|
पुटसंख्या
|
महद्दीर्घवद्वा |
१६९
|
महद्वच |
१२०
|
मांसादिभौमं यथा |
२३३
|
मान्त्रवर्णिकमेव च |
३७
|
मायामात्रं तु कात्स्न्येन |
२५६
|
मुक्तः प्रतिज्ञानात् |
४०१
|
मुक्तोपसृप्यव्यपदेशात् |
८३
|
मुग्धेऽर्धसंपत्ति |
२६१
|
मौनवदितरेषाम् |
३६२
|
य
|
यत्रकाग्रता तत्र |
३७१
|
यथा च तक्षोभयधा |
२१४
|
यथा च प्राणादिः |
१५२
|
यदेव विद्ययेति हि |
३७५
|
यावदधिकारम् |
३०९
|
यावदात्मभावित्वात् |
२०९
|
यावद्विकारं तु |
१९४
|
योगिनः प्रति स्मर्येते |
३८९
|
योनिश्च हि गीयते |
१३७
|
योनेः शरीरम् |
२५४
|
र
|
रचनानुपपत्तेश्च |
१६४
|
रश्म्यनुसारी |
३८६
|
रूपादिमत्वाच |
१७३
|
रूपोपन्यासाश्च |
७६
|
रेत:सिग्योगोऽथ |
२५३
|
ल
|
लिङ्गभूयत्वात्तत् |
३२१
|
|
पुटसंख्या
|
लिङ्गाच्च |
३६६
|
लोकवत्त लीला |
१६०
|
व
|
वदतीति चेन्न |
१९९
|
वाक्यान्वयातू |
१३०
|
वाङ्मनसि दर्शनात् |
३७७
|
वायुमब्दादविशेष |
३९०
|
विकरणत्वान्नेति चेत् |
१५९
|
विकल्पोऽविशिष्ट |
३३२
|
विकारशब्दान्नेति |
३५
|
विकारावर्तेि च |
८११
|
विज्ञानादिभावे वा |
१८८
|
विद्याकर्मणोरिति तु |
२४८
|
विद्यैव निर्धारणात् |
३२३
|
विधिर्वा धारणवत् |
३४७
|
विपर्ययेण तु क्रमः |
१९९
|
विप्रतिषेधाच्च |
१८९
|
विप्रतिषेधाश्चासमञ्जसम् |
१६९
|
विभागः शतवत् |
६४२
|
विरोधः कर्मणीति |
१००
|
विवक्षितगुणोप |
६१
|
विशेष च दर्शयति |
३९९
|
विशेषणभेद |
७५
|
विशेषणाच्च |
६७
|
विशेषानुग्रहश्च |
३५६
|
विशेषितत्वाच |
३९३
|
विहितत्वाञ्चाश्रम |
३५४
|
वृद्धिहासभाक्त्वम् |
२६७
|
|
|
पुटसंख्या
|
वेधाद्यर्थभेदात् |
३०३
|
वैद्युतेनैव ततः |
३९२
|
वैधर्म्च्याच न स्वप्नादिवत |
१८१
|
वैशेष्यात् तद्वादः |
२२४
|
वैश्वानरः:साधारण |
७६
|
वैषम्यनैघृण्ये न |
१६१
|
व्यतिरेकस्तद्भावः |
३२८
|
व्यतिरेकानवस्थितेः |
१६५
|
व्यतिरेको गन्धवत् |
२०७
|
व्यतिहारो विशिषन्ति |
३१५
|
व्यपदेशाच्च क्रियायाम् |
२१२
|
व्यातेश्च समञ्जसम् |
२९२
|
श
|
शक्तिविपर्ययात् |
२१३
|
शब्द इति चेन्न |
१०१
|
शब्दविशेषातू |
६२
|
शब्दश्चातोऽकामकारे |
३३४
|
शब्दादेव प्रमितः |
९८
|
शब्देभ्य |
१९४
|
शमदमाद्युपेतः स्यात् |
३५१
|
शास्रदृष्टया तु |
५६
|
शास्रयोनित्वात् |
२२
|
शिष्टेश्च |
३३४
|
शुगस्य तदनादर |
१०७
|
शेषत्वात्पुरुषार्थवादः |
३३८
|
श्रवणाध्ययनाथ |
१११
|
श्रुतत्वाच्च |
३३, २८२
|
श्रुतेस्तु शब्दमूलत्वात् |
१५७
|
|
|
पुटसंख्या
|
श्रुतोपनिषत्क |
७१
|
श्रुत्यादिबलीयस्त्वाच्च |
३२४
|
श्रेष्ठश्च |
२२७
|
स
|
स एव तु कर्मानुस्मृति |
२६०
|
संकल्पादेव तच्छूतेः |
४०४
|
संज्ञातश्चेत्तदुक्तम् |
२९१
|
संज्ञामूर्तिक्लृप्तिस्तु |
२३२
|
संध्ये सृष्टिराह हि |
२२५
|
संपत्तेरिति जैमिनि: |
८०
|
संपद्याविर्भाव |
४००
|
संबन्धादेवमन्यत्रापि |
२९९
|
संमृतिद्युव्याप्त्यपि |
३०१
|
संभोगप्राप्तिरिति |
६४
|
संयमने त्वनुभूय |
२४६
|
संस्कारपरामर्शात् |
११०
|
सत्त्वाच्चापरस्य |
१५०
|
सप्तगतेर्विशेषितत्वाच्च |
२२५
|
समन्वयारम्भणात् |
३३९
|
समवायाभ्युपगमाच्च |
१७२
|
समाकर्षात् |
१२६
|
समाध्यभावाच्च |
२१४
|
समान एवं चाभेदात् |
२९८
|
समाननामरूपत्वाच्च |
१०३
|
समाना चासृत्युपक्रमात् |
३८०
|
समाहारात् |
३३४
|
समुदाय उभयहेतुके |
१७४
|
सर्वत्र प्रसिद्धोप |
६०
|
|
|
पुटसंख्या
|
सर्वथानुपपत्तेश्च |
१८२
|
सर्वथापि त एव |
३५४
|
सर्वधर्मोपपत्तेश्च |
१६३
|
सर्ववेदान्तप्रत्ययं |
२८५
|
सर्वान्नानुमतिश्च |
३५२
|
सर्वापेक्षा च यज्ञादि |
३५०
|
सर्वाभेदादन्यत्रेमे |
२९२
|
सर्वोपेता च तत् |
१५९
|
सहकारित्वेन च |
३५४
|
सहकायेन्तरवधिः |
३६१
|
सांपराये तर्तव्य |
३०६
|
साक्षाचोभयान्नानातू |
१३५
|
साक्षादप्यविरोधं |
७९
|
सा च प्रशासनात् |
८९
|
सामान्यातु |
२७७
|
सामीप्यातु तद्यपदेशः |
३९४
|
सुकृतदुष्कृते एवेति |
२४५
|
सुखविशिष्टाभि |
७०
|
सुषुप्युत्कान्त्योः |
११४
|
सूक्ष्मं प्रमाणतश्च |
३८१
|
सूक्ष्मं तु तदर्हत्वात् |
११७
|
सूचकश्च हि श्रुतेः |
२५९
|
सैव हि सत्यादयः |
३१६
|
सोऽध्यक्षे तदुपगम |
३७८
|
स्तुतयेऽनुमतिर्वा |
३४४
|
रुतुतिमात्रमुपादानात् |
३४८
|
स्थानविशेषात् |
२७९
|
स्थानादिव्यपदेशाश्च |
७०
|
स्थित्यदनाभ्यां च |
८५
|
|
|
पुटसंख्या
|
स्मरन्ति च |
२१५, २४७, ३७१
|
स्मर्यते च |
३८४
|
स्मर्यतेऽपि च लोके |
२४९
|
स्मर्यमाणमनुमानं |
७७
|
स्मृतेश्च |
६२, ११२, ३९४
|
स्मृत्यनवगाशदोष |
१३९
|
स्याचैकस्य ब्रह्म |
१९३
|
स्वपक्षदोषाञ्च |
१४५, १५८
|
स्वशब्दोन्मानाभ्यां च |
२०४
|
स्वात्मना चोत्तरयोः |
२०३
|
|
|
पुटसंख्या
|
स्वाध्यायस्य तथात्वे |
२८६
|
स्वाप्ययसंपत्योः |
४०९
|
स्वाप्ययात् |
२८
|
स्वामिनः फलश्रुते |
३६०
|
ह
|
हस्तादयस्तु स्थिते |
२२६
|
हानौ तूपायनशब्द
|
हृद्यपेक्षया तु |
९९
|
हेयत्वावचनाच्च |
२८
|
|
उदाहृतप्रमाणावाक्यानामनुक्रमः
अंशो नानाव्यपदेशात्, १४ ब्र. सू. २-३-४२.
अकृत्स्नो ह्येषः, १६ बृ. उ. १-४-७.
अक्षरात्परतः परः, ७४, ७५ मु. उ. २-१-२.
अग्निं वागप्येति, २४० बृ. उ.३-२-१३.
अग्निर्ज्यिोतिरहः, ३११ भ. गी. ८-२४.
अग्रिर्मूर्धा, ७६, ७७ मु. उ.२-१-१४.
