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पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/४२५

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४०८ या इससे रवि की नतिच्या आती है, नति कम ज्ञानघन हुक्कोप के अधीन है इसीलिये ई क्षेप का अभाव रहने से नति का भी अभाव होना निश्चित है, आचार्य स्वरुपाक्ष देश में स्व- ल्पान्तर से याम्योत्तर वृत्त हो में वित्रिभ की स्थिति मानकर दिनार्धकाल की तरह शान्ति और अक्षांश के संस्कार से उत्तर क्रान्तितुल्य अक्षांश में नतांशाभाव स्थान लाये हैं इसलिए 'तस्य कान्तिज्योदक् यदाक्षबीवा समा न तद' यह आचार्योंक्त युक्तियुक्त है । सूर्यसिद्धान्त शिरोमणि में भास्कराचार्य ने "न लम्बनं वित्रि भसग्मतुल्ये" इत्यादि के आचार्योंक्त के अनुरूप हो कद्द हैं । भव प्रसङ्ग से इक्षुम्बन का अरमत्व हा होता है. इसके लिये विअर फ़रते हैं भूकेन्द्र से चार भूपृष्ठ से स्वकक्षास्थ रविकेन्द्रगत रेट्साद्य चन्द्रकक्षा में जहाँ-जहाँ लगता है तदन्तर्गत चन्द्रगोलीय हुवृत्तचाप रबिलम्बन है, इसी तरह भूकेन्द्र से और भूपृष्ठ से चन्द्रकक्षास्य चन्द्रकेन्द्रगत रेखाट्य २विकक्षा में जहाँ जहाँ लगता है तदन्तर्गत रविगोलीय दृग्वृत्तचाप चन्द्रलम्बन है, इस तरह एक त्रिभुज बनता है, भूकेन्द्र से प्रहकेन्द्र (विकेन्द्र या चन्द्रकेन्द्) पर्यन्त प्रहकणं एक मुख, भूपृष्ठ से प्रहकेन्द्र (विकेन्द्र या चन्द्रफेन्द्र) पर्यन्त पृष्ठकणं द्वितीयभुज, भूव्यासषं तृतीयभुज इन गुणों से उत्पन्न त्रिभुज में पृष्ठकणं और भव्यासघ ' से उत्पन्न होण=१८०-पृष्ठीयनतांश, कोणज्या भटूर कोणोन भाषीशज्या बराबर होती है इख़सिये ज्या (१E०- पृष्ठीयनतांघ)=पृष्ठीय दृष्या, तब अनुपात करते हैं यदि प्रहकर्र में पृष्ठीय इज्या पाते हैं तो भूव्यासार्ध में या इससे पहलग्नकोणज्या (दृग्लम्बनण्या) आती है, उसका स्वरूप यह है। पृदृग्ज्या-भूष्यारे =हसंज्बा, इसमें प्रहकर्मी और भूम्याघ्र स्थिर है अतः सिद्ध हुआ कि पृष्ठीय दृग्ज्या का परम जहाँ ह वह इग्लप्रबनच्या का भी परमस्व होगा, लेकिन पृष्ठीय इज्या का परमस्व पृष्ठ क्षितिज में यह के रहने से होता है अतः पूळ क्षितिज हे में इदम्बन का परमत्व सिद्ध हुन । अब नति का I परमव कहाँ होता है विचार करते हैं कपडलंज्य =ज्या ==चति स्वस्पान्डर से, तथा सम्बन्धानुपाव ‘त्रिज्यातुल्य पृष्ठीब । इक्रया में अदि परसम्बन सखे हैं. तो इष्ट्रीयब्रया में वय' से इष्टद्वलम्बनथा आती है, =संख्या इससे मति के स्वरूप में ऊपल देने से क. ङ. स वह गरि भून्=क्या ॥ तुम है "फ्रक्षयोरन्तरं यत् स्यातिरेि