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पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/५५५

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५३८ ब्रह्मस्फुटसिद्धान्ते लोिक से" आषयक्त के अनुरूप ही फह गया है, मेषादि से पात विलोम चलता है और मन्द स्पष्टग्रह अनुलोम चलते हैं इसलिये दोनों का अन्तर योग करने से होता है लेकिन सूर्य सिद्धान्तकार ने पात को चक्र में से घटा दिय । हैं सूर्यसिद्धान्तोक्त विपात मन्दस्पष्टग्रह आचा यक्त सपात मन्दस्पष्ट ग्रह के बराबर होते हैं, उसी को शर साधन के लिये विक्षेप केन्द्र कहते हैं । सिद्धान्त योख र में "समकल ग्रह पत समागता इत्यादि से उपपत्ति में लिखित श्लोक से श्रीपति, तथा सिद्धान्त शिरोमणि में भास्कराचार्य भी "मन्दरस्फुटाश्च खेचरतः स्वपातयुक्तान इत्यादि सं” उपपत्ति में लिखित श्लोक से आचार्योक्तानुरूप हो कहते हैं । लेकिन यह भगोलिये टशरानयन किस का ठीक नहीं है यह पूर्वं कथित उपपंत से स्फुट है इति ॥१०॥ प्राचीनाचायों ने भगोल में विमण्डत को वृत्ताकार मान कर इष्टशरानयन किया है लेकिन भगोल में विमण्डल को आकृति वृत्ताकार होडी है या नहीं इस के लिये विचार करते हैं। भूकेन्द्र से ग्रहगोलीय विमण्डलाधारा सूची नियम सूची होती है, उसको भगोल से काटने से बंसा वक्त बनेगा वैसा ही भगोल में विमण्डल होता है । भूकेन्द्र से प्रहगोलीय विमण्डला भार विषम सूची में स्थिर त्रिभुज धरातल और विमण्डल घरातल की योगरेखा विमण्डल की व्यास रेख है । इसके प्रधैबिन्दु से कितने अन्तर पर उसके ऊपर लम्वरूपपिणी पूर्णाज्या ग्रगत समकणद्वयोत्पल कोण परम होता है उसका मान==य मानते हैं, ये दोनों कर्ण परमाप करणे और परमाधिक कणों से तुल्यान्तर में होते हैं, अनेक कणों से इस तरह की स्थिति बनती है, उन में किन दो कणों से उत्पन्न कोण परम होता है इसके लिये विचार करते हैं । संस्कृतोपपत्ति में लिखित (क) क्षेत्र को देखिये। इन=म। तब सूचइ त्रिभुज में "भूसम्मुखात्रोद्भवकोटिशिञ्जिन" इत्यादि से य'+क-२ इकोकय=ग, यहां इको इष्टकोणकोटिज्य, तथा मध्य=तत्स्थानीय पूर्णज्या, इन दोनों का योग करने से तत्स्थानीयकर्णवर्ग = ==क*+ल-२ इनषक=इष्टकोणज्या, तब अनुपात से कु4भ-२ इकोय.क =इकोणष्या' इस का परमत्व तब ही होगा जग उसको ताका- विवयति शून्य होगी, इस तरह मानने से -य ’ २ताय (अ'+क'-२इको )+इको’ क' २ ताप (प्र–के)=० यहां चल राशि केवल य है, अपतत करने से –य(('+क')+यको२क-इकोय.क=-:इकोल”=–-य (प'++') +य+इकोक= इको कम य(म'++'). य' -अ', वगं पूति से य(स+क ‘करने -'), + य' + इको का इकोक ,L_- (६#)=-अ'+(१न) मूलग्रहण से य-इन" अ+क (२इकोबैंक)