अग्निर्वाग्भूत्वा, १४२ ऐ. आ. २-४. २-४.
अग्नेरापः, १९७ तै. उ. १-२-१-२.
अङ्गुष्ठमात्रः पुरुषः, ९९ क. उ. २-४-१२.
अजामेकां लोहित, १२१, १२२.श्वे. उ. ४-५.
अजायमानो बहुधा, ८३, १४९ तै. आ. ३-१३-१.
अणोरणीयान् , ६७, १२२, २८१ कठ. उ. २-२०.
अतः समुद्राः, १२२ तै. उ. २-१०-३.
अतो वै खलु, २५१ छान्दो. उ. ५-१०-६.
अतोऽस्मि लोके वेदे च, १० भ गी. १५-१८.
अत्यन्तमात्मानं, ३५८ छान्दो. उ. २-२३-१.
अथ तस्य भयं भवति, २५८ तै. उ. १-२-७.
अथ नामधेयं, २७० बृ. उ. २-३-६.
अथ परा यया, ७४, ८९, ३१२ सु. उ. १-१-५.
अथ भिक्षाचर्य, ३६३ बृ. उ. ३-५-१.
अथ मर्त्योऽमृतो भवति, ३८२ क. उ. २-३-१४.
अथ मुनिः, ३६१, ३६३ बृ. उ. ३-५-१.
अथ य आत्मा, ९४, २७७, २७८ छान्दो. उ. ८-४-१.
अथ य इमे ग्रामे, २४१ " ", ५-१०-३ .
अथ य इहात्मानं, ९२ " " ८-१-६ .
अथ य एष संप्रसादः, ९५ " " ८-३-४.
अथ यत्रान्यत्पश्यति, ८६ " " ७-२४-१.
अथ यदतः परः, ४८, ५२, ६८ " " ३-१३-७.
अथ योऽन्यां देवतां, १६ बृ. उ. १-४-१०.
अथ यो वेदेदं, २०२ छान्दो. उ. ८-१२- ४.
अथ रथान् रथयोगान्, २५५, ४०७ बृ. उ. ४-३-३३.
अथ सोऽभयं गतः, २५८ तै. उ. २-७१.
अथ स्वप्ने पुरुषं, २५९.
अथ ह शौनकं च, १०९ छान्दो. उ. ४-३-5.
अथ हास्य वेदं, ११२ गौ. धर्म. २-१२-३.
अथ हेममासन्यं, २८९ बृ. उ. १-३-७.
अथाकामयमानः, ३८३ बृ. उ. ४-४-६.
अथात आदेशः, २६९ बृ. उ. २-३-६.
अथातो धर्मजिज्ञासा, २ जै. सू. १-१-१.
अथास्मिन् प्राणः, १२८ १२९ कौ. उ. ३-९.
अथैतयोः पथोः, २४९ छान्दो. उ. ५-१०. ८.
औथतैरेव रश्मिभिः,३८७ छान्दो. उ. ८-६-५.
अदृष्टं द्रष्ट, ९० बृ. उ. ३-८-२.
अद्भयः पृथिवी, १९७, १९८ तै. उ. १-२-१-२.
अधिकं तु भेदनिर्देशात्, ८, ३६७ ब्र. सू. २-१-२२.
अध्यात्मयोगाधिगमेन, १२० कठ. उ. १-२-१२.
अनाश्रमी न तिष्ठत्तु, ३५७.
अनीशया शोचति, १४, ८४, १५४ मु. उ. ३-१-२.
अनेन जीवेन, २६, २०१ छान्दो. उ. ६-३-२.
अन्नमयं हि सोम्य, २३३ " " ६-५-४.
अन्नमशितं त्रेधा, २३३ , , ६-५-१
अनस्यान्नम्, १२5.
अन्नादो वसुदानः, २८२ बृ. उ. ४-४-२४.
अन्योऽन्तर आत्मानन्दमयः, २९५ तै. उ. १-२-५-२.
अपहतपाप्मा सत्यसंकल्पः, २६२, ४०५ छान्दो. उ. ८-१-५.
अपि तु वाक्यशेषः स्यात्, ३०६ जै. सू. १०-८-१५.
अपीतौ तद्वत्, ८ ब्र. सू. २-१-८.
अभिध्योपदेशाच्च, ८ ब्र. सू. १-४-२४.
अभिसमावृत्य, ३६२ छान्दो. उ. ८-१५-१.
अमृतत्वस्य तु नाशास्ति, १३१ बृ. उ. ४-४-२.
अमृतस्यैष सेतुः, ८२, २७७ मु. उ. २-२-५.
अयं वा व लोकः, ३२७ छान्दो. उ. १-१३-१.
अयमात्मा, ब्रह्म, १६, १५३, २१७ बृ. उ. २-५-१९.
अरूपमनामयम्, २८० श्वे उ.३-१०.
अर्वाग्बिलश्चमसः, १२१ बृ. उ. २-२-३.
अवकीर्णिपशुश्च, ३५८ जै. सू. ६-८-२१.
अवस्थितेरिति काशकृत्स्नः, ११, ११५ ब्र. सू. १-४-२२.
अव्यक्तात्पुरुषः, ११७ कठ. उ. १-३.११.
अशब्दमस्पर्शम् ११९ कठ. उ.३-१५.
अश्व इव रोमाणि, २१९, ३०६ छान्दो. उ. ८-१३-१.
असद्वा इदमग्र आसीत्, १२६, २२३, ३२२ तै. उ. १-७-१.
असौ वा आदित्यः, १२३ छान्दो. उ. ३-१-१.
अस्थूलमनणु, ३१२ बृ. उ. ३-८-८.
अस्माच्छरीत्समुत्थाय, ९७, ३९६ छान्दो. उ. ८-१२-३.
अस्मान्मायी सृजते, ८, २७४ श्वे.उ.. उ. ४-९.
अस्य सोम्य पुरुषस्य, ३७७ छान्दो. उ. ६-८-६.
अहं ब्रह्मास्मि, ३६७ बृ. उ. १-४-१०.
अहं मनुरभवं, २७३ बृ. उ. १-४-१० .
अहं सर्वस्य प्रभवः, ४१२ भ. गी. १०-८.
आकाशः संभूतः ३३, १९२, १९४ तै. उ. २. २-१-२.
आकाशमेकं हि यथा, २६७, २६८ या. स्मृ. प्रा. १४४.
आकाशो ह वै, ११४ छान्दो. उ. ३. ८-१४-१.
आक्रीडा विविधा राजन्, ८६ शा. प. १९६.
आख्यानानि शंसन्ति, ३४९.
आचार्यकुलाद्वेद, ३४० छान्दो. उ. ८. १५. १.
आजहारेमाः शूद्र, १०८ छान्दो. उ. ४-२-३.
आत्मकृतेः, ८ ब्र. सू. १-४-२६.
आत्मन आकाशः, १९२, २९७ तै. उ. २-१-२.
आत्मनि खल्वरे, १३१ बृ. उ. २-४-५.
आत्मानं रथिनं, ११६ कठ. उ. ३-३.
आत्मानमेवेमं, ७६ छान्दो. उ. ५. ११-६.
आत्मा वा ओरे द्रष्टव्यः, १३० बृ. उ. २-४-५.
आत्मा वा इदम् २९६ ऐ. उ. १-१-१.
आत्मा वा इदमेक एव, १२, ३२, १२६ ऐ. उ. १-१-१.
आत्मेति तूपगच्छन्ति, ४०२ ब्र. सू. ४-१-३.
आत्मैवेदं सर्वम्, २७४, २७५ छान्दो. उ. ७-२५-२.
आदित्यवर्ण तमसः, ४२ तै. आर. ३-१३-१.
आपो वा अकामयन्त, १४२ तै. ब्रा. ३-१-५.
आभास एव च, १९ ब्र. सू. २-३-४९.
आराग्रमात्रः, २०४ श्वे.. उ. ५-८.
आरूढो नैष्ठिकं, ३५८ अग्नि. पु. १६५-२३.
आसु तदा नाडीषु, २५९ छान्दो. उ. ८-६-३.
आहारशुद्धौ सत्त्वशुद्धिः, ३५३ छान्दो. उ. ७-२६-२.
इतरव्यपदेशात्, ८ ब्र. सू. २-१-२१.
इति तु पञ्चम्याम्, २३६ छान्दो. उ. ५-९-१.
इदं ज्ञानमुपाश्रित्य, ९८ भ. गी. १४-२.
इदं तच्छिरः, १२१ बृ. उ. २-२-३.
इदं वा अग्रे, १५० ते. ब्रा. २-२-८.
इदं सर्वमसृजत, १३७ तै. उ. १-२-६-२.
इदमपि वेदव्रतेन, २८७.
इन्द्राय राज्ञे, ३२० तै. सं. २-३-६.
इन्द्रियाणि दशैकं च, २२६, २३१ भ. गी. १३-५.
इन्द्रियेभ्यः परा ह्यर्था:, ११७ कठ. उ. ३-१०.
इमाल्लोकान् कामान्नी, ४११ तै. उ. १-१०-5.
इयमेव जुहूः, ३४८.
ईशानो भूतभव्यस्य, ९९ कठ. उ. २-४-१२.
