|
|
मा कुप्य मग्गपायव |
११४ |
५८
|
मा गर्वमुद्वह विमूढ |
१३६ |
२०७
|
मा गा विपादमलिपोतक |
८४ |
६८
|
माणसविणा सुहाइ |
५९ |
६१
|
माणिक्याकर पारिजात |
१०१ |
७१
|
मातङ्गाः किमु वल्गितैः |
२८ |
२९
|
मातङ्गानां मदान्धभ्रम |
३५ |
८६
|
मातङ्गेन मदावलिप्त |
१०३ |
८६
|
माद्यद्दिग्गजदानलिप्त |
१०३ |
८६
|
मामभ्युन्नतमागतोऽयनिति |
१९ |
१५६
|
सा मालति म्लायसि यद्य |
१२६ |
१४७
|
मार्गे कर्दमदुर्गमे |
४४ |
४९
|
मार्गो भूरि सरुर्जलं |
२१ |
१६८
|
मार्गं विहाय गिरिकन्दर |
१११ |
३९
|
मालतीनुकुले भाति |
८४ |
७४
|
मालत्युक्तिर्बालकोक्तिः |
१०९ |
१२
|
मालिन्यं भुवनातिशायि |
६५ |
१०९
|
मित्रे क्वापि गते सरोरुह- |
७० |
१४७
|
मीलितेक्षणमिव |
३६ |
९२
|
मुखे यद्वैरस्यं वपुरपि |
१३१ |
१८३
|
मुञ्च मुञ्च सलिलं |
२३ |
१८५
|
मुत्तूण पत्तनिपरं जडाण |
१२६ |
१५०
|
मुरारातिर्लक्ष्मीं त्रिपुर- |
८७ |
१५
|
मूकीभूय तमेव कोकिल |
६३ |
९९
|
मूर्तिर्नैव रसायनं |
१२२ |
११४
|
मूलादेव यदस्य विस्तृ- |
१३० |
१७९
|
मूलं भुजङ्गैः शिखरं विहङ्गैः |
११६ |
७४
|
मूलं योगिभिरुद्धृतं |
११२ |
४७
|
मृगानिजक्षुद्रतया |
३६ |
९१
|
मृगेन्द्रं वा मृगारिं वा |
२५ |
९
|
मृगैर्नष्टं शरैर्लीनं |
२६ |
१२
|
मृदूनां स्वादूनां लघुरपि |
११५ |
६२
|
मैव संस्थाः स्थितिपदमदं |
५८ |
५४
|
|
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|
विषयाः |
पृ. |
श्लो.
|
मौलिः स्वर्णकिरीटकान्ति |
१४८ |
५६
|
मौलौ सन्मणयो गृहं गिरि- |
४६ |
६६
|
म्रदीयस्त्वाधिक्यान्न |
१२६ |
१४६
|
चच्छञ्जलमपि जलदो |
५ |
३९
|
यज्जातोऽसि पयोनिधौ |
१० |
९६
|
यत्वद्गर्जितमूर्जितं |
१८ |
१५४
|
यत्नादपि कः पश्येत् |
७० |
१४३
|
यत्पादाः शिरसा |
६ |
५३
|
यत्पार्श्वदेवः समभीप्सितानि |
१ |
५
|
यत्पूर्वं पवनाग्निशस्त्र |
१४६ |
४०
|
यत्प्रोन्मत्तमतङ्गजाङ्ग |
८० |
४२
|
यत्रापि तत्रापि गता भवन्ति |
५९ |
५५
|
यत्सद्गुणोऽपि सरलोऽपि |
१४९ |
७०
|
यथा भग्नः पन्था |
४५ |
५३
|
यथा यथा स्यात्स्तनयोः |
१४४ |
२१
|
यथेष्टं चेष्टध्वं |
२८ |
३०
|
यदपि किल वसन्ते |
११९ |
९७
|
यदपि जन्म वभूव |
९ |
७५
|
यदमी दशन्ति दशना |
१४५ |
३२
|
यदास्ति पात्रं न तदास्ति |
१३० |
१७८
|
यदि काको गजेन्द्रस्य |
३७ |
९८
|
यदि तारकततिरपरिमिता |
२४ |
१९७
|
यदिन्दोरन्वेति व्यसन |
९ |
८०
|
यदि नाम दैवगत्या |
५५ |
२९
|
यदि नाम सर्षपकणं |
३७ |
९७
|
यदि मत्तोऽसि मतङ्गज |
३६ |
९०
|
यदि यदि सन्ति कथं |
१८ |
१५१
|
यदेतत्कामिन्या सुरत |
१४५ |
३९
|
यदेतन्नेत्राम्भः पतदपि |
१४४ |
२७
|
यद्यपि च दैवयोगात् |
३० |
४७
|
यद्यपि चन्दनविटपी |
११६ |
७०
|
यद्यपि दिशि दिशि तरवः |
११८ |
९
|
यद्यपि न भवति हानिः |
१२७ |
१६०
|
|