख्य अंश । सं० स० कौ० २०१
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