ईशावास्यमिदं सर्व, ३४४ ई. उ. १ .
उत्क्रमिष्यत एवंभावात्, ११ ब्र. सू. १-४-२२.
उत्क्रान्तिगत्यागतीनाम्, १३ ब्र. सू. २-३-२०.
उत्तमः पुरुषस्त्वन्यः, ९ भ. गी. १५-१७.
उत्तरेषां चैतदविरोधि, ३५९ गौ. ध. १-३-४.
उद्वीथमनु समारोहति, ३३४ छान्दो. उ. १-४-५.
उद्रीथमुपासां चक्रिरे, २९२ छान्दो. उ. १-२-२.
उद्भीथमुपासीत, ३३५, ३३६, ३४८ छान्दो. उ. १-१-१.
उप त्वा नेष्ये, ११० " " ४-४-५
उपरि हि देवेभ्यः, ३४७.
उपलब्धिवदनियमः, १३ ब्र. सू. २-३-३७.
उपविश्यासने युञ्ज्यात्, ३७१ भ. गी. ६-१२.
उपादानाद्विहारोपदेशाच्च, १३ ब्र. सू. २-३-३४.
उपासात्रैविध्यात्, ५९ ब्र. सू. १-१-३२.
उर एव वेदिः, ८० छान्दो. उ. ५-१८-२.
ऊर्ध्र्वमेकः स्थितः, ३८४ या. स्मृ. ३-१६७.
ऋतं पिबन्तौ, ६ कठ. उ.३-१.
ऋत्विज उपगायन्ति, ३०६ तै. सं. ६-३-१.
ऋषयः कावषेयाः, ३४१ .
एकदेशस्थितस्य, १८ २१९ वि. पु. १-२२-5६.
एकल एव मध्ये, १०७ छान्दो. उ. ३-११-१.
एतं त्वेवं ते भूयः, ४०१ " " ८-९-३.
एतं देवयानं पन्थानं, ३०८ कौ. उ. १-२१.
एतं सेतुं तीत्वा, २७७. छान्दो. उ. ८-४-२.
एतत्तृतीयं स्थानं, २४९ छान्दो. उ. ५-१९-८.
एतत्सत्यं ब्रह्म पुरं, ९२ " " ८-१-५.
एतत्सर्वं मन एव, २२९ बृ. उ. १-५-३.
एतद्वै तदक्षरं, ८८, ८९, ३२२ बृ. उ.३-८-८.
एतमितः प्रेत्य, ६२, २७८ छान्दो. उ.३-१४-४.
एतस्माज्जायते प्राणः, १९९, २००, २२७, २३१ मु. उ. २-१-३.
एतस्माद्वा आत्मनः, ३२ छान्दो. उ. ६-९-३.
एतस्मिन्नौ देवाः, २४० " " ५-४-२.
एतस्य वा अक्षरस्य, ८९, १३४, ४१२ बृ. उ. ३-८-९.
एतेन वै चैत्ररथं कापेयाः, ११० ता. ब्रा. २०-१२-५.
एते वै निरयास्तात, ८६ शान्ति. १९६-४.
एतैरात्मभिर्भुङ्क्ते, १२८ कौ. उ.३-४४.
एवं विद्ध वै ब्रह्म, ३३६ छान्दो. उ. ४-१७-१०.
एवं हास्य सर्वे, ३७३ छान्दो. उ. ५-२४-३.
एवमेवं विदि पापं, ३७३ , , ४-१४-३ .
एवमेव प्रव्राजिनः, ३५० बृ.. उ. ४-४-२२.
एवमेवेममात्मानं, ३७९ बृ. उ. ४-३-३८.
एवमेवेमाः सर्वाः, ९३ छान्दो. उ. ८-३-२.
एवमेवैता भूतमात्राः, ५६ कौ. उ.३-८.
एवमेवैष संप्रसादः, ४०० छान्दो. उ. ८-१२-३.
एष आत्मापहतपाप्मा, ९२, ३१६ छान्दो. उ. ८-१-५ .
एष एव साधु, ५५ कौ. उ. ३-८.
एष तु वा अतिवदति, ८६, ८७ छान्दो. उ. ७-१६-१.
एष ब्रह्मलोकः, ९३ बृ. उ. ४-३-३३.
एष म आत्मान्तर्ह्रदये, ६२, ६३ छान्दो. उ. ३-१४-३.
एष लोकाधिपतिः, ५६ कौ. उ. ३-८.
एष सर्वभूतान्तरात्मा, १० मु. उ. २-१-४.
एष सर्वेषु भूतेषु, ११९ कठ. उ. ३-१२.
एष सेतुर्विधरण:, ९४ बृ. उ. ४ ४-४२.
एष सोमो राजा, २४२ छान्दो. उ. ५-१०-४.
एष ह्येवानन्दयाति, ३६, २८२ तै. उ. १-२-७-१.
एषोऽणुरात्मा, २०४ मु. उ. ३ १ ९.
ऐतदात्म्यमिदं सर्वम्, १४९, १९४, १९५ छान्दो. उ. ६-८-७.
ओमित्याश्रावयति, ३३५ छान्दो. उ. १-१.९.
ओमित्येतदक्षरं, २९० छान्दो. उ. १-१-१.
ओषधीर्लोमानि, २४० बृ. उ. ३-२-१३.
औदुम्बर्यः कुशाः, ३०५.
कं ब्रह्म खं ब्रह्म, ७० छान्दो. उ. ४-५-५.
करणाधिपाधिपः, १९४ श्वे.. उ. ६-९.
कर्ता शास्त्रार्थवत्वात्, १३, १८ ब. सू. २-३-३३.
कामः संकल्पः, २२९ ब्रृ.. सू. १-५-३.
किं प्रजया करिष्यामः, ३४5 बृ. उ. ४-४-२२.
कुर्वन्नेवेह कर्माणि, ३४०, ३४४ ई. उ. २.
कृतप्रयत्नापेक्षस्तु, १४ ब्र. सू. २-३-४२.
को ह्येवान्यत्कः प्राण्यात्, ३१४ ते. उ. १-२-७.
55 कैष एतद्वालाके, १२९ कौ. उ. ४-१९.
क्वैष तढा, १३० बृ. उ. ३ २ - १३.
क्षयन्तमस्य रजसः, ६९ तै. सं. २- २-१२ ५.
क्षरं त्वविद्यया, ९, २४ श्चे. उ. 5-१.
क्षरं प्रधानममृत, ९ श्वे. उ. १-१०.
क्षरः सर्वाणि, ९ भ.गी. १५-१६.
क्षीयन्ते चास्य कर्माणि, ३४५ मु. उ. २ २-८.
खं वायुज्योति:, २०० मु. उ. २-१-३.
गायत्री वा इदं, ५१ छान्दो. उ. ३-१२-१.
गुणमुख्यव्यतिक्रमे, ३१२ जे. सू. ३-३-८.
चतुष्पाद्रह्म, २७७, २७९ छान्दो. उ. ३-१८-२.
चन्द्रमसो विद्युतं, ३९२ छान्दो. उ. ४-१५-५.
छन्दसि लुङ्लङ्लिटः, ५, पा. सू. ३-४-६.
जक्षत्क्रीडन् रममाणः, ३१८, ४०३ छान्दो. उ. ८-१२-३.
जन्माद्यस्य यतः, ५८, १३८, २७६ ब्र. सू. १-१-२.
जप्येनापि च संसिध्येत्, ३५६ मनु. २-८७.
जानात्येवायं पुरुषः, २०७.
ज्ञाज्ञौ द्वावजौ, १२, १५, १६२ श्वे.. उ. १-९.
ज्ञोऽत एवं, १३ ब्र. सू. २-३-१९.
ज्यायान् पृथिव्या, ६४ छान्दो. उ. ३-१४-३.
ज्योतिश्चरणाभिधानात्, ५८ ब्र. सू. १-१-२४ .
तं दुर्दर्श गूढं, ६७ कठ. उ. २-१२.
तं देवा ज्योतिषां, १०६, १२5 बृ. उ. ४-४-१६ .
तं पृथिव्यब्रवीत्, १४२ तै. सं. ५-५-२.
तं प्रति ब्रूयात्, ३८१ कौ. उ. १-३.
तं विद्याकर्मणी, ३३९, ३४२ बृ. उ. ४-४ -२.
त इह व्याघ्रो वा, ३२, २४१ छान्दो. उ. ६-९-३.
त इह व्रीहियवाः, २५२ छान्दो. उ. ५-१०-३.
तज्जलान्, ६० छान्दो. उ.३-१४-१ .
तत्त्वमसि, १६, २८, १४९, १५३, २१७, ३३८, ४०२ छान्दो. उ. ६-८-७
तत्तेज ऐक्षत, २५, ११८, २०० छान्दो. उ. ६ २-३.
तत्तेजोऽसृजत, १९२, १९४ " " ६.२-३ .
तत्सर्व वै हरेस्तनुः, २१९ वि. पु. १-२२-३८.
तत्सृष्टा, ११, २५, २६, १३७ तै. उ. १-२-६-१ .
तत्सत्यं स आत्मा, ३१६ छान्दो. उ. ६-८-७.
ततः परिवृत्तौ, २४४ आ. ध. २-१-२ ३.
