सामग्री पर जाएँ

पृष्ठम्:Advaita Siddhi with Guru Chandrika vyakhya.djvu/११६६

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

पु. 306 488 313 1 17 1 329 1 449 2 107 2 291 2 307 3 65 2 208 2 1 1 CNNCV 2 1 286 अन्विष्यतां नृपश्रेष्ठ - वि. पु. 2 431 अनीशया शोचति–मु. उ. अनुकृतेस्तस्य च ब्र. सू. अनुपलब्धे तत्प्रमाणम् -जै. सू. 1 1 2 1 1 275 1 1:36 -285 2 2 3 1 3 2 42 198 8:32 ·29 298 431 24 233 199 49 249 78

235

? अद्वय आत्मा सन्मात्रं नृ. उ. ता. 9 खण्ड अद्वैतं चतुर्थ मन्यन्ते – नृ. उत्तर. ना. खण्ड. I अद्वैतवाक्यं त्वनस्यशेषत्वात्-भाम- अध्यस्तमेव हि सं. शा. 1-36 अध्वर्यु निष्कामन्तं प्रस्तोता -? अध्वर्युं वृणीते? अनवस्थादयो दोषाः- खण्डन ? अनादिमायया – गौ. का. 1-16 अनित्यत्वविकारित्व ? अनिरुद्धो हि लोकेषु — मोक्षधर्म 349-29 अनिर्यक्तव्यतावाद - स्खण्डन 1-306–40 लो. 2-13-95 अनृतेन हि प्रत्यूढाः- -छा. अन्तर्भाविनसत्वं – खण्डन 3-1-2 1-3-22 अनुपलभ्यात्मानं–? अनुभूयत हि पृथिव्यादिकं - भाम. अनु मा शाधि - बृ. 4-2-1 अनुमित्यादौ न क्रियाजन्य- विवरण अनुषको वाक्य - जै. सू. अनुसवनं सवनीयाः – ? - --- 1-1-5 2-1-48 अन्नमारीतं त्रेधा - छा. 6-5-1 अन्य एवैकदेशेन–तन्त्र. 954 2-2-16 8-3-2 1−4, (:30) अन्तवद्वै किल ते शालावत्य - छा. 1-8--8 अन्तःकरणविशिष्ट एव - विवरण अन्त्ययोर्यथोक्तम्-जै. सू. 1-2-18 11*