पोर्षिक } पार्विक ( वि० ) [ स्त्री० अगला प्राचीन । पा पौलस्त्यः (पु० ) का नामान्तर । चन्द्रमा पोलिः ( ० ० ) पोलो (सी० ) पौलोमी (श्री०) शची। इन्द्राणी --सम्भवः, ( पु० ) जयन्त का मामान्तर पौषः (पु० ) घुस मास । पौषी (स्त्री० ) पुसमास की पूर्णिमा । पौष्कर } (वि० ) [ स्त्री० पोकर पोष्करकी ] नीलकमल सम्बन्धी । पौष्करिणी (स्त्रो० ) सरोवर जिसमें कमल हों। पौष्कलः (पु० ) अनाज विशेष | पौक ( न० ) १ आधिक्य । अधिकतर । २ पूर्ण वृद्धि | पौष्टिक (वि० ) [ स्त्री० - पौष्टिकी ] पुष्टिकारक । पुष्ट करने वाला। यतवीर्यदायक । ( पविकी ] पहिले का २ पैतृक ३ पुरातन रावण का मानान्तर २ कुर ३ विभीषण का नामान्तर । ४ पूर्वी पौष्करी या पौष (न० ) रेवती नक्षत्र 1- पौष्प (वि० ) [ स्त्री० - पौष्पी ] पुष्प सम्बन्धी फूलों का । फूलों से निकला हुआ। फूलदार । पौधी (स्त्री० ) पटना नगर का नामान्तर । प्याट् (अन्य ) हो, अहो कहकर पुकारने के लिये व्यवहत होने वाला अध्यय विशेष | प्याय् (धा० आम० ) [ प्यायते, प्यान, या पीन ] बढ़ना। बाद आना। प्यायनम् ( न० ) उन्नति । थाढ़ । प्यायित (वि० ) १ वृद्धि को प्राप्त उन्नत २ मौदा पड़ा हुआ। २ वलिष्ट | तरोताज्ञा | प्ये (धा० प्र०) [ प्यायते, पीन] बढ़ना वृद्धि को प्राप्त होना। ३ पूर्ण हो जाना। - ५२७ ) बहुत अधिकता से अस्थानिक यथा प्रकृष्ट प्रसत यादि। (इ) सज्ञानाची शब्दों के पूर्व लगाने पर इसका अर्थ होता है:- (च) सम्पूर्णता पूर्णता । यथा- प्रभुक्तमनं । (छ) राहित्य वियोग । विना यथा--प्रोपिता । (ज) जुड़ा यथा-प्रभु । 1 - (क) आरम्भ प्रारम्भ यथा प्रस्थान | (ख) लंवाई। यथा--प्रवान्त्रमूयिक | (ग) बल यथा -- प्रभु (घ) घनिष्टता । अत्याधिक्य यथा--प्रकर्षं । प्रवाद । (ङ) उद्भव स्थान निकास यथा--प्रभव । प्रपौत्र ३ (क) उत्तमता । यथा - प्राचार्यः । (ज) पवित्रता यथा - प्रसनजनं 1 (त) अभिलाषा । यथा - प्रार्थना | (थ) अवसान यथा--प्रथम | प्रकटं (द) सम्मान (घ) विशिष्टता प्रकट (वि० ) १ प्रतिष्ठा । यथा-प्रालि । यथा - प्रवाल । प्रयत्न । जाहिर । प्रत्यक्ष | २ खुला घे. (अन्यथा० ) साफ तौर से प्रत्यक्ष रोया। सर्वसाधारण का । ३ जो दिखलाई पड़े। - प्रीतिवर्द्धनः, (पु० ) शिव जी । - प्रकटनम् ( न० ) प्रकट या प्रत्यक्ष होने की किया। प्रकरित ( प० कृ० ) १ प्रकट किया हुआ । प्रत्यक्ष किया हुआ खोला हुआ। २ सर्वसाधारण के सामने रखा हुआ। ३ सॉफ
- } ( पु० } कँपकँपी | थरथराहट।
प्रकंपः प्रकर परदा प्रकरुपः प्रकंपन प्रकम्पन कंपन प्रकम्पनम् (चि० ) पाने वाला | हिलाने वाला। (न०) अत्यधिक कैंपकंपी या थरथराहट प्रकंपनः ) ( पु० ) पवन । श्रीधी २ नरक प्रकस्पनः । विशेष । प्र ( धन्यथा० ) १ जब यह उपसर्ग किसी क्रिया में लगाया जाता है, सब इसका अर्थ होता है आगे, सामने, पेश्वर, पहले, आगे की धोर, यथा प्रगम | प्रकरं ( २० ) अगर की लकड़ी । प्रस्था आदि । २ विशेषणवाची शब्दों में लगाने | प्रकरः ( पु० ) १ ढेर | समूह | ओड़ | संग्रह | २ गुल- से इसका अर्थ होता है- दस्ता ३ साहाय्य सहायता मैत्री ४ चलन |