ततो यदुत्तरतरम्, २८० श्वे. उ. ३ १०-७.
तथा विद्वानामरूपात्, ८३ मु उ. ३-२-८.
तदुणसारत्वात्, १३ ब्र. सू. २ ३-२९.
तद्ध देवा उद्वीयं, २९० छान्दो. उ. १.२-१.
तद्वेदं तर्हव्याकृतम्, १२६, १५१, १६२ बृ उ. १-४-७,
तद्वैतत्पश्यन्, ५६ बृ. उ. १-२-१०.
तद्य इत्थं विदुः, २४८ छान्दो. उ. ५-१०-१.
तद्रह्म, ४१० तै. उ. १-२-११.
तदूपप्रत्यये चैका,३६७ वि.पु. ६-७ ९१.
तद्विष्णोः परमं, ६८, ११९ तै. सं. १-३-६.
तदक्षरे परमे, ६८, ९३ तै. उ. २-१-१.
तदण्डमभवत्, २३२ मनु. १-९.
तदनुप्रविश्य, ५८ तै. उ. १-२-६.
तदसदेव सन्मनः, १५१ तै. ब्र. २.२-८.
तदात्मानं स्वयमकुरुत, १३५ तै. उ. १-२-७-१ .
तदा विद्वान् पुण्यपापे, ८३ मु. उ. ३-१-३.
तदुपर्यपि, ३९७ ब्र. सू. १-३-२६.
तदेव वीर्यवत्तरं, ३६४ छान्दो. उ. १-१-१०.
तदैक्षत बहु स्याम्, २१, २५, १३४, १९८ छान्दो. उ. ६-२-३.
तपसा चीयते ब्रह्म, १९३ मु. उ. १-९.
तपसा ब्रह्मचर्येण, ३५६ प्रश्न. उ. १-१०.
तमीश्वराणां परमं, २६६ श्वे. उ. ६७.
तमेवं विद्वान्, ५५, तै. आ.३-१२-७.
तमेवं विदित्वा, २८० श्वे. उ.३-८.
तमेतं वेदानुवचनेन, ३७५, ३५४ बृ. उ. ४-४.२२.
तमेवैकं जानथ, ८२ मु. उ. २-२-५.
तमोंकारेणैव, ९१ प्रश्न. उ. ५-७.
तयोरन्यः पिप्पलं १५, ८५ मु. उ. ३-१-१.
तस्माचौत्ररथः, ११० श. ब्रा. २-५-३-११.
तस्माच्छूद्रसमीपे, १११.
तस्माद्ब्राह्मणः, ३५३, ३६१ बृ. उ.३-५-१.
तस्माद्वा एतस्मात्,३२,३४,३६,३७,३८, ४१२ तै.उ.१-२-१-१.
तस्मादेतद्ब्रह्म, १९३ मु. उ. १-१-१०.
तस्मादेवं विदशिष्यन्, २९७ छान्दो. उ. ४-२उ-१०.
तस्मिन् यदन्तः, २८७ तै. उ.
तस्मिन् लोकाः श्रिताः, ९३, २५७ कट. उ. २-६-१.
तस्य तावदेव चिरं, २७, ५४, ३०७, ३७४, ३८८ छा. उ. ६-१४-२.
तस्य पुत्रा दायम्, ३७९ शाठयायनीये.
तस्य प्रियमेव शिरः, २८४ तै. उ. १-३ ५-२.
तस्य भासा सर्वमिदं, ११३ कट उ. ५-१९.
तस्य सृज्यस्य, १८ वि. पु. १-२२-३८.
तस्य ह वा एतस्य, ८१ छान्दो. उ. ५-१८-२.
तस्या आहुतेः सोमः, २४२ छान्दो उ. ५-१०-४.
तस्याः शिखाया मध्ये, ३८६ तै. उ. २.११-२६.
तस्यैतस्य तदेव, ३०० छान्दो उ. १-७.५.
तस्योदिति नाम, ४१ छान्दो. उ. १-६-७.
तस्योपनिषदहः, २९९, ३०० बृ. उ. ५-५-३-४.
ता अन्ननसृजन्त, १९७ छान्दो. उ. ६-२-४.
ता आप ऐक्षन्त, १९८ छान्दो. उ. ६-२-४.
तानि सर्वाणि तद्वपुः, २१९ वि. पु. १-२२-८६.
तेजः परस्यां, ३८४ छान्दो. उ. ६ ८-६.
तेजोऽतः, १९५ ब्र सू. २-३-१०.
तेनेदं पूर्ण पुरुषेण, २७७, २८१ श्वे.. उ.३-१०.
तेनोभौ कुरुतः, ३१९ छान्दो. उ. १-१-१०.
ते ब्रह्मलोके तु, ३९५, ३९६ तै. उ. २ -
ते ये शतं प्रजापतेः, ३५ तै. उ. १-२-८-४.
तेऽचैिषमेव, ७१ छान्दो. उ. ४-१५-५.
ते वा एते पञ्चान्ये, ५१ छान्दो. उ. ४ ३ - ८.
तेषामेकैक एव, ३२३, ३२६ श. ब्रा. १०-४-१-३.
तेषामेवैतां ब्रह्मविद्यां, २८७ मु. उ. २-१-१०.
ते सर्वे सर्वभूतस्य, १८ वि. पु. १-२२-२०.
ते ह नाकम्, ६९ तै. आ. ३-१२-३९.
ते ह्येते विद्याचित एव, ३२४, ३२५ श. ब्रा. १०-४-१-१२.
तौ ह सुतं पुरुषं १२९ बृ. उ. २-१-१५.
त्रयो धर्मस्कन्धाः, ३४६, ३४७ छान्दो. उ. २-१३-१.
त्रिपादस्यामृतं दिवि, ५२, ६८ छान्दो. उ. ३-१२ ६.
त्रिशीर्षाणं त्वाष्ट्र, ५७ कौ. उ. ३-१.
त्वं वा अहमस्मि, ३६७.
दशेमे पुरुषे प्राणाः, २२६ बृ. उ. ३-९-४.
दहरोऽस्मिन्नन्तरे, ९२ छा. उ. ८-१-१.
दिक्संख्ये संज्ञायाम्, १२४ पा. सू. २-१-५०.
दिवमेव भगवो राजन्, ३३१ छान्दो. उ. ५-१८-१.
दिवा च शुक्लपक्षस्य, ३८७ आनु. २२०-३१.
दिश्यानि कामचाराणि, ८६ शान्ति. १९६-४.
दृश्यन्ते तानि तान्येव, १०४ वि. पु. १. ५-६५.
देवान् देवयजः, २४३ भ. गी. ७-२३.
देवासुराणां छन्दोभिः, ३०५.
द्वाविमौ पुरुषौ लोके, ९ भ. गी. १५-१६.
द्वा सुपर्णा, २६४ मु. उ. ३-१-१.
द्वे वाव ब्रह्मणो रूपे, २७०, २७३, २७४ बृ. उ. २-३-१.
धर्मेण पापमपनुदति, ३५५ तै. उ. २-५०.
धूत्वा शरीरम् , ११४ छान्दो.. उ. ८-१३-१.
ध्यायतीव पृथिवी, ३७१ छान्दो. उ. ७-६-१.
न कर्म लिप्यते नरे, ३४४ ई. उ. २.
न कम विभागादिति चेन्न, १३७ ब्र. सू. २-१-३५.
न चक्षुषा गृह्यते, ४३ मु. उ. ३ १:८.
न जायते म्रियते, ६७, १९२, २५२ कठ. उ०. १-२-१३.
न तत्र सूर्यो भाति, ११३ कठ. उ. ५-१५.
न तस्य कार्य, १५९ खे. उ, ६-८.
न तस्य प्राणाः, ३८३ बृ. उ. ४-४६.
न तु दृष्टान्तभावत् , ८, १०, १५४ ब्र. सू. २ ३-९.
न मयडत्र विकारमात्रम् , ४४ वाक्यम्.
न वा अरे पत्युः , १३० बृ. उ. ४-४-६ or २-४ ५.
न वा उ वेतत्, २५३ तै. ब्रा. ३.७ ७,
न वा मायामात्रम्, ४३ वाक्यम्.
न शुद्रे पातकं, ११० मनु. १०-१२६.
न संदृशे तिष्ठति, २७२ कठ. उ. ६-९.
न ह वा एवं विदि, ३५२ छान्दो. उ. ५-२-१.
न ह वै सशरीरस्य, ४०६ छान्दो. उ. ८-१२-१.
न हि विज्ञातुर्विज्ञातेः, २०८ बृ. उ. ४-३-३०.
न ह्येतस्मादिति, २७० बृ. उ. २-३-६.
नात्मा श्रुतेर्नित्यत्वाच्च, १३ ब्र सू. २-३-१७.
नाध्वर्युरुपगायेत् , ३०६ ते. सं. ६-३-१.
नाना वा देवता, ३२१ संकर्षे.
नामरूपयोर्निर्वहिता, 264 छान्दो. उ.8.14.
नामरूपे व्याकरवाणि,232 छान्दो. उ. 6-3-2 नायमात्मा प्रवचनेन, ६६, २७२ कठ. उ. १-२-२३.
