महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-052
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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धृतराष्ट्रेण अर्जुनप्रतापानुवर्णनपूर्वकं परिशोचनम् ।। 1 ।।
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-52-1x |
यस्य वै नानृता वाचः कदाचिदनुशुश्रुम । | 5-52-1a 5-52-1b |
तस्यैव च न पश्यामि युधि गाण्डीवधन्वनः। | 5-52-2a 5-52-2b |
अस्यतः कर्णिनालीकान्मार्गणान्हृदयच्छिदः। | 5-52-3a 5-52-3b |
द्रोणाकर्णौ प्रतीयातां यदि वीरौ नरर्षभौ । | 5-52-4a 5-52-4b |
महान्स्यात्संशयो लोके न त्वस्ति विजयो मम। | 5-52-5a 5-52-5b |
समर्थो बलवान्पार्थो दृढधन्वा जितक्लमः । | 5-52-6a 5-52-6b |
सर्वे ह्यस्त्रविदः शूराः सर्वे प्राप्ता महद्यशः । | 5-52-7a 5-52-7b |
वधे नूनं भवेच्छान्तिस्तयोर्वा फाल्गुनस्य च। | 5-52-8a 5-52-8b |
मन्युस्तस्य कथं शाम्येन्मन्दान्प्रति य उत्थितः । | 5-52-9a 5-52-9b 5-52-9c |
त्रयस्त्रिंशत्समाहूय खाण्डवेऽग्निमतर्पयत्। | 5-52-10a 5-52-10b |
यस्य यन्ता हृषीकेशः शीलवृत्तसमो युधि। | 5-52-11a 5-52-11b |
कृष्णावेकरथे यत्तावधिज्यं गाण्डिवं धनुः। | 5-52-12a 5-52-12b |
नैवास्ति नो धनुस्तदृङ्व योद्धा न च सारथिः । | 5-52-13a 5-52-13b |
शेषयेदशनिर्दीप्तो विपतन्मूर्ध्नि सञ्जय। | 5-52-14a 5-52-14b |
अपि चास्यन्निवाभाति निघ्नन्निव धनञ्जयः । | 5-52-15a 5-52-15b |
अपि बाणमयं तेजः प्रदीप्तमिव सर्वतः । | 5-52-16a 5-52-16b |
अपि सा रथघोषेण भयार्ता सव्यसाचिनः । | 5-52-17a 5-52-17b |
यथा कक्षं महानग्निः प्रदहेत्सर्वतश्चरन्। | 5-52-18a 5-52-18b |
यदोद्वमन्निशितान्बाणसङ्घां- | 5-52-19a 5-52-19b 5-52-19c 5-52-19d |
यदा हयभीक्ष्णं सुबुहून्प्रकारान् | 5-52-20a 5-52-20b 5-52-20c 5-52-20d |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-52-5 प्रमादी अन्ते विद्यां न स्मरिष्यतीति भावः ।। 5-52-14 अस्ताः क्षिप्ताः ।।
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