२१८ इससे ज्यखण्डनेन गुणिता’ इत्यादि संस्कृतोपपत्ति में लिखित लल्लोक्त मन्दगतिफलानयन उपपन्न होता है, मन्दगतिफलानयन किसी भी आचार्य का ठीक नहीं है, यह पूर्वोक्तोपपत्ति देखने ही ने स्पष्ट है। केवल भस्कराचार्योक मन्दगतिफलानयन ठीक है, यद्यपि वटेश्वर- सिद्धान्त में इस विषय को हम दिखला चुके हैं, तथापि यहाँ लिखते हैं । मेअंफज्य. मंकेज्या =मंफज्य, दोनों पक्षों की तात्कालिक गति लेने से मंग्रेफज्या ,संकेकोब्या. मंकेग_ मंगफमंफकोज्या . मंगुंफणी,मंकेकोउया. मंकेग त्रि अः त्रिमंकोफमंकेग. , भास्करोक्तमन्दगतिफल. त्रि मन्दगतिफल, मफकज्या त्रिीमंफकोज्या मंफकोज्या ..मंकोफमंकेग :'=भास्कर मंगफ. इससे सिद्ध हुप्र कि भास्करोक्त मन्दगतिफल को त्रिज्या से गुणाकर मन्दफलकोटिज्या से भाग देने से वास्तवमंदगत फल होता T है, इससे ‘भास्करो क्नं ग्रतिफलं त्रिज्यया मुणितं” इत्यादि मंकृतोपपत्ति में लिखित म. म. सुधारक द्विवेदी जी का सूत्र भी उपपन्न होता है मन्दस्पष्टगति प्रमाण लाते हैं। प्रथम पद में और द्वितीय पद में ( मकरादि केन्द्र में ) अद्यतनमध्यग्र-प्रद्यतनमंफ =प्रद्यतनमंस्पन इवस्तनमध्यग्र--वस्तनमंफ=श्वस्तनमंस्पग्र दोनों का अंतर करने से कुजादि ग्रहों की मध्यगति-संन्दगतिफल= मंदस्पष्टगति, तृतीय पद में प्रर चतुर्य पद में ( कचर्यादिकेन्द्र में ) अद्यतनमध्यप्न+ अद्यतनमंफ =अद्यतनमस्पन. श्वस्तनमध्यगश्वस्तनम्फ =श्वस्तनमंस्सग्र. दोनों का अन्तर करने से कुआदि अहों की मध्यगति+संगतिफल=मैदस्पगति रविमष्यगति 4 रमंगतिफल=स्परविगति एवं बमष्यगति + चंमंगतिफुल=चस्पष्टगति
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