नास्य जरयैतज्जीर्यते, २७६ छान्दो. उ. ८-१-५.
नाहं खल्वयमेवं, ४०९ छान्दो. उ. ८-९-१-२.
नाहं वेदैः, २७२ भ. गी. ११-५३.
निचाय्य तं, ११९ कठ. उ. ३-१५.
निचाय्यत्वादेवं, ९७ ब. सू. १-२-७.
नित्यं विभु सर्वगत, २८१ मु. उ. १-१-६.
नित्यो नित्यानां, १२, १६, १६२, २०२ श्वे. उ. ६-१३.
नित्योपलब्ध्यनुपलब्धि, १३ ब्र. सू. २-३-३२.
निदिध्यासितव्यः, ३७० बृ. उ. २-४-५.
निरवद्य, २६२, २६५ श्वे. उ. ६-१९.
निष्कलं निष्क्रिय, १६, २६६ श्वे. उ. ६-१९.
नेति नेति, २७१ बृ. उ. २-३-६.
नेह नानास्ति, ३१७, ३१८ बृ. उ. ४-४-१९.
नैतदचीर्णव्रतः, २८७ मु. उ. २-३-११.
नैतदब्राह्मणः, १११ छान्दो. उ. ४-४-५.
नैते सृती पार्थ, ३८९ भ. गी. ८-२३.
नैवोदेता नास्तमेता, १२३ छान्दो. उ. ३-२-१.
पञ्चपञ्चजना:, १२५ बृ. उ. ४-४-१६.
पतिं विश्वस्य, १६, ३९६ तै उ. २-११-३.
परं ज्योतिरुपसंपद्य, ३९८ छान्दो. उ. ८-३-४.
परस्य ब्रह्मणः, १८, २१९ वि. पु. १-२२-५६.
परातु तच्छुतेः, १४, १८ ब्र. सू. २-३ ४०.
परास्य शक्तिः, १५, ४२, १५९, २६5 खे. उ. ६-८.
परीक्ष्य लोकान्, ३४ मु. उ. ३-१-१२.
पश्यत्यचक्षुः, १२७ खे. उ. ३-१९.
पाण्डित्यं निर्विद्य ३६३ बृ. उ. ३-५-१.
पादोऽस्य विश्वा, १७, ४९, २१८ तै. आ. ३-१२-२.
पिप्पलं स्वाद्वति, २६४ मु. उ. ३-१-१.
पुरीतति शेते, २६० बृ. उ. २-१-१9.
पुरुषेऽन्तः प्रतिष्ठितं, ७८ प्रश्न. उ. १-७.
पुरुषो निर्मिमाणः, २५७ कठ. उ. २-२-८.
पुरुषो मानव एत्य, ३९४ बृ. उ. ६-२-१५.
पुष्करिण्यः स्रवन्य:, २५५ बृ. उ. ४-३-१०.
पृथगात्पानं प्रेरितारं, १५, २९७ श्वे. उ. १-६.
प्रकृतिश्च प्रतिज्ञा, ८ ब्र. सू. १-४-२३.
प्रजापतेः सभां, ३९४, ३९६ छान्दो. उ. ८-१४-१.
प्राज्ञामात्रः प्राणेषु, ५६ कौ. उ. ३-८.
प्रज्ञामात्रास्वर्पिताः, २०६ बृ. उ. ४-३-७.
प्रतर्दनो ह वै, ३४९ कौ. उ. ३-१
प्रतिज्ञासिद्धेर्लिङ्गम्, ११ ब्र. सू. १-४-२०.
प्रतितिष्ठन्ति ह वै, २८४.
प्रतिषेधाच, २७६ ब्र. सू. ३-२-२९.
प्रभुत्वादात्विज्यम्, ३ जै. सू. १२-४-४२.
प्रविशन्ति परं पदम्, ३९५ कर्म. पु. १-१-२६९.
प्राज्ञेनात्माना, १५, ३१ बृ. उ. ४-३-२१ .
प्राज्ञेनात्मानान्वारूढः, ११४ बृ. उ. ४-३-३५.
प्राज्ञेनात्मना संपरिष्वक्तः, ११४ बृ. उ. ४-३-२१.
प्राणमनूत्क्रामन्तं, २२७, २३९ बृ. उ. ४-४-२.
प्राणसंशयमापन्नः, ३५६.
प्राणस्तेजसि, ३७९ छान्दो. उ. ६-८-६.
प्राणस्य प्राणम्, १२५ बृ. उ. ४-४-१८.
56 प्राणान् गृहीत्वा, २१२ बृ. उ. २-१-१८.
प्राणोऽनूत्क्रामति, २२९ , , ४-४-२ .
प्राणोऽस्मि प्रज्ञात्मा, ५६ कौ. उ. ३-२.
प्रायश्चित्तं न पश्यामि, ३५९, ३६० अ. पु. १६५-२३.
बहुदायी, १०९ छा. उ. ४-१-१.
बहुधा जायमानः, ८३ मु. उ. २-२-६.
बहु स्यां प्रजायेयेति, ३४१ तै. उ. १-२-६-२.
बुद्धेरात्मा महान् परः, १२० कठ. उ. १-३-२०.
ब्रह्म गमयति, ३९४, ३९५, ३९८ छान्दो. उ. ४-१५-६.
ब्रह्म ज्येष्ठा वीर्या ३०१ तै. ब्रा. २-४-७-१०.
ब्रह्मणा सह ते सर्वे ३९५, ३९७ कूर्म. पु. २-१२-२६९.
ब्रह्म ते ब्रवाणि, १२७, बृ. उ. २-१-१.
ब्रह्म दाशा ब्रह्म दासा, १७, २१७ अथवेणब्रह्मसूक्त
ब्रह्मविदाप्नोति परम्, ३३७, ३६६ तै. उ. १-२-१.
ब्रह्माध्यधिष्ठत्, १३५ तै. ब्रा. २-८-९-७६.
ब्रह्म वनं ब्रह्म, ३५ " "
ब्राह्मणा विविदिषन्ति, ३५१ बृ. उ. ४-४-२२.
भूतानां त्रीण्येव बीजानि, २५० छान्दो. उ. ६-३-१.
भूमैव सुखम्, ८६ छान्दो. उ. ७-२-२.
भूयोऽनुष्याख्यास्यामि, ४०१ छान्दो. उ. ७-२-२.
मनः प्राणे, ३७८ छान्दो. उ. ६-८-६.
मनश्चितो वाक्वितः, ३२२ अग्निरहस्योपनिषत्
मनसा तु विशुद्धेन ४३.
मनसैतान् कामान्, २०२ छान्दो. उ. ८-१२-५.
मनसषु ग्रहा अगृह्मन्त, ३२४, ३२५ श. ब्रा. १०.४-१-३.
मनुर्वेवस्वतः, ३४९.
मनो ब्रह्म, ३५९ छान्दो. ३-१८-१.
मनोमयोऽयं पुरुषः, २९८ बृ. उ. ५-३-१.
मनोऽस्य दिव्यं, चक्षुः, २०३ छान्दो. उ. ८-१२-५.
मन्त्रकृतो वृणीते, १०२.
ममैवांशो जीवलोके, १७, २१८ भ गी. १५-७.
महतः परमव्यक्तम्, ११६ कठ. उ. १-३-२२.
महान्तं विभुम्, ६६, ६७ कठ. उ. १-२.२२.
मां ध्यायन्त उपासते, ३६७ भ. गी. १२-७.
मामेव विजानीहि, ५५ कौ. उ. ३-१.
मासेभ्यः संवत्सरं, ३९० छान्दो. उ. ४-१५-५.
मूर्धा ते व्यपतिष्यत्, ३३१ छान्दो. उ. ५-१२-२.
मृत्युर्यस्योपसेचनं, ६५ कठ. उ. १-२-२५.
य आत्मनि तिष्ठन्, १०, ७३२, १३२, २१९, ३६८, ३९८ बृ. उ. ३-७-११.
य आत्मानमन्तरः, २१५ वृ. उ. ३-७-२२.
य आत्मापहतपाप्मा, ९६, ३१४, ४०१, ४०३, ४०४ छान्दो. उ. ८-७-१.
य आत्मा सर्वान्तरः, ३१४ बृ. उ.३-४-१.
य आदित्ये तिष्ठन्, ४५ बृ. उ.३-७-९.
य इष्टापूर्ते दत्तं, २४८ छान्दो. उ. ५-१०-३.
य एतदेवं विद्वान्, ८१ छान्दो. उ. ५-२४-२.
य एतामेवं ब्रह्मोपनिषद, १०७ छान्दो. उ. ३-११-३.
य एवमेतद्विदुः, ३९८ छान्दो. उ. ६-२-१५.
य एवायं मुख्यः प्राणः, २९० छान्दो. उ. १-२-७.
य एवासौ तपति, ३७० छान्दो. उ. १-३-१.
य एष इह प्रविष्टः, १२७ बृ. उ. १-४-७.
य एष एतस्मिन्, २९९ बृ. उ. ५-५-३.
य एष सुप्तेषु, २५६ कठ. उ. २-२-८.
य एषोऽक्षिणि, ६९ छान्दो. उ. ४-१५-१.
