महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-054
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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सञ्जयेन पाण्डवेषु जयसाधनसामग्रीमभिधाय तेषु धार्तराष्ट्रकृतापकारनुस्मारणपूर्वकं धृतराष्ट्रगर्हणम् ।। 1 ।।
सञ्जय उवाच। | 5-54-1x |
एवमेतन्महाराज यथावदसि भारत। | 5-54-1a 5-54-1b |
इदं तु नाभिजानामि तव धीरस्य नित्यशः। | 5-54-2a 5-54-2b |
नैष कालो महाराज तव शश्वत्कृतागसः। | 5-54-3a 5-54-3b |
पिता श्रेष्ठः सुहृद्यश्च सम्यक्प्रणिहितात्मवान्। | 5-54-4a 5-54-4b |
इदं जितमिदं लब्धमिति श्रुत्वा पराजितान्। | 5-54-5a 5-54-5b |
परुषाण्युच्यमानांश्च पुरा पार्थानुपेक्षसे। | 5-54-6a 5-54-6b |
पित्र्यं राज्यं महाराज कुरवस्ते सजाङ्गलाः। | 5-54-7a 5-54-7b |
बाहुवीर्यार्जिता भूमिस्तव पार्थैर्निवेदिता। | 5-54-8a 5-54-8b |
ग्रस्तान्गन्धर्वराजेन मज्जतो ह्यप्लवेऽम्भसि। | 5-54-9a 5-54-9b |
कुमारवच्च स्मयसे द्यूते विनिकृतेषु यत्। | 5-54-10a 5-54-10b |
प्रवर्षतः शरव्रातानर्जुनस्य शितान्बहून्। | 5-54-11a 5-54-11b |
अस्यतां फाल्गुनः श्रेष्ठो गाण्डीवं धनुषां वरम्। | 5-54-12a 5-54-12b 5-54-12c |
एवमेतानि स रथो वहते सह यो रणे। | 5-54-13a 5-54-13b |
तस्याद्य वसुधा राजन्निखिला भरतर्षभ। | 5-54-14a 5-54-14b |
तथा भीमहतप्रायां मञ्जन्तीं तव वाहिनीम् । | 5-54-15a 5-54-15b |
न भीमार्जुनयोर्भीता लप्स्यन्ते विजयं विभो। | 5-54-16a 5-54-16b |
मत्स्यास्त्वामद्य नार्चन्ति पञ्चालाश्च सकेकयाः। | 5-54-17a 5-54-17b |
पार्थं ह्येते गताः सर्वे वीर्यज्ञास्तस्य धीमतः। | 5-54-18a 5-54-18b |
अनर्हानेव तु वधे धर्मयुक्तान्विकर्मणा। | 5-54-19a 5-54-19b |
सर्वोपायैर्नियन्तव्यः सानुगः पापपुरुषः। | 5-54-20a 5-54-20b |
अपरोहं महाराज साक्षाच्चैनं ब्रवीम्यहम्। | 5-54-21a 5-54-21b |
यदिदं ते विलपितं पाण्डवान्प्रति भारत। | 5-54-22a 5-54-22b |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-54-3 एष कालः कलनावुद्धिस्तव नैव स्थास्यति ।। 3 ।
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