य एषोऽग्निः, ७७, ७८ श. ब्रा. १०-६-१-११.
य एषोऽन्तरादित्ये, ४१ छान्दो. उ. १-६-६.
य एषोऽन्तर्हदयः, १३०, ३१६ बृ. उ. २-१-१७.
यं त्वं मनुष्याय, ५५ कौ. उ.३-१.
यः पुनरेतं त्रिमात्रेण, ९० प्रश्न. उ. ५-५.
यः पृथिवीमन्तरे, ४५ सु. उ. ७-१.
यः पृथिव्यां तिष्ठन्, ७२ बृ. उ. ३-७-२.
यः प्राणेन प्राणिति, ३१४ बृ. उ. ३-४-१.
यः सर्वज्ञः सर्ववित्, १५, ४२, ७४, २६२, २६५ मु. उ. १-१-९.
यक्ष्यमाणो ह वै, ३३८ छान्दो. उ. ५-११-५.
यच्छेद्वाङ्मनसी प्राज्ञः, ११७ कठ, उ. १-३-१३.
यतो वा इमानि, ६, २०, २२, ६१, ४१० तै. उ.३-१-१.
यो वाचो निवर्तन्ते,३५ " " २-३-८ .
यत्किचित्सृज्यते, १८ वि. पु. १-२२-३८.
यत्कृष्णं तदन्नस्य, १९८ छान्दो. उ. ६-४-१.
यत्तत्कवयो वेदयन्ते, ९१ प्रश्न. उ. ५-७.
यत्तदद्रेश्यमग्राह्यम्, ७४, ३१२. मु. उ. १-१-६.
यत्र काले त्वनावृत्ति, ३८९ भ. गी. ८-२५.
यत्र नान्यत्पश्यति, ८६ छान्दो. उ. ७. २४-१.
यथर्तुष्वृतुलिङ्गानि, १०४ वि. पु. १-५-६५.
यथा क्रतुरस्मिन् , ३२९ छान्दो. उ. ३-१४-१.
यथा च तक्षोभयथा, १३ ब्र. सू. २-३-३९.
यथा पशुरेवं, २४२ बृ. उ. १-४-१०.
यथैतमाकाशम् , २५१ छान्दो. उ. ५-१०-५.
यदष्टाकपालो भवति, २३१ तै. सं. २-२-५.
यदा पञ्चावतिष्ठन्ते, २२५ कठ. उ. २-३-१०.
यदा पश्यः पश्यते, १५ मु. उ. ३-१-४.
यदा सर्वे प्रमुच्यन्ते, ३८० बृ. उ. ४-४-७.
यदिदं किंच जगत्, ११२ बृ.उ. ६-१-१४.
यदुवै गार्गि दिवः, ८८ ,, ,, ३-८-७.
यदेव विद्यया करोति, ३१९, ३२६, ३३४, ३३५, ३३९, ३४२, ३७६ छान्दो. उ. १-१-१०.
यदेष आकाश आनन्दः, ५५ तै. उ. १-७-१.
यद्भूतयोनि, ६४, १३७ बृ. उ. ३-५-१.
यद्यद्भवति तथा भवन्ति, २६१ छान्दो. उ. ६-१०-२.
यद्वाव कं तदेव, ७१ छान्दो. उ. ४-१०-१.
यमेवैष वृणुते, २७९ मु. उ. ३-२-३.
यश्चक्षुषि तिष्ठन्, ७० बृ. उ. ३-७-१८.
यस्त्वेतमेवं प्रादेशमात्रं, ८०, ३३० छान्दो. उ. ५-१८-१.
यस्मात्क्षरमतीतः, १० भ. गी. १५-१८.
यस्मात्परं नापरमस्ति, २८० श्वे. उ. ३-९.
यस्मिन् ध्यौः पृथिवी, ८२ मु. उ. २-२-५.
यस्मिन् पञ्च पञ्च जनाः, १२४ बृ. उ. ४-४-१७.
यस्य पृथिवी शरीरम् , १५४, २६३, २७५ बृ. उ. ३-७-३.
यस्य ब्रह्म च, ६५ कठ. उ. १-२-२.
यस्याक्षरं शरीरं, २० सु. उ. ७-१.
यस्यात्मा शरीरं २०, १४४, २७५ बृ. उ. ३-७-३.
यस्यानुवृत्तिः प्रतिबुद्धः, २०४ बृ. उ. ६-४-१३.
यस्याव्यक्तं शरीरं, १४४ बृ. उ. ५-७-२.
या प्राणेन संभवति, ६७ कठ. उ. २-१-७.
यावज्जीवमग्निहोत्रं, ३५४ आ. श्रौ. ३-२४-८.
यावदात्मभावित्वाच्च, १३ ब्र. सू. २-३-३०.
यावद्धयस्मिन्, ५७ कौ. उ.३-२.
यावन्नाम्नो गतं, ३९९ छान्दो. उ. ७-१-५.
ये चामी अरण्ये, ३११ बृ. उ. ६-२-१५.
येनाश्रुतं श्रुतं, २८, १९४ छान्दो. उ. ६-१-३.
येनेदं सर्वं विजानाति, १३१ बृ. उ. २-४-१३.
येयं प्रेते विचिकित्सा, १२० कठ. उ. १-१-२०.
ये वै केचास्मात्, २४६ कौ. उ. १-२.
योऽकामो निष्कामः, ३८३ बृ. उ. ४-४-६.
यो ब्रह्माणं विदधाति, १०४, ३९४ श्वे. उ. ६-१८.
योऽयं विज्ञानमयः, २०६, २०८ बृ. उ. ४-३-७.
योडग्नौ तिष्ठन्, २३० बृ. उ. ३-७-५.
यो मामजमनादिम्, २६६ भ.गी. १०-३.
यो योह्यन्नमति, २५३ छान्दो. उ. ५-१०-६.
यो वायौ तिष्ठन्, २८४ बृ. उ. ३-७-७ .
यो विज्ञाने तिष्ठन्, ७३ बृ. उ. ३-७-७.
योऽव्यक्तमन्तरे, ४९ सु. उ. ७-१.
यो लोकत्रयमाविश्य , ९ भ. गी. १५-१७.
यो वेद निहितं गुहायां, ३३७ तै. उ. १-२-१.
यो वै बालाक, १२७ कौ. उ. ४-१९.
योऽसौ सोऽहं, १६ ऐ. आ.२-२-४६.
यो ह वै ज्येष्ठं च, २९२, २९७ बृ. उ. ६-१-१.
योऽहं सोऽसौ, १६ ऐ. आ. २-२-४६.
रमणीयचरणाः, २४३, २४४, २५२ छान्दो. उ. ५-१०-७ .
रसो वै सः, ४०, ४११ तै. उ. २-७-१.
रूपं वातीन्द्रियम्, ४३ वाक्यम्.
लोकवत्तु लीलाकैवल्यम्, ४१. ब्र. सू. २-१-३३.
वचनानि त्वपूर्वत्वात्, ३२६ जै. सू. ३-५-२१.
वर्षशतं जीवति, ३०३ छान्दो. उ. ३-१६-७.
वाक्पादश्चतुष्पादः, २७९ छान्दो. उ. ४-१८-२.
वाङ्मनसि संपद्यते ३८५ छन्दो. उ. ६-८-६.
वाचारम्भणं विकारः, १४९ , ), ६-१-४ .
वानस्पत्यः कुशाः, ३०५.
वालाग्रशतभागस्य, ४०८ श्वे. उ. ५-९.
वायव्यं श्वेतमालभेत, २८३ तै. सं. २-१-१-१.
वायुश्चान्तरिक्षं, १९२ बृ. उ. २-३-३.
वायोरग्निः, १९६ तै. उ. १-२-१-२.
वासुदेवात्संकर्षणः, १०९ परमसंहिता.
विज्ञानं चाविज्ञानं च, १४२ तै. उ. १-२-६-३.
विज्ञानं यझं तनुते, ३९, २१३ तै. उ. १-२-५.
विज्ञानघन एव, ४०३, ४०४ बृ. उ. २-४-१२.
विज्ञानसारथिः, ६८ कठ. उ. १-३-९.
विद्याविद्या ईशते, १५४ श्वे. उ. ५-१
विश्वं पुराणम्, ६९ तै. उ. २-१-१.
विश्वमेवेदं पुरुषः, ७८ तै. उ. २-२-१.
विश्वामित्रस्य सूक्तं, १०२ तै. सं. ५-३.
वीर ह वा एष, ३४६ तै. सं. १-५-२-५.
वेत्थ यथा पञ्चम्यां, २३६ छान्दो. उ. ५-३-३.
वेदमधीत्य, ३४३ छान्दो. उ. ८-१५-१.
वेदशब्देभ्य एवादौ, १०२ मनु. १-२१
वेदाहमेतं पुरुषं, ४२ श्वे. उ.३-८.
वेदेन रूपे व्याकरौत्, १०२ तै. ब्रा. २-६-२.
वैवस्वतं संगमनं, २४७ ऋ. सं. १०-१४-१.
वैश्वानरं द्वादशकपालं, ३३१ तै. सं. २-२-५.
वैषम्यनैर्धृण्ये न, .१२ .ब्र. सू. २-१-३४
व्यपदेशच क्रियायां, १३, ३९ ब्र. सू. २-३-३५.
व्याप्तिरूपेण संबन्धः, १८९.
व्याप्य नारायणः, २८१ तै. उ. २-७.
शं नो मित्रः, ३०३ तै. उ. १-१-१.
शक्तिविपर्ययात्, १३ ब्र. सू. २-३-३८.
शान्तो दान्तः, ३५१ बृ उ. ४-४-२३.
शास्त्रदृष्टया तु, ५९ ब्र. सू. १-१-३१.
शुक्रं प्रविध्य हृदयं, ३०३
श्रद्धा वा अपाः, २४९ ते. ब्रा. ३-२-४-१.
श्रुतिलिङ्गवाक्य, ३२२ जै. सू. ३-३-१३.
संकल्पादेवास्य, ४०५ छान्दो, . उ. ८-२-१.
संध्याहीनोऽशुचिः, २४५.
संन्यस्याग्निं ३५८ छान्दो. उ. २-१३-१.
स आगच्छति, ३०६ कौ. उ. १-४.
स आत्मा, २६ छान्दो. उ. ६-८-७.
स एकधा भवति, ४०६ छान्दो. उ. ७-२६-२.
स एतस्माज्जीवघनात्, ९० प्रश्न. उ. ५-५ .
स एनान् ब्रह्म गमयति, ३९२ छान्दो. उ. ४-१५-६.
स एवैनं भूतिं गमयति, २८३ तै. सं. २-१-१-१.
स एष एव मृत्यु:, ३२६ श. ब्रा. १०-३-६-२३.
स एष नेति नेति, ३१७, ३१८ बृ. उ. ३-९-२६.
स एष प्राण एव, ५४ कौ. उ. ३-८.
स एष सर्वेषां, ४१ छान्दो. उ. १-६-७ .
सकला न यत्र क्रेशादयः, २६२ वि.पु. ६-९-८५.
स कारणं करणाधिप, ९, १५,३३, ३४१ श्वे. उ. ६-९.
स खल्वेवं वर्तयन्, ३६२, ३७२, ४१२ छान्दो. उ. ८-१५ -१.
सच त्यच्चाभवत्, १३७ तै. उ. १-२-६-२.
स चानन्याय कल्पते, ४०८ श्वे. उ. ५-९.
स त आगम्य न विदुः, २६० छान्दो. उ. ६-१०-२.
स त आत्मान्तर्याम्यमृतः, २६३ बृ. उ. ३-७-३.
स तत्र पर्येति, ९८ छान्दो. उ. ८-१२-३.
सता सोम्य तदा, १३०, २५९ छान्दो. उ. ६-८-१
सत्यं चानृतं च, ५८ तै. उ. १-२-१६.
सत्यं ज्ञानम्, ३६, ४२, ५८, २६५ तै. उ. १-२-१-१
सत्यं ब्रूयात्, ३८१ कौ. उ. १-१३.
सत्यकामः सत्यसंकल्पः, ९२, ३१६, ४०१ छान्दो. उ. ८-१-५.
सदेव सोम्येदमग्रे, ७, २०, २५, १४५, १४७, १६२, १९६ छान्दो. उ. ६-२-१.
57 स भगवः कस्मिन्, ८८ छान्दो. उ. ७-२४-१.
समयाविषिते सूर्ये, ३०५ तै. सं. ६-६-११.
समस्तकल्याणगुणात्मकः, २६२ वि. पु. ६-५-८४.
समाध्यभावाच, १३ ब्र. सू. २-३-३९.
सप्त प्राणाः, २२५ मु. उ. २-१-८.
स यदि पितृलोक, ४०५ छान्दो. उ. ८-२-१.
सर्गेऽपि नोपजायन्ते, ९८ भ. गी. १४-२.
सर्व खल्विदं ब्रह्म, ६०, २७८ छान्दो. उ. ३-१४-१.
सर्वस्य चाहं हृदि, ६३, २१५, ३८६ भ. गी. १५-१५.
सर्वस्य वशी, ३१७ बृ. उं. ४-४-२२.
सर्वस्याधिपतिः, ११५ बृ. उ. ४-४-२२.
सर्वाणि ह वा, ४७ छान्दो. उ. १-९-१.
सर्वान् कामांश्छन्दतः, २५६ कठ. उ. १-१-२५.
सर्वे चैते वशं यान्ति, २४७.
सर्वेन्द्रियैर्मनसि, ३७८.
सर्वेषां तु स नामानि, १०२ मनु. १-२-२१.
स वा एष पुरुषः, ३५. बृ. उ. २-५-१८.
स वा एष महान्, २०४ बृ. उ. ४-४-२२.
स स्वराड् भवति, ३०९ छान्दो. उ. ७-२५-२.
सह नाववतु, ३०३ तै. उ. १.२-१.
सहस्रशीर्ष देवं, ३२१ तै. उ. २-११-१.
स ह्यनादिरनन्तश्च, १८९ पाञ्चरात्रे
स हि कर्ता, २५७ बृ. उ. ४-३-१०.
सा काष्ठा सा परा, ११८ कठ. उ. १-३-११.
साक्षाच्चोभयाम्नानात् ८ ब्र. सू. १-४-२५.
साधुकारी साधुर्भवति, १६१ बृ. उ. ४-४५.
सुकृतदुष्कृते धूनुते, ३०७ कौ. उ. १-३७.
सुखं त्वेव विजिज्ञासितव्यम्, ८६ छान्दो. उ. ७-२२.
सुप्तः स्वप्नं वा, ३१ कौ. उ. २-३०.
सूर्याचन्द्रमसौ, १०४ ऋ. सं. १०-१९०-३.
सेयं देवतैक्षत, ३१६ छान्दो. उ. ६-३-२.
सैषा विराट्, ५१ छान्दो उ. ४-३-८.
सोऽकामय बहु स्यां, ३८, ३९, १२७, १३5, १३६, २९६ तै.उ. १-६-२.
सोऽध्वनः पारम्, ६८ कठ. उ. १-३-९.
सोमो राजा, २४२ छान्दो. उ. ५-१०४.
सोऽरोदीत्, ३५० तै. सं. १-५-१-१.
सोऽश्नुते सर्वान्, ३७, ४१२ तै. उ. १-२-१.
स्तब्धोऽस्युत, १३३ छान्दो. उ. ६-१-३.
स्यात्तदूपं कृतकम्, ४३ वाक्यम्.
स्वप्नान्तं मे सोम्य, २९ छान्दो. उ. ६-८-१.
स्वेन रूपेण, ४०० छान्दो. उ. ८-१०-३.
हन्तासुरान् यज्ञ: २९०, २९१ बृ. उ. १-३-१.
हन्ताहमिमास्तिस्रः, १४२ छान्दो. उ. ६-३-२.
हिरण्मयः पुरुषः, ४३ छान्दो. उ. १-६-६.
हिरण्मय इति, ४४ वाक्यम्
हिरण्यशरीर ऊध्र्वः २५३.
हिरण्येन षोडशिनः, ३०५.
|
|
|
पुटसंख्या
|
अंशाधिकरणम् |
२१६
|
अक्षरध्यधिकरणम् |
३११
|
अक्षराधिकरणम् |
८८
|
अग्निहोत्राधिकरणम् |
३७४
|
अग्नीन्धनाद्यधिकरणम् |
३५०
|
अङ्गावबद्धाधिकरणम् |
३२९
|
अत्त्रधिकरणम् |
६५
|
अदृश्यत्वादिगुणकाधिकरणम् |
७४
|
अध्यक्षाधिकरणम् |
३७८
|
अनारब्धकार्याधिकरणम् |
३७४
|
अनाविष्काराधिकरणम् |
३६३
|
अनियमाधिकरणम् |
३१०
|
अनिष्टादिकार्याधिकरणम् |
२४६
|
अन्तरत्वाधिकरणम् |
३१३
|
अन्तरधिकरणम् |
४१
|
अन्तराधिकरणम् |
६९
|
अन्तर्याम्यधिकरणम् |
७२
|
अन्यथात्वाधिकरणम् |
२८८
|
|
|
|
|
पुटसंख्या
|
अन्याधिष्ठिताधिकरणम् |
२५२
|
अपशूद्राधिकरणम् |
१०७
|
अभावाधिकरणम् |
४०६
|
अचैिराद्यधिकरणम् |
३९०
|
अर्थान्तरत्वादिव्यपदेशाधिकरणम् |
११३
|
आविभागाधिकरणम् |
३८५
|
अविभागेन दृष्टत्वाधिकरणम् |
४०२
|
अहिकुण्डलाधिकरणम् |
२७४
|
आकाशाधिकरणम् |
४६
|
आतिवाहिकाधिकरणम् |
३९२
|
आत्मत्वोपासनाधिकरणम् |
३६७
|
आत्माधिकरणम् |
२०२
|
आदित्यादिमत्यधिकरणम् |
३६९
|
आनन्दमयाधिकरणम् |
३४
|
आनन्दाद्यधिकरणम् |
२९३
|
आनुमानिकाधिकरणम् |
११६
|
आप्रयाणाधिकरणम् |
३७२
|
|
|
|
|
पुटसंख्या
|
आरम्भणाधिकरणम् |
१४९
|
आवृत्त्यधिकरणम् |
३६६
|
आसीनाधिकरणम् |
३७०
|
आसृत्युपक्रमाधिकरणम् |
३८०
|
इतरक्षपणाधिकरणम् |
३७६
|
इतरव्यपेदशाधिकरणम् |
१५२
|
इतराधिकरणम् |
३७३
|
इन्द्रप्राणाधिकरणम् |
५३
|
इन्द्रियाविकरणम् |
२३१
|
ईक्षतिकर्माधिकरणम् |
९०
|
ईक्षत्यधिकरणम् |
२३
|
उत्पत्त्यसंभवाधिकरणम् |
१८७
|
उपलब्ध्यधिकरणम् |
१८१
|
उपसंहारदर्शनाधिकरणम् |
१५५
|
उभयलिङ्गाधिकरणम् |
२६२
|
एकस्मिन्नसंभवाधिकरणम् |
१८३
|
ऐहिकाधिकरणम् |
३६४
|
कर्त्रधिकरणम् |
२११
|
कर्मानुस्मृतिशब्दविध्यधिकरणम् |
२६०
|
कामाद्यधिकरणम् |
३१६
|
कारणत्वाधिकरणम् |
१२६
|
कार्याख्यानाधिकरणम् |
२९७
|
कार्याधिकरणम् |
३९३
|
कृतात्ययाधिकरणम् |
२४३
|
कृत्स्नप्रसक्ल्यधिकरणम् |
१५६
|
|
|
|
|
पुटसंख्या
|
चमसाधिकरणम् |
१२०
|
जगद्वाचित्वाधिकरणम् |
१२७
|
जगद्वयपारवर्जाधिकरणम् |
४०९
|
जन्माद्यधिकरणम् |
६
|
जिज्ञासाधिकरणम् |
१
|
ज्योतिरधिकरणम् |
४८
|
ज्योतिराद्यधिष्ठानाधिकरणम् |
२३०
|
ज्ञाधिकरणम् |
२०२
|
तत्स्वाभाव्यापत्यधिकरणम् |
२५०
|
तदधिगमाधिकरणम् |
३७२
|
तदन्तरप्रतिपत्त्यधिकरणम् |
२३६
|
तदभावाधिकरणम् |
२५९
|
तदोकोऽधिकरणम् |
३८५
|
तद्भूताधिकरणम् |
३५७
|
तन्निर्धारणानियमाधिकरणम् |
३१९
|
तेजोऽधिकरणम् |
१९६
|
दक्षिणायनाधिकरणम् |
३८८
|
दहराधिकरणम् |
९१
|
देवताधिकरणम् |
९९
|
द्युभ्वाद्यधिकरणम् |
८२
|
नातिचिराधिकरणम् |
२५१
|
निशाधिकरणम् |
३८७
|
परसंपत्यधिकरणम् |
३८४
|
पराधिकरणम् |
२७६
|
परायत्ताधिकरणम् |
२१५
|
पशुपत्यधिकरणम् |
१८५
|
|
|
|
|
पुटसंख्या
|
पारिप्लवार्थाधिकरणम् |
३४९
|
पुरुषविद्याधिकरणम् |
३०२
|
पुरुषार्थाधिकरणम् |
३३७
|
पूर्वविकल्पाधिकरणम् |
३२२
|
प्रकृत्यधिकरणम् |
१३३
|
प्रतीकाधिकरणम् |
३६८
|
प्रदानाधिकरणम् |
३२०
|
प्रमिताधिकरणम् |
९८
|
प्रयोजनवत्वाधिकरणम् |
१६०
|
प्राणाणुत्वाधिकरणम् |
२२६
|
प्राणाधिकरणम् |
४६
|
प्राणोत्पत्यधिकरणम् |
२२३
|
फलाधिकरणम् |
२८१
|
ब्राह्माधिकरणम् |
४०३
|
भूताधिकरणम् |
३७९
|
भूमज्यायस्त्वाधिकरणम् |
३३०
|
भूमाधिकरणम् |
८५
|
भोक्त्रापत्यधिकरणम् |
१४७
|
मध्वधिकरणम् |
१०५
|
मनोऽधिकरणम् |
३७८
|
महद्दीर्घाधिकरणम् |
१६९
|
मुक्तिफलाधिकरणम् |
३६४
|
यथाश्रयभावाधिकरणम् |
३३३
|
योगप्रत्युक्त्यधिकरणम् |
१४१
|
रचनानुपपत्यधिकरणम् |
१६४
|
|
|
|
|
पुटसंख्या
|
रश्म्यनुसाराधिकरणम् |
३८६
|
लिङ्गभूयस्त्वाधिकरणम् |
३२१
|
वरुणाधिकरणम् |
३९१
|
वाक्यान्वयाधिकरणम् |
१३०
|
वागधिकरणम् |
३७७
|
वायुक्रियाधिकरणम् |
२२७
|
वाय्वधिकरणम् |
३९०
|
विकल्पाधिकरणम् |
३३२
|
विधुराधिकरणम् |
३५५
|
वियदधिकरणम् |
१९१
|
विलक्षणत्वाधिकरणम् |
१४१
|
विहितत्वाधिकरणम् |
३५४
|
वेधाद्यधिकरणम् |
३०३
|
वैश्वानराधिकरणम् |
७६
|
शब्दादिभेदाधिकरणम् |
३३२
|
शमदमाद्यधिकरणम् |
३५१
|
शरीरे भावाधिकरणम् |
३२८
|
शास्त्रयोनित्वाधिकरणम् |
२२
|
शिष्टापरिग्रहाधिकरणम् |
१४७
|
श्रेष्ठाणुत्वाधिकरणम् |
२२९
|
संकल्पाधिकरणम् |
४०४
|
संख्योपसंग्रहाधिकरणम् |
१२३
|
संज्ञामूर्त्यधिकरणम् |
२३२
|
संध्याधिकरणम् |
२५५
|
संपद्याविर्भावाधिकरणम् |
३९९
|
संबन्धाधिकरणम् |
२९९
|
|
|
|
|
पुटसंख्या
|
संभृत्यधिकरणम् |
३०१
|
सप्तगत्यधिकरणम् |
२२५
|
समन्वयाधिकरणम् |
२३
|
समानाधिकरणम् |
२९८
|
समुदायाधिकरणम् |
१७४
|
सर्वत्र प्रसिद्धयधिकरणम् |
६०
|
सर्वथानुपपत्त्यधिकरणम् |
२८५
|
सर्ववेदान्तप्रत्ययाधिकरणम् |
२८५
|
सर्वव्याख्यानाधिकरणम् |
१३८
|
|
|
|
|
पुटसंख्या
|
सर्वान्नानुमत्यधिकरणम् |
३५२
|
सर्वापेक्षाधिकरणम् |
३५०
|
सर्वाभेदाधिकरणम् |
२९२
|
सहकार्यन्तरविध्यधिकरणम् |
३६१
|
सांपरायाधिकरणम् |
३०६
|
स्मृतिमात्राधिकरणम् |
३४८
|
स्मृत्यधिकरणम् |
१३९
|
स्वाम्यधिकरणम् |
३६०
|
हान्यधिकरणम् |
३०४
|
|
|
|
अ० पु० |
अग्निपुराणम्
|
आ० ध० |
आपस्तम्बधर्मसूत्रम्
|
आ० श्रौ० |
आपस्तम्बश्रौतसूत्रम्
|
ई० उ० |
ईशोपनिषत्
|
ऋ० सं० |
ऋक्संहिता
|
ऐ० आ० |
ऐतरेयारण्यकम्
|
ऐ० उ० |
ऐतरेयोपनिषत्
|
कठ० पु० |
कठोपनिषत्
|
कूर्म० पु० |
कर्मपुराणम्
|
कौ० उ० |
कौषीतक्युपनिषत्
|
गौ० ध० |
गौतमधर्मसूत्रम्
|
छान्दो० उ० |
छान्दोग्योपनिषत्
|
जै० सू० |
जैमिनिसूत्रम्
|
ता० ब्रा० |
ताण्ड्यब्राह्मणम्
|
तै० ब्रा० |
तैत्तिरीयब्राह्मणम्
|
तै० सं० |
तैत्तिरीयसंहिता
|
|
|
|
तै० आर० |
तैतिरीयारण्यकम्
|
तै० उ० |
तैत्तिरीयोपनिषत्
|
पा० सू० |
पाणिनिसूत्रम्
|
प्रश्न० उ० |
प्रश्रोपनिषत्
|
बृ० उ० |
बृहदारण्यकोपनिषत्
|
ब्र० सू० |
ब्रह्मसूत्रम्
|
भ० गी० |
भगवद्गीता
|
मनु० |
मनुस्मृतिः
|
मु० उ० |
मुण्डकोपनिषत्
|
या० स्मृ० |
याज्ञवल्क्यस्मृतिः
|
वि० पु० |
विष्णुपुराणम्
|
श० ब्रा० |
शतपथब्राह्मणम्
|
शान्ति० |
शान्तिपर्व
|
श्रे० उ० |
श्वेताश्वतरोपनिषत्
|
सु० उ० |
सुबालोपनिषत्
